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आ॒रे अ॒घा को न्वि१॒॑त्था द॑दर्श॒ यं यु॒ञ्जन्ति॒ तम्वा स्था॑पयन्ति । नास्मै॒ तृणं॒ नोद॒कमा भ॑र॒न्त्युत्त॑रो धु॒रो व॑हति प्र॒देदि॑शत् ॥

English Transliteration

āre aghā ko nv itthā dadarśa yaṁ yuñjanti tam v ā sthāpayanti | nāsmai tṛṇaṁ nodakam ā bharanty uttaro dhuro vahati pradediśat ||

Pad Path

आ॒रे । अ॒घा । कः । नु । इ॒त्था । द॒द॒र्श॒ । यम् । यु॒ञ्जन्ति॑ । तम् । ऊँ॒ इति॑ । आ । स्था॒प॒य॒न्ति॒ । न । अ॒स्मै॒ । तृण॑म् । न । उ॒द॒कम् । आ । भ॒र॒न्ति॒ । उत्ऽत॑रः । धु॒रः । व॒ह॒ति॒ । प्र॒ऽदेदि॑शत् ॥ १०.१०२.१०

Rigveda » Mandal:10» Sukta:102» Mantra:10 | Ashtak:8» Adhyay:5» Varga:21» Mantra:4 | Mandal:10» Anuvak:9» Mantra:10


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (अघा) आश्चर्य है (आरे) अरे ! (कः-नु) किसने ही (इत्था ददर्श) ऐसा देखा है कि (यम्-उ) जिस ही काष्ठादिमय वृषभ को (युञ्जन्ति) जोड़ते हैं (तम्-उ) उस पर ही (आ स्थापयन्ति) अपने और दूसरों को बिठाते हैं, वह ही वृषभ है और वही यान है, यह आश्चर्य है (अस्मै) इसके लिए (न तृणम्) न घास (न-उदकम्) और न ही जल (आभरन्ति) समर्पित करते हैं-देते हैं (प्रदेदिशत्) सङ्केत को प्राप्त हुआ (उत्तरः) उछला हुआ (धुरः) धुराओं को (वहति) चलाता है ॥१०॥
Connotation: - ऐसा वृषभ आकृतिवाला यान बनाया जाना चाहिये, जिसको देखकर आश्चर्य होता हो, वही जुड़ने का काम करता है, वही यान का काम करता है, उसमें ही बैठा जाता है, उसे अन्य वृषभों की भाँति न घास दिया जाता है खाने को, न पानी दिया जाता है पीने को, किन्तु सङ्केत या प्रेरणा के अनुसार ऊपर उछलता है, यान की धुराओं को चला देता है, चला कर ऊपर ले जाता है ॥१०॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (अघा-आरे कः-नु-इत्था ददर्श) आश्चर्यम् ? अरे ! “दीर्घश्छान्दसः” क एवं दृष्टवान् (यम्-उ-युञ्जन्ति-तम्-उ-आ स्थापयन्ति) यं द्रुघणं काष्ठादिमयं वृषभं योजयन्ति तमेवात्मानमन्यञ्च समन्तात् स्थापयन्ति-उपवेशयन्ति, स-एव वृषभः स एव रथश्चेत्याश्चर्यम् (अस्मै न तृणं न-उदकम्-आ भरन्ति) अस्मै यन्त्रभूताय वृषभाय घासं न चैव जलमाभरन्ति प्रयच्छन्ति (प्रदेदिशत्-उत्तरः-धुरः-वहति) प्रदेशं प्रेरणमाप्नुवन् सन् “सुपां सुलुक् [अष्टा० ७।१।३९] इति सोर्लुक्” उत्तरः-उत्प्लुतः सन् यानधुरं वहति चालयति ॥१०॥