Go To Mantra

आ॒र॒ङ्ग॒रेव॒ मध्वेर॑येथे सार॒घेव॒ गवि॑ नी॒चीन॑बारे । की॒नारे॑व॒ स्वेद॑मासिष्विदा॒ना क्षामे॑वो॒र्जा सू॑यव॒सात्स॑चेथे ॥

English Transliteration

āraṅgareva madhv erayethe sāragheva gavi nīcīnabāre | kīnāreva svedam āsiṣvidānā kṣāmevorjā sūyavasāt sacethe ||

Pad Path

आ॒र॒ङ्गराऽइ॑व । मधु॑ । आ । ई॒र॒ये॒थे॒ इति॑ । सा॒र॒घाऽइ॑व । गवि॑ । नी॒चीन॑ऽबारे । की॒नारा॑ऽइव । स्वेद॑म् । आ॒ऽसि॒स्वि॒दा॒ना । क्षाम॑ऽइव । ऊ॒र्जा । सु॒य॒व॒स॒ऽअत् । स॒चे॒थे॒ इति॑ ॥ १०.१०६.१०

Rigveda » Mandal:10» Sukta:106» Mantra:10 | Ashtak:8» Adhyay:6» Varga:2» Mantra:5 | Mandal:10» Anuvak:9» Mantra:10


Reads times

BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (आरङ्गरा-इव) अलम्-शब्द करनेवालों की भाँति अध्यापक और उपदेशक (मधु-आ-ईरयेथे) मधुर वचन को प्रेरित करते हो (सारघा-इव) दो मधुमक्खियों की भाँति (नीचीनवारे गवि) निम्न द्वारवाले छत्ते में जैसे मधु बनाते हैं, वैसे तुम दोनों अध्यापक और उपदेशक पृथिवी पर ज्ञानमधु का चयन करते हो-सींचते हो (कीनारा-इव) कर्मनेता दो श्रमिक जनों की भाँति (स्वेदम्-आसिष्विदाना) स्वविद्या प्रचार श्रम करते हुए स्वेद बहाते हो (क्षाम-इव) पृथिवी जैसे सुन्दर अन्न से (सूयवसात्-ऊर्जा सचेथे) हरी-भरी हो जाती है, ऐसे ही तुम सुन्दर ज्ञानान्न से मनुष्यों को संयुक्त करते हो ॥१०॥
Connotation: - अध्यापक उपदेशक अपने मधुर अध्यापन मधुरभाषण शब्दों द्वारा मानवसमाज को तृप्त करते हैं, मधुमक्खियाँ जैसे मधु से तृप्त करती हैं और वे अध्यापन प्रवचन करने में श्रमिक जनों की भाँति अपने को श्रान्त कर देवें, पृथिवी जैसे अन्न की खेती से हरी-भरी हो जाती है, ऐसे ही अध्यापक उपदेशक मानवप्रजा को ज्ञानामृत से हरी-भरी कर देवें ॥१०॥
Reads times

BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (आरङ्गरा-इव मधु-आ-ईरयेथे) आमलं गरः शब्दः ययोस्तौ-अरङ्गारौ स्वार्थेऽण् तौ मेधाविनौ शब्दकरावध्यापकोपदेशकौ मधुरवचनं प्रेरयथः (सारघा-इव गवि नीचीनवारे) मधुमक्षिके यथा निम्नद्वारेऽपूपे मधु कुरुतस्तथा युवां पृथिव्यां ज्ञानमधु सञ्चिनुथः (कीनारा-इव स्वेदम्-आसिष्विदाना) कर्मनेतारौ “कृञ् करणे” धातोर्डी-प्रत्ययः-औणादिकौ बाहुलकात् की-कर्म-उपपदात् “नृ धातोः कर्मण्यण्” [अष्टा० ३।२।१३] इति-अण् प्रत्ययः श्रमिकौ स्वेदं [प्रक्षारयन्तौ भवतस्तद्वद् युवामपि स्वविद्याश्रमे स्वेदं प्रक्षारयन्तौ भवथः (क्षाम-इव-ऊर्जा सूयवसात् सचेथे) पृथिवी यथा सुन्दरान्नात्-ऊर्जा भवति तथा युवां सुन्दरज्ञानान्नात् सुन्दरज्ञानान्नं प्राप्य खलूर्जा तेजसा सचेथम्, संयुक्तौ कुरुतम् ॥१०॥