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इ॒मं स्तोम॒मर्ह॑ते जा॒तवे॑दसे॒ रथ॑मिव॒ सं म॑हेमा मनी॒षया॑। भ॒द्रा हि न॒: प्रम॑तिरस्य सं॒सद्यग्ने॑ स॒ख्ये मा रि॑षामा व॒यं तव॑ ॥

English Transliteration

imaṁ stomam arhate jātavedase ratham iva sam mahemā manīṣayā | bhadrā hi naḥ pramatir asya saṁsady agne sakhye mā riṣāmā vayaṁ tava ||

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Pad Path

इ॒मम्। स्तोम॑म्। अर्ह॑ते जा॒तऽवे॑दसे। रथ॑म्ऽइव। सम्। म॒हे॒म॒। म॒नी॒षया॑। भ॒द्रा। हि। नः॒। प्रऽम॑तिः। अ॒स्य॒। स॒म्ऽसदि॑। अग्ने॑। स॒ख्ये। मा। रि॒षा॒म॒। व॒यम्। तव॑ ॥ १.९४.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:94» Mantra:1 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:30» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:15» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सोलह ऋचावाले चौरानवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में अग्नि शब्द से विद्वान् और भौतिक अर्थों का उपदेश किया है ।

Word-Meaning: - हे (अग्ने) विद्यादि गुणों से विदित विद्वन् ! जैसे (वयम्) हम लोग (मनीषया) विद्या, क्रिया और उत्तम शिक्षा से उत्पन्न हुई बुद्धि से (अर्हते) योग्य (जातवेदसे) जो कि उत्पन्न हुए जगत् के पदार्थों को जानता है वा उत्पन्न हुए कार्य्यरूप द्रव्यों में विद्यमान उस विद्वान् के लिये (रथमिव) जैसे विहार करानेहारे विमान आदि यान को वैसे (इमम्) कार्य्यों में प्रवृत्त इस (स्तोमम्) गुणकीर्त्तन को (संमहेम) प्रशंसित करें वा (अस्य) इस (तव) आपके (सख्ये) मित्रपन के निमित्त (संसदि) जिसमें विद्वान् स्थित होते हैं उस सभा में (नः) हम लोगों को (भद्रा) कल्याण करनेवाली (प्रमतिः) प्रबल बुद्धि है उसको (हि) ही (मा, रिषामा) मत नष्ट करें, वैसे आप भी न नष्ट करें ॥ १ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि जैसे विद्या से सिद्ध होते हुए विमानों को सिद्धकर मित्रों का सत्कार करें वैसे ही पुरुषार्थ से विद्वानों का भी सत्कार करें। जब-जब सभासद् जन सभा में बैठें तब-तब हठ और दुराग्रह को छोड़ सबके सुख करने योग्य काम को न छोड़ें। जो-जो अग्नि आदि पदार्थों में विज्ञान हो उस-उस को सबके साथ मित्रपन का आश्रय करके और सबके लिये दें, क्योंकि इसके विना मनुष्यों के हित की संभावना नहीं होती ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथाऽग्निशब्देन विद्वद्भौतिकार्थावुपदिश्येते ।

Anvay:

हे अग्ने विद्वन् यथा वयं मनीषयाऽर्हते जातवेदसे रथमिवेमं स्तोमं संमहेम वास्य तव सख्ये संसदि नो या भद्रा प्रमतिरस्ति तां हि खलु मा रिषाम तथा त्वं मा रिष ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (इमम्) प्रत्यक्षं कार्यनिष्ठम् (स्तोमम्) गुणकीर्त्तनम् (अर्हते) योग्याय (जातवेदसे) यो विद्वान् जातं सर्वं वेत्ति तस्मै जातेषु कार्येषु विद्यमानाय वा (रथमिव) यथा रमणसाधनं विमानादियानं तथा (सम्) (महेम) सत्कुर्याम। अत्रान्येषामपि दृश्यत इति दीर्घः। (मनीषया) विद्याक्रियासुशिक्षाजातया प्रज्ञया (भद्रा) कल्याणकारिणी (हि) खलु (नः) अस्माकम् (प्रमतिः) प्रकृष्टा बुद्धिः (अस्य) सभाध्यक्षस्य (संसदि) संसीदन्ति विद्वांसो यस्याम् तस्याम् (अग्ने) विद्यादिगुणैर्विख्यात (सख्ये) सख्युर्भावे कर्मणि वा (मा) निषेधे (रिषामा) हिंसिता भवेम। अत्रान्येषामपीति दीर्घः। (वयम्) (तव) ॥ १ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा शिल्पविद्यासिद्धानि विमानादीनि संसाध्य मित्रान् सत्कुर्युस्तथैव पुरुषार्थेन विदुषः सत्कुर्युः। यदा यदा सभासदः सभायामासीरंस्तदा तदा हठदुराग्रहं त्यक्त्वा सर्वेषां कल्याणकरं कार्य्यं न त्यजेयुः। यद्यदग्न्यादिपदार्थेषु विज्ञानं स्यात्तत्तत्सर्वैः सह मित्रभावमाश्रित्य सर्वेभ्यो निवेदयेयुः। नैतेन विना मनुष्याणां हितं संभवति ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात ईश्वर, सभाध्यक्ष, विद्वान व अग्नी यांच्या गुणांचे वर्णन आहे. त्यामुळे या सूक्तार्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसे जशी शिल्पविद्यासिद्ध होऊन विमाने तयार करून मदत करणाऱ्या मित्रांचा सत्कार करतात, तसा पुरुषार्थाने विद्वानांचाही सत्कार करावा. ज्या ज्या वेळी सभासद जनसभेत बसतात तेव्हा त्यांनी हट्ट, दुराग्रहाचा त्याग करावा. सर्वांना सुख लाभेल असे कार्य करावे, ते सोडू नये. जे जे अग्नी इत्यादी पदार्थात विज्ञान आहे ते ते सर्वांना मित्रत्वभावाने विदित करावे. कारण त्याशिवाय माणसांचे हित साधता येत नाही. ॥ १ ॥