Go To Mantra

अ॒द्धीदि॑न्द्र॒ प्रस्थि॑ते॒मा ह॒वींषि॒ चनो॑ दधिष्व पच॒तोत सोम॑म् । प्रय॑स्वन्त॒: प्रति॑ हर्यामसि त्वा स॒त्याः स॑न्तु॒ यज॑मानस्य॒ कामा॑: ॥

English Transliteration

addhīd indra prasthitemā havīṁṣi cano dadhiṣva pacatota somam | prayasvantaḥ prati haryāmasi tvā satyāḥ santu yajamānasya kāmāḥ ||

Pad Path

अ॒द्धि । इ॒न्द्र॒ । प्रऽस्थि॑ता । इ॒मा । ह॒वींषि॑ । चनः॑ । द॒धि॒ष्व॒ । प॒च॒ता । उ॒त । सोम॑म् । प्रय॑स्वन्तः । प्रति॑ । ह॒र्या॒म॒सि॒ । त्वा॒ । स॒त्याः । स॒न्तु॒ । यज॑मानस्य । कामाः॑ ॥ १०.११६.८

Rigveda » Mandal:10» Sukta:116» Mantra:8 | Ashtak:8» Adhyay:6» Varga:21» Mantra:3 | Mandal:10» Anuvak:10» Mantra:8


Reads times

BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे जितेन्द्रिय राजन् ! या इन्द्रियों के स्वामी आत्मन् ! (इमा प्रस्थिता) ये प्रस्थापित-उपहृत-उपहार में दिये हुए (हवींषि) खाने को मृदु खीर आदि वस्तुएँ (चनः) पक्वान्न खा पुनः (पचता) कालपक्व फल (उत) और (सोमम्) सोम ओषधि के रस को भोजन के अन्त में धारण करो-पीओ (प्रयस्वन्तः) अन्न भोजनवाले हम लोग (प्रति-हर्यामसि) तुझे चाहते हैं (यजमानस्य) राजसूय यज्ञ करते हुए तुझ यजमान के या तुझ आत्मा की (कामाः) कामनाएँ (सत्याः सन्तु) सफल होवें ॥८॥
Connotation: - जितेन्द्रिय राजा का जब राजसूय यज्ञ हो, तब उसे अनेक प्रकार के भोजन के स्वादु पक्वान्न भोजन-फल रस भेंट देने चाहिये और साथ उसकी कामनाएँ पूर्ण हों, ऐसी भावनाएँ प्रकट करनी चाहिये एवं इन्द्रियों के स्वामी आत्मा जब किसी संस्कार से संस्कृत हो, तब पारिवारिक जन उसे विविध पक्वान्न और पके फलों के रस प्रदान करें और उसे आशीर्वाद दें कि उसकी कामनाएँ सफल हों ॥८॥
Reads times

BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे जितेन्द्रिय राजन् इन्द्रियाणां स्वामिन् आत्मन् ! वा (इमा प्रस्थिता) इमानि प्रस्थितान्युपहृतानि (हवींषि) अदनीयानि मृदूनि पायसादीनि “हु दानादनयोः” [जुहो०] अदनार्थोऽत्र गृह्यते-तत इसि प्रत्ययः (चनः) अन्नं पक्वान्नं भुङ्क्ष्व, पुनः (पचता-उत सोमं दधिष्व) पचता-पचतानि कालपक्वानि फलानि अपि च सोमौषधिरसं भोजनान्ते धारय (प्रयस्वन्तः प्रति हर्यामसि) अन्नभोजनवन्तः “प्रयः-अन्ननाम” [निघ० २।७] त्वां प्रति वाञ्छामो याचामहे (यजमानस्य कामाः सत्याः सन्तु) यजमानस्य तव राजसूयं यज्ञं कुर्वाणस्य यद्वा तवात्मनः-“आत्मा वै यजमानः” [कौ० १७।७] कामाः सफलाः भवन्तु ॥८॥