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द्वे विरू॑पे चरत॒: स्वर्थे॑ अ॒न्यान्या॑ व॒त्समुप॑ धापयेते। हरि॑र॒न्यस्यां॒ भव॑ति स्व॒धावा॑ञ्छु॒क्रो अ॒न्यस्यां॑ ददृशे सु॒वर्चा॑: ॥

English Transliteration

dve virūpe carataḥ svarthe anyānyā vatsam upa dhāpayete | harir anyasyām bhavati svadhāvāñ chukro anyasyāṁ dadṛśe suvarcāḥ ||

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Pad Path

द्वे। विरू॑पे॒ इति॒ विऽरू॑पे। च॒र॒तः॒। स्वर्थे॒ इति॑ सु॒ऽअर्थे॑। अ॒न्याऽअ॑न्या। व॒त्सम्। उप॑। धा॒प॒ये॒ते॒ इति॑। हरिः॑। अ॒न्यस्या॑म्। भव॑ति। स्व॒धाऽवा॑न्। शु॒क्रः। अ॒न्यस्या॑म्। द॒दृ॒शे॒। सु॒ऽवर्चाः॑ ॥ १.९५.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:95» Mantra:1 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:1» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:15» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब रात्रि और दिन कैसे हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (विरूपे) उजेले और अन्धेरे से अलग-अलग रूप और (स्वर्थे) उत्तम प्रयोजनवाले (द्वे) दो अर्थात् रात और दिन परस्पर (चरतः) वर्त्ताव वर्त्तते और (अन्यान्या) परस्पर (वत्सम्) उत्पन्न हुए संसार का (उपधापयेते) खान-पान कराते हैं (अन्यस्याम्) दिन से अन्य रात्रि में (स्वधावान्) जो अपने गुण से धारण किया जाता वह औषधि आदि पदार्थों का रस जिसमें विद्यमान है, ऐसा (हरिः) उष्णता आदि पदार्थों का निवारण करनेवाला चन्द्रमा (भवति) प्रकट होता है वा (अन्यस्याम्) रात्रि से अन्य दिवस होनेवाली वेला में (शुक्रः) आतपवान् (सुवर्चाः) अच्छे प्रकार उजेला करनेवाला सूर्य्य (ददृशे) देखा जाता है, वे रात्रि-दिन सर्वदा वर्त्तमान हैं, इनको रेखागणित आदि गणित विद्या से जानकर इनके बीच उपयोग करो ॥ १ ॥
Connotation: - मनुष्यों को चाहिये कि दिन-रात कभी निवृत्त नहीं होते किन्तु सर्वदा बने रहते हैं अर्थात् एक देश में नहीं तो दूसरे देश में होते हैं। जो काम रात और दिन में करने योग्य हों, उनको निरालस्य से करके सब कामों की सिद्धि करें ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ रात्रिदिवसौ कीदृशौ स्त इत्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे मनुष्या ये विरूपे स्वर्थे द्वे रात्रिदिने परस्परं चरतोऽन्यान्या वत्समुपधापयेते। तयोरन्यस्यां स्वधावान् हरिर्भवति। अन्यस्यां शुक्रः सुवर्चा सूर्यो ददृशे ते सर्वदा वर्त्तमाने रेखादिगणितविद्यया विज्ञायानयोर्मध्य उपयुञ्जीध्वम् ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (द्वे) रात्रिदिने (विरूपे) प्रकाशान्धकाराभ्यां विरुद्धरूपे (चरतः) (स्वर्थे) शोभनार्थे (अन्यान्या) परस्परं वर्त्तमाना (वत्सम्) जातं संसारम् (उप) (धापयेते) पाययेते (हरिः) हरत्युष्णतामिति हरिश्चन्द्रः (अन्यस्याम्) दिवसादन्यस्यां रात्रौ (भवति) (स्वधावान्) स्वेन स्वकीयेन गुणेन धार्य्यत इति स्वधाऽमृतरूप ओषध्यादिरसस्तद्वान् (शुक्रः) तेजस्वी (अन्यस्याम्) रात्रेरन्यस्यां दिनरूपायां वेलायाम् (ददृशे) दृश्यते (सुवर्चाः) शोभनदीप्तिः ॥ १ ॥
Connotation: - मनुष्यैर्नह्यहोरात्रौ कदाचिन्निवर्त्तेते। किन्तु देशान्तरे सदा वर्त्तेते, यानि कार्य्याणि रात्रौ कर्त्तव्यानि यानि च दिवसे तान्यनालस्येनानुष्ठाय सर्वकार्य्यसिद्धिः कर्त्तव्या ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात काल व अग्नीच्या गुणांच्या वर्णनाने या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती आहे, हे जाणले पाहिजे.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - दिवस व रात्र कधी निवृत्त होत नाहीत तर ते सदैव असतात. अर्थात एका देशात (स्थानी) नसेल तर दुसऱ्या देशात (स्थानी) असतात. जे काम रात्री व दिवसा करण्यायोग्य असेल ते सर्व काम आळशी न बनता सिद्ध करावे. ॥ १ ॥