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यु॒क्ष्वा हि वा॑जिनीव॒त्यश्वाँ॑ अ॒द्यारु॒णाँ उ॑षः। अथा॑ नो॒ विश्वा॒ सौभ॑गा॒न्या व॑ह ॥

English Transliteration

yukṣvā hi vājinīvaty aśvām̐ adyāruṇām̐ uṣaḥ | athā no viśvā saubhagāny ā vaha ||

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Pad Path

यु॒क्ष्व। हि। वा॒जि॒नी॒ऽव॒ति॒। अश्वा॑न्। अ॒द्य। अ॒रु॒णान्। उ॒षः॒। अथ॑। नः॒। विश्वा॑। सौभ॑गानि। आ। व॒ह॒ ॥ १.९२.१५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:92» Mantra:15 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:26» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:14» Mantra:15


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह क्या करती है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ।

Word-Meaning: - हे स्त्रि ! जैसे (वाजिनीवति) जिसमें ज्ञान वा गमन करानेवाली क्रिया हैं, वह (उषः) प्रातःसमय की वेला (अरुणान्) लाल (अश्वान्) चमचमाती फैलती हुई किरणों का (युक्ष्व) संयोग करती है, (अथ) पीछे (नः) हम लोगों के लिये (विश्वा) समस्त (सौभगानि) सौभाग्यपन के कामों को अच्छे प्रकार प्राप्त कराती (हि) ही है, वैसे (अद्य) आज तू शुभगुणों से युक्त और (आवह) सब ओर से प्राप्तकर ॥ १५ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। प्रतिदिन निरन्तर पुरुषार्थ के विना मनुष्यों को ऐश्वर्य्य की प्राप्ति नहीं होती, इससे उनको चाहिये कि ऐसा पुरुषार्थ नित्य करें, जिससे ऐश्वर्य बढ़े ॥ १५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः सा किं करोतीत्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे स्त्रि यथा वाजिनीवत्युषोऽरुणानश्वान्युक्ष्व युनक्ति। अथेत्यनन्तरं नोऽस्मभ्यं विश्वाऽखिलानि सौभगानि प्रापयति हि तथाद्य त्वं शुभान् गुणान् युङ्ग्ध्यावह ॥ १५ ॥

Word-Meaning: - (युक्ष्व) युनक्ति। अत्र बहुलं छन्दसीति विकरणस्य लुक्। द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घश्च। (हि) खलु (वाजिनीवति) वाजयन्ति ज्ञापयन्ति गमयन्ति वा यासु क्रियासु ताः प्रशस्ता वाजिन्यो विद्यन्तेऽस्यां सा (अश्वान्) वेगवतः किरणान् (अद्य) अस्मिन्नहनि (अरुणान्) अरुणविशिष्टान् (उषः) उषाः (अथ) अनन्तरम्। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (नः) अस्मभ्यम् (विश्वा) अखिलानि (सौभगानि) सुभगानां सुष्ठ्वैश्वर्यवतां पुरुषाणाम् (आ) समन्तात् (वह) प्रापय ॥ १५ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। नहि प्रतिदिनं सततं पुरुषार्थेन विना मनुष्याणामैश्वर्य्यप्राप्तिर्जायते तस्मादेवं तैर्नित्यं प्रयतितव्यं यत ऐश्वर्य्यं वर्धेत ॥ १५ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. प्रत्येक दिवशी सतत पुरुषार्थाशिवाय माणसांना ऐश्वर्याची प्राप्ती होत नाही. त्यामुळे त्यांनी असा पुरुषार्थ नित्य करावा की ज्यामुळे ऐश्वर्य वाढेल. ॥ १५ ॥