Word-Meaning: - (पणयः) हे वणिजों की भाँति जलरक्षकों मेघों ! (अहं भ्रातृत्वं न वेद) मैं तुम लोगों के भ्रातृभाव को नहीं जानती हूँ, नहीं मानती हूँ (न-उ स्वसृत्वम्) नहीं तुम्हारी भगिनी हूँ, ऐसा जानती हूँ और न मानती हूँ (इन्द्रः) विद्युद्देव (च) तथा (घोराः-अङ्गिरसः) शक्तिमान् विद्युन्मय वायुएँ (विदुः) जानें या मानें, मैं जानने या मानने में स्वतन्त्र नहीं हूँ (मे गोकामाः-अच्छदयन्) मेरे शासक जल चाहनेवाले तुम पर छा जावें-आक्रमण करें-छा जायेंगे-आक्रमण करेंगे (यत्-आयम्) जिनके पास से मैं आई हूँ (अतः) इस स्थान से (वरीयः) अति दूर (अप-इत) चले जाओ ॥१०॥ आध्यात्मिकयोजना−हे विषयव्यवहारप्रवर्तक इन्द्रिय प्राण ! मैं चेतना तुम्हारे साथ भ्रातृभाव को नहीं मानती हूँ, न स्वसृभाव-बहिन का नाता मान्ती हूँ, किन्तु ऐश्वर्यवान् परमात्मा के प्रबल नियम जानें, वे मेरे शासक हैं, जिसके लिये विषय-प्रवृत्तियाँ हैं, जिससे मैं शरीर में आई हूँ, वे तुम्हें पृथक कर देंगे, यहाँ से दूरातिदूर चले जाओ ॥१०॥
Connotation: - अनाधिकृत वस्तु को अपने अधिकार में लेनेवाले समझाने के लिये कोई जावें, तो उनके प्रलोभन में न आकर उचित बात ही समझाया करें ॥१०॥