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विश्वा॑नि दे॒वी भुव॑नाभि॒चक्ष्या॑ प्रती॒ची चक्षु॑रुर्वि॒या वि भा॑ति। विश्वं॑ जी॒वं च॒रसे॑ बो॒धय॑न्ती॒ विश्व॑स्य॒ वाच॑मविदन्मना॒योः ॥

English Transliteration

viśvāni devī bhuvanābhicakṣyā pratīcī cakṣur urviyā vi bhāti | viśvaṁ jīvaṁ carase bodhayantī viśvasya vācam avidan manāyoḥ ||

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Pad Path

विश्वा॑नि। दे॒वी। भुव॑ना। अ॒भि॒ऽचक्ष्य॑। प्र॒ती॒ची। चक्षुः॑। उ॒र्वि॒या। वि। भा॒ति॒। विश्व॑म्। जी॒वम्। च॒रसे॑। बो॒धय॑न्ती। विश्व॑स्य। वाच॑म्। अ॒वि॒द॒त्। म॒ना॒योः ॥ १.९२.९

Rigveda » Mandal:1» Sukta:92» Mantra:9 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:25» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:14» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसी है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे स्त्रि ! जैसे (प्रतीची) सूर्य की चाल से परे को ही जाती और (चरसे) व्यवहार करने वा सुख और दुःख भोगने के लिये (विश्वम्) सब (जीवम्) जीवों को (बोधयन्ती) चिताती हुई (देवी) प्रकाश को प्राप्त (उषाः) प्रातःसमय की वेला (मनायोः) मान के समान आचरण करनेवाले (विश्वस्य) जीवमात्र की (वाचम्) वाणी को (अविदत्) प्राप्त होती (चक्षुः) और आँखों के समान सब वस्तु के दिखाई पड़ने का निदान (विश्वानि) समस्त (भुवना) लोकों को (अभिचक्ष्य) सब प्रकार से प्रकाशित करती हुई (उर्विया) पृथिवी के साथ (बिभाति) अच्छे प्रकार प्रकाशित होती है, वैसी तू भी हो ॥ ९ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे उत्तम स्त्री सब प्रकार से अपने पति को आनन्दित करती है, वैसे प्रातःकाल की वेला समस्त जगत् को आनन्द देती है ॥ ९ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः सा कीदृशीत्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे स्त्रि यथा प्रतीची चरसे विश्वं जीवं बोधयन्ती देव्युषा मनायोर्विश्वस्य वाचमविदत् विन्दति चक्षुरिव विश्वानि भुवनाभिचक्ष्योर्विया सह बिभाति तथा त्वं भव ॥ ९ ॥

Word-Meaning: - (विश्वानि) सर्वाणि (देवी) देदीप्यमाना (भुवना) लोकान् (अभिचक्ष्य) अभितः सर्वतः प्रकाश्य। अत्रान्येषामापि दृश्यत इति दीर्घः। (प्रतीची) प्रतीचीनं गच्छन्ती (चक्षुः) नेत्रवद्दर्शनहेतुः (उर्विया) उर्व्या पृथिव्या सह। अत्रोर्वी शब्दाट्टास्थाने डियाजादेशः। (वि) विविधार्थे (भाति) प्रकाशयते (विश्वम्) सर्वम् (जीवम्) जीवसमूहम् (चरसे) व्यवहर्तुं भोजयितुं वा (बोधयन्ती) चेतयन्ती (विश्वस्य) सर्वस्य प्राणिजातस्य (वाचम्) वाणीम् (अविदत्) (मनायोः) यो मान इवाचरति तस्य। अत्र मानशब्दस्य ह्रस्वत्वं पृषोदरादित्वात् ॥ ९ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सती स्त्री सर्वथा स्वपतिमानन्दयति तथैवोषाः समग्रं जगदानन्दयति ॥ ९ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी उत्तम स्त्री सर्व प्रकारे आपल्या पतीला आनंदित करते तशी प्रातःकाळची वेळ संपूर्ण जगाला आनंद देते. ॥ ९ ॥