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सृ॒ण्ये॑व ज॒र्भरी॑ तु॒र्फरी॑तू नैतो॒शेव॑ तु॒र्फरी॑ पर्फ॒रीका॑ । उ॒द॒न्य॒जेव॒ जेम॑ना मदे॒रू ता मे॑ ज॒राय्व॒जरं॑ म॒रायु॑ ॥

English Transliteration

sṛṇyeva jarbharī turpharītū naitośeva turpharī parpharīkā | udanyajeva jemanā maderū tā me jarāyv ajaram marāyu ||

Pad Path

सृ॒ण्या॑ऽइव । ज॒र्भरी॒ इति॑ । तु॒र्फरी॑तू॒ इति॑ । नै॒तो॒शाऽइ॑व । तु॒र्फरी॒ इति॑ । प॒र्फ॒रीका॑ । उ॒द॒न्य॒जाऽइ॑व । जेम॑ना । म॒दे॒रू इति॑ । ता । मे॒ । ज॒रायु॑ । अ॒जर॑म् । म॒रायु॑ ॥ १०.१०६.६

Rigveda » Mandal:10» Sukta:106» Mantra:6 | Ashtak:8» Adhyay:6» Varga:2» Mantra:1 | Mandal:10» Anuvak:9» Mantra:6


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (सृण्या इव) दो दरातियों के समान अश्विनौ हैं जिनमें (जर्भरी-तुर्फरीतू) गुणों के भर्ता और दोषों के हननकर्ता हैं (नैतोशा-इव) अत्यन्त दूरप्रहारक अस्त्र के समान (तुर्फरी पर्फरीका) शीघ्र हनन करनेवाले-विदारण करनेवाले (उदन्यजा-इव) जल में उत्पन्न हुए दो रत्नों की भाँति (जेमना मदेरू) जयशील और हर्षप्रद (ता मे) वे दोनों मेरे (जरायु) जरायु से उत्पन्न (मरायु) मरणशील शरीरों को (अजरम्) जरारहित कर दें वे अश्विनौ दो वैद्य शल्यचिकित्सक और औषधिदाता ॥६॥
Connotation: - मनुष्यों के बीच में दो प्रकार के वैद्य होने चाहिए, एक शल्यचिकित्सक और दूसरा ओषधिचिकित्सक, जैसे खेत को काटने के लिये दो दराँती होती हैं, एक प्रतिकूल वस्तु को काट कर फ़ेंक देनेवाली और दूसरी अनकूल-उपादेय वस्तु को काटकर लेनेवाली होती है, ऐसे ही दोनों वैद्य प्रहारक शस्त्र दूसरे शरीर के दोष को उखाड़कर बाहर फ़ेंक देता है व दूसरा ओषधि से स्वास्थ्यगुणों को अन्दर ले आता है, ये दोनों बहुमूल्य सामुद्रिक रत्न की भाँति हैं, जो शरीर को जरा से दूर करते हैं ॥६॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (सृण्या-इव) सृण्याविव-दात्र्याविव (जर्भरी-तुर्फरीतू) तथा अश्विनौ जर्भरी गुणानां भर्त्तारौ तुर्फरीतू दोषाणां हन्तारौ (नैतोशा-इव) नितोशते हन्तीति नितोशः ‘पचाद्यचि’ दूरप्रहारकमस्त्रं तस्यापत्यं तदधिकं प्रहारकमिव “तोशति वधकर्मा” वैदिको धातुः “सत्रात्व पुरुष्टुत एको वृत्राणि तोशसे” [ऋ० ८।११।१५] तथा “तोशते हिनस्ति तोशति वधकर्मा” [सायणः] नितोशस्य वधकर्त्तुः पुत्रो नैतोशः-तदिव (तुर्फरी) क्षिप्रहन्तारौ (पर्फरीका) विदारयितारौ (उदन्यजा-इव) उदकजे रत्ने समुद्रे चान्द्रमसे मुक्ताशुक्तिके रत्ने-इव (जेमना मदेरू) जयशीले हर्षप्रदौ (ता मे) तौ मम (जरायु) जरायुजं (मरायु) मरणशीलं शरीरं (अजरम्) जरारहितं कुरुतम्, हे अश्विनौ वैद्यौ “अश्विनौ वै देवानां भिषजौ” [ऐ० १।१८] इति निरुक्तानुसारी खल्वर्थोऽयम् ॥६॥