Go To Mantra

भूम्या॒ अन्तं॒ पर्येके॑ चरन्ति॒ रथ॑स्य धू॒र्षु यु॒क्तासो॑ अस्थुः । श्रम॑स्य दा॒यं वि भ॑जन्त्येभ्यो य॒दा य॒मो भव॑ति ह॒र्म्ये हि॒तः ॥

English Transliteration

bhūmyā antam pary eke caranti rathasya dhūrṣu yuktāso asthuḥ | śramasya dāyaṁ vi bhajanty ebhyo yadā yamo bhavati harmye hitaḥ ||

Pad Path

भूम्याः॑ । अन्त॑म् । परि॑ । एके॑ । च॒र॒न्ति॒ । रथ॑स्य । धूः॒ऽसु । यु॒क्तासः॑ । अ॒स्थुः॒ । श्रम॑स्य । दा॒यम् । वि । भ॒ज॒न्ति॒ । ए॒भ्यः॒ । य॒दा । य॒मः । भव॑ति । ह॒र्म्ये । हि॒तः ॥ १०.११४.१०

Rigveda » Mandal:10» Sukta:114» Mantra:10 | Ashtak:8» Adhyay:6» Varga:17» Mantra:5 | Mandal:10» Anuvak:10» Mantra:10


Reads times

BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (हर्म्ये) हृदयघर में (हितः) सावधान आत्मा (यमः) संयमी (यदा) जब (भवति) होता है, तो (रथस्य धूर्षु) जैसे रथ की धुराओं में (युक्तासः) युक्त हुए-जुड़े हुए घोड़े आदि (अस्थुः) स्थित होते हैं-रथ को वहन करते हैं (भूम्याः-अन्तम्) पृथिवी के अन्त को (एके परि चरन्ति) कुछ घोड़े परिभ्रमण करते हैं-पहुँच पाते हैं, उसी भाँति संयमी आत्मा के प्राण सर्वत्र देह में परिभ्रमण करते हैं (एभ्यः) इनके लिये (श्रमस्य) श्रम के प्रतिकारार्थ (दायं वि भजन्ति) दातव्य अन्नादि घास को देते हैं, वैसे ही आत्मा अन्न देता है प्राणों के लिये ॥१०॥
Connotation: - जैसे कुशल सारथि के रथ में जुड़े हुए घोड़े पृथिवी पर चलते हैं, घूमते हैं, श्रम करते हैं, उनके श्रमप्रतीकार के लिये घास आदि दिया जाता है, ऐसे ही हृदय में वर्त्तमान आत्मा सारथि के समान संयमी हुआ प्राणरूप घोड़ों को देह में चलते हुओं को श्रमप्रतीकार के लिये यथायोग्य आहार देता है, देता रहे ॥१०॥
Reads times

BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (हर्म्ये यदा यमः-हितः-भवति) हृदयगृहे “हर्म्यं गृहनाम” [निघ० ३।४] आत्मा यदा सावधानः संयमी भवति, तदा (रथस्य धूर्षु युक्तासः-अस्थुः) यथा रथस्य धूर्षु युक्ता अश्वा नियुक्ता भवन्ति ते (भूम्याः-अन्तं-एके-परि चरन्ति) एके केचनाश्वाः पृथिव्याः खल्वन्तं परिगच्छन्ति तद्वत्-एतस्य संयमिन आत्मनः प्राणाः-अश्वाः सर्वत्र देहे परिचरन्ति (एभ्यः) एतेभ्यः (श्रमस्य दायं वि भजन्ति) श्रमस्य प्रतीकाराय दातव्यं यथा प्रयच्छन्ति तद्वदन्नं प्रयच्छति खल्वात्मा ॥१०॥