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अग्नी॑षोमा॒ य आहु॑तिं॒ यो वां॒ दाशा॑द्ध॒विष्कृ॑तिम्। स प्र॒जया॑ सु॒वीर्यं॒ विश्व॒मायु॒र्व्य॑श्नवत् ॥

English Transliteration

agnīṣomā ya āhutiṁ yo vāṁ dāśād dhaviṣkṛtim | sa prajayā suvīryaṁ viśvam āyur vy aśnavat ||

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Pad Path

अग्नी॑षोमा। यः। आहु॑तिम्। यः। वा॒म्। दाशा॒त्। ह॒विःऽकृ॑तिम्। सः। प्र॒ऽजया॑। सु॒ऽवीर्य॑म्। विश्व॑म्। आयुः॑। वि। अ॒श्न॒व॒त् ॥ १.९३.३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:93» Mantra:3 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:28» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:14» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब उक्त अग्नि, सोम शब्दों से भौतिक सम्बन्धी कार्यों का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ।

Word-Meaning: - (यः) सबके हित को चाहनेवाला और (यः) जो यज्ञ का अनुष्ठान करनेवाला मनुष्य (अग्नीषोमा) भौतिक अग्नि और पवन (वाम्) इन दोनों के बीच (हविष्कृतिम्) होम करने के योग्य पदार्थ का कारणरूप (आहुतिम्) घृत आदि उत्तम-उत्तम सुगन्धितादि पदार्थों से युक्त आहुति को (दाशात्) देवे (सः) वह (प्रजया) उत्तम-उत्तम सन्तानयुक्त प्रजा से (सुवीर्य्यम्) श्रेष्ठ पराक्रमयुक्त (विश्वम्) समग्र (आयुः) आयुर्दा को (व्यश्नवत्) प्राप्त होवे ॥ ३ ॥
Connotation: - जो विद्वान् वायु, वृष्टि, जल और ओषधियों की शुद्धि के लिये अच्छे संस्कार किये हुए हवि को अग्नि के बीच होम के श्रेष्ठ सोमलतादि ओषधियों की प्राप्ति कर उनसे प्राणियों को सुख देते हैं, वे शरीर आत्मा के बल से युक्त होते हुए पूर्ण सुख करनेवाली आयु को प्राप्त होते हैं, अन्य नहीं ॥ ३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरेताभ्यां भौतिकसम्बन्धकृत्यमुपदिश्यते ।

Anvay:

यो यो मनुष्योऽग्नीषोमयोर्वामेतयोर्मध्ये हविष्कृतिमाहुतिं दाशात् स प्रजया सुवीर्यं विश्वमायुर्व्यश्नवत् ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (अग्नीषोमा) अग्निवाय्वोः। अत्र षष्ठीद्विवचनस्य स्थाने डादेशः। (यः) सर्वस्य हितं प्रेप्सुर्मनुष्यः (आहुतिम्) घृतादिसुसंस्कृताम् (यः) यज्ञानुष्ठाता (वाम्) एतयोः (दाशात्) दाशेद्दद्यात् (हविष्कृतिम्) हविषो होतव्यस्य पदार्थस्य कृतिं कारणरूपाम् (सः) (प्रजया) सुपुत्रादियुक्तया (सुवीर्यम्) सुष्ठुपराक्रमयुक्तम् (विश्वम्) समग्रम् (आयुः) जीवनम् (वि) विविधार्थे (अश्नवत्) व्याप्नुयात्। अत्र व्यत्ययेन परस्मैपदं शप् च ॥ ३ ॥
Connotation: - ये विद्वांसो वायुवृष्टिजलौषधिशुद्ध्यर्थ सुसंस्कृतं हविरग्नौ हुत्वोत्तमान्सोमलतादीन् प्राप्य तैः प्राणिनः सुखयन्ति च ते शरीरात्मबलयुक्ताः सन्तः पूर्णसुखमायुः प्राप्नुवन्ति नेतरे ॥ ३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे विद्वान, वायू, वृष्टी, जल व औषधींच्या शुद्धीसाठी संस्कारित केलेली आहुती होम अग्नीत टाकतात व श्रेष्ठ सोमलता इत्यादी औषधी प्राप्त करून त्याद्वारे प्राण्यांना सुख देतात. त्यांच्या शरीर, आत्म्याचे बल वाढते व ते पूर्ण सुखी आयुष्य भोगतात. इतर नव्हे. ॥ ३ ॥