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अग्नी॑षोमा॒ चेति॒ तद्वी॒र्यं॑ वां॒ यदमु॑ष्णीतमव॒सं प॒णिं गाः। अवा॑तिरतं॒ बृस॑यस्य॒ शेषोऽवि॑न्दतं॒ ज्योति॒रेकं॑ ब॒हुभ्य॑: ॥

English Transliteration

agnīṣomā ceti tad vīryaṁ vāṁ yad amuṣṇītam avasam paṇiṁ gāḥ | avātiratam bṛsayasya śeṣo vindataṁ jyotir ekam bahubhyaḥ ||

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Pad Path

अग्नी॑षोमा। चेति॑। तत्। वी॒र्य॑म्। वा॒म्। यत्। अमु॑ष्णीतम्। अ॒व॒सम्। प॒णिम्। गाः। अव॑। अ॒ति॒र॒त॒म्। बृस॑यस्य। शेषः॑। अवि॑न्दतम्। ज्योतिः॑। एक॑म्। ब॒हुऽभ्यः॑ ॥ १.९३.४

Rigveda » Mandal:1» Sukta:93» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:28» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:14» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे कैसे हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जो (अग्नीषोमा) वायु और विद्युत् (यत्) जिस (अवसम्) रक्षा आदि (पणिम्) व्यवहार को (अमुष्णीतम्) चोरते प्रसिद्धाप्रसिद्ध ग्रहण करते (गाः) सूर्य्य की किरणों का विस्तार कर (अवातिरतम्) अन्धकार का विनाश करते (बहुभ्यः) अनेकों पदार्थों से (एकम्) एक (ज्योतिः) सूर्य के प्रकाश को (अविन्दतम्) प्राप्त कराते हैं, जिनके (बृसयस्य) ढाँपनेवाले सूर्य का (शेषः) अवशेष भाग लोकों को प्राप्त होता है (वाम्) इनका (तत्) वह (वीर्य्यम्) पराक्रम (चेति) विदित है अर्थात् सब कोई जानते हैं ॥ ४ ॥
Connotation: - मनुष्यों को यह जानना चाहिये कि जितना प्रसिद्ध अन्धकार को ढाँप देने और सबलोकों को प्रकाशित करनेहारा तेज होता है, उतना सब कारणरूप पवन और बिजुली की उत्तेजना से होता है ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तौ कीदृशावित्युपदिश्यते ।

Anvay:

यावग्नीषोमा यदवसं पणिं चामुष्णीतं गा विस्तार्य्यं तमोऽवातिरतं बहुभ्य एक ज्योतिरविन्दतं ययोर्वृसयस्य शेषो लोकान् प्राप्नोति तद् वामनयोर्वीर्यं चेति सर्वैर्विदितमस्ति ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (अग्नीषोमा) वायुविद्युतौ (चेति) विज्ञातं प्रख्यातमस्ति (तत्) (वीर्यम्) पृथिव्यादिलोकानां बलम् (वाम्) ययोः (यत्) (अमुष्णीतम्) चोरवद्धरतम् (अवसम्) रक्षणादिकम् (पणिम्) व्यवहारम् (गाः) किरणान् (अव) (अतिरतम्) तमो हिंस्तः। अवतिरतिरिति वधकर्मा०। निघं० २। १९। (बृसयस्य) आच्छादकस्य। वस आच्छादन इत्यस्मात् पृषोदरादित्वादिष्टसिद्धिः। (शेषः) अवशिष्टो भागः (अविन्दतम्) लम्भयतम् (ज्योतिः) दीप्तिम् (एकम्) असहायम् (बहुभ्यः) अनेकेभ्यः पदार्थेभ्यः ॥ ४ ॥
Connotation: - मनुष्यैर्यावत्प्रसिद्धं तमस आच्छादकं सर्वलोकप्रकाशकं तेजो जायते तावत्सर्वं कारणभूतयोर्वायुविद्युतोः सकाशाद्भवतीति बोध्यम् ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी हे जाणले पाहिजे की घोर अंधकार नष्ट करणारे व सर्व गोलांना प्रकाशित करणारे जे तेज आहे ते सर्व कारणरूपी वायू व विद्युतच्या साह्याने प्राप्त होते.