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नू च॑ पु॒रा च॒ सद॑नं रयी॒णां जा॒तस्य॑ च॒ जाय॑मानस्य च॒ क्षाम्। स॒तश्च॑ गो॒पां भव॑तश्च॒ भूरे॑र्दे॒वा अ॒ग्निं धा॑रयन्द्रविणो॒दाम् ॥

English Transliteration

nū ca purā ca sadanaṁ rayīṇāṁ jātasya ca jāyamānasya ca kṣām | sataś ca gopām bhavataś ca bhūrer devā agniṁ dhārayan draviṇodām ||

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Pad Path

नु। च॒। पु॒रा। च॒। सद॑नम्। र॒यी॒णाम्। जा॒तस्य॑। च॒। जाय॑मानस्य। च॒। क्षाम्। स॒तः। च॒। गो॒पाम्। भव॑तः। च॒। भूरेः॑। दे॒वाः। अ॒ग्निम्। धा॒र॒य॒न्। द्र॒वि॒णः॒ऽदाम् ॥ १.९६.७

Rigveda » Mandal:1» Sukta:96» Mantra:7 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:4» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:15» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जिसको (देवाः) विद्वान् जन (नु) शीघ्र और (च) विलम्ब से वा (पुरा) कार्य्य से पहिले (च) और बीच में (रयीणाम्) वर्त्तमान पृथिवी आदि कार्य्य द्रव्यों के (सदनम्) उत्पत्ति, स्थिति और विनाश के निमित्त वा (जातस्य) उत्पन्न कार्यजगत् के (च) नाश होने तथा (जायमानस्य) कल्प के अन्त में फिर उत्पन्न होनेवाले कार्यरूप जगत् के (च) फिर इसी प्रकार जगत् के उत्पन्न और विनाश होने में (क्षाम्) अपनी व्याप्ति से निवास के हेतु वा (भूरेः) व्यापक (सतः) अनादिवर्त्तमान विनाशरहित कारणरूप तथा (च) कार्यरूप (भवतः) वर्त्तमान (च) भूत और भविष्यत् उक्त जगत् के (गोपाम्) रक्षक और (द्रविणोदाम्) धन आदि पदार्थों को देनेवाले (अग्निम्) जगदीश्वर को (धारयन्) धारण करते वा कराते हैं, उसी एक सर्वशक्तिमान् जगदीश्वर को धारण करो वा कराओ ॥ ७ ॥
Connotation: - भूत, भविष्यत् और वर्त्तमान इन तीन कालों का ईश्वर से विना जाननेवाला प्रभु, कार्य कारण वा पापी और पुण्यात्मा जनों के कामों की व्यवस्था करनेवाला अन्य कोई पदार्थ नहीं है, सब यह मनुष्यों को मानना चाहिये ॥ ७ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे मनुष्या यं देवा विद्वांसो नु च पुरा च रयीणां सदनं जातस्य जायमानस्य च क्षां भूरेः सतश्च भवतश्च गोपां द्रविणोदामग्निं परमेश्वरं धारयंस्तमेवैकं सर्वशक्तिमन्तं यूयं धरध्वं धारयत वा ॥ ७ ॥

Word-Meaning: - (नु) शीघ्रम्। ऋचितुनु०। इति दीर्घः। (च) विलम्बेन (पुरा) कार्यात्प्राक्काले (च) वर्त्तमाने (सदनम्) उत्पत्तिस्थितिभङ्गस्य निमित्तकारणम् (रयीणाम्) वर्त्तमानानां पृथिव्यादिकार्य्यद्रव्याणाम् (जातस्य) उत्पन्नस्य कार्य्यस्य (च) प्रलयस्य (जायमानस्य) कल्पान्ते पुनरुत्पद्यमानस्य कार्यस्य जगतः (च) पुनर्वर्त्तमानप्रलययोः समुच्चये (क्षाम्) व्यापकत्वान्निवासहेतुम् (सतः) अनादिवर्त्तमानस्य विनाशरहितस्य कारणस्य (च) कार्यस्य (गोपाम्) रक्षकम् (भवतः) वर्त्तमानस्य (च) भूतभविष्यतोः (भूरेः) व्यापकस्य (देवाः) (अग्निम्०) इति पूर्ववत् ॥ ७ ॥
Connotation: - भूतभविष्यद्वर्त्तमानानां त्रयाणां कालानामीश्वराद्विना वेत्ता प्रभुः कार्यकारणयोः पापपुण्यात्मककर्मणां व्यवस्थापकोऽन्यः कश्चिदर्थो नास्तीति सदा सर्वैर्जनैर्मन्तव्यम् ॥ ७ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - भूत, भविष्य व वर्तमान या तिन्ही काळांचा ईश्वराशिवाय मोठा जाणकार, कार्यकारण, पापी व पुण्यात्मा लोकांच्या कामाची व्यवस्था करणारा दुसरा कोणता पदार्थ नाही, हे सर्व माणसांनी मानले पाहिजे. ॥ ७ ॥