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स प्र॒त्नथा॒ सह॑सा॒ जाय॑मानः स॒द्यः काव्या॑नि॒ बळ॑धत्त॒ विश्वा॑। आप॑श्च मि॒त्रं धि॒षणा॑ च साधन्दे॒वा अ॒ग्निं धा॑रयन्द्रविणो॒दाम् ॥

English Transliteration

sa pratnathā sahasā jāyamānaḥ sadyaḥ kāvyāni baḻ adhatta viśvā | āpaś ca mitraṁ dhiṣaṇā ca sādhan devā agniṁ dhārayan draviṇodām ||

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Pad Path

सः। प्र॒त्नऽथा॑। सह॑सा। जाय॑मानः। स॒द्यः। काव्या॑नि। बट्। अ॒ध॒त्त॒। विश्वा॑। आपः॑। च॒। मि॒त्रम्। धि॒षणा॑। च॒। सा॒ध॒न्। दे॒वाः। अ॒ग्निम्। धा॒र॒य॒न्। द्र॒वि॒णः॒ऽदाम् ॥ १.९६.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:96» Mantra:1 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:3» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:15» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब नव ऋचावाले छानवें सूक्त का प्रारम्भ है। इसके प्रथम मन्त्र में अग्नि शब्द से विद्वान् के गुणों का उपदेश किया है ।

Word-Meaning: - जो (देवाः) विद्वान् लोग (द्रविणोदाम्) द्रव्य के देनेहारे (अग्निम्) परमेश्वर वा भौतिक अग्नि को (धारयन्) धारण करते-कराते हैं, वे सब कामों को (साधन्) सिद्ध करते वा कराते हैं, उनके (आपः) प्राण (च) और विद्या पढ़ाना आदि काम (मित्रम्) मित्र (धिषणा, च) और बुद्धि हस्तक्रिया से सिद्ध होती हैं, जो मनुष्य (सहसा) बल से (प्रत्नथा) प्राचीनों के समान (जायमानः) प्रकट होता हुआ (विश्वा) समस्त (काव्यानि) विद्वानों के किये काव्यों को (सद्यः) शीघ्र (बट्) यथावत् (अधत्त) धारण करता है, (सः) वह विद्वान् और सुखी होता है ॥ १ ॥
Connotation: - मनुष्य ब्रह्मचर्य्य से विद्या की प्राप्ति के विना कवि नहीं हो सकता और न कविताई के विना परमेश्वर वा बिजुली को जानकर कार्य्यों को कर सकता है, इससे उक्त ब्रह्मचर्य्य आदि नियम का अनुष्ठान नित्य करना चाहिये ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथाऽग्निशब्देन विद्वद्गुणा उपदिश्यन्ते ।

Anvay:

ये देवा द्रविणोदामग्निं धारयँस्ते सर्वाणि कार्याणि च साधँस्तेषामापश्चाध्यापनादीनि कर्माणि मित्रं धिषणा हस्तक्रियया सिध्यन्ति यो मनुष्यः सहसा प्रत्नथा प्राचीन इव जायमानो विश्वा काव्यानि सद्यो बडधत्त यथावद्दधाति स विद्वान् सुखी च भवति ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (सः) (प्रत्नथा) प्रत्नः प्राचीन इव (सहसा) बलेन (जायमानः) प्रादुर्भवन् (सद्यः) शीघ्रम् (काव्यानि) कवेः कर्माणि (बट्) यथावत् (अधत्त) दधाति (विश्वा) विश्वानि (आपः) प्राणाः (च) अध्यापनादीनि कर्माणि (मित्रम्) सुहृत् (धिषणा) प्रज्ञा (च) हस्तक्रियासमुच्चये (साधन्) साध्नुवन्ति साधयन्ति वा (देवाः) विद्वांसः (अग्निम्) परमेश्वरं भौतिकं वा (धारयन्) धारयन्ति (द्रविणोदाम्) यो द्रव्याणि ददाति तम्। अत्रान्येभ्योऽपि दृश्यन्त इति विच् ॥ १ ॥
Connotation: - नहि मनुष्यो ब्रह्मचर्य्येण विद्याप्राप्त्या विना कविर्भवितुं शक्नोति न च कवित्वेन विना परमेश्वरं विद्युतं च विज्ञाय कार्याणि कर्त्तुं शक्नोति तस्मादेतन्नित्यमनुष्ठेयम् ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात अग्नी शब्दाच्या गुणांच्या वर्णनाने या अर्थाची पूर्व सूक्ताबरोबर संगती आहे हे जाणले पाहिजे. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - ब्रह्यचर्याने विद्या प्राप्त केल्याशिवाय कवी (बुद्धिमान) बनू शकत नाही व काव्या (ज्ञाना)शिवाय परमेश्वर व विद्युत यांना जाणून कार्य करू शकत नाही. त्यासाठी वरील ब्रह्मचर्य इत्यादी नियमाचे अनुष्ठान सदैव करावे. ॥ १ ॥