Go To Mantra

पुन॑:पुन॒र्जाय॑माना पुरा॒णी स॑मा॒नं वर्ण॑म॒भि शुम्भ॑माना। श्व॒घ्नीव॑ कृ॒त्नुर्विज॑ आमिना॒ना मर्त॑स्य दे॒वी ज॒रय॒न्त्यायु॑: ॥

English Transliteration

punaḥ-punar jāyamānā purāṇī samānaṁ varṇam abhi śumbhamānā | śvaghnīva kṛtnur vija āminānā martasya devī jarayanty āyuḥ ||

Mantra Audio
Pad Path

पुनः॑ऽपुनः। जाय॑माना। पु॒रा॒णी। स॒मा॒नम्। वर्ण॑म्। अ॒भि। शुम्भ॑माना। श्व॒घ्नीऽइ॑व। कृ॒त्नुः। विजः॑। आ॒ऽमि॒ना॒ना। मर्त॑स्य। दे॒वी। ज॒रय॑न्ती। आयुः॑ ॥ १.९२.१०

Rigveda » Mandal:1» Sukta:92» Mantra:10 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:25» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:14» Mantra:10


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसी है और क्या करती है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जो (श्वघ्नीव) कुत्ते और हिरणों को मारनेहारी वृकी के समान वा जैसे (कृत्नुः) छेदन करनेवाली श्येनी (विजः) इधर-उधर चलते हुए पक्षियों का छेदन करती है जैसे (आमिनाना) हिंसिका (मर्त्तस्य) मरने-जीनेहारे जीवमात्र की (आयुः) आयुर्दा को (जरयन्ती) हीन करती हुई (पुनः पुनः) दिनोंदिन (जायमाना) उत्पन्न होनेवाली (समानम्) एकसे (वर्णम्) रूप को (अभि शुम्भमाना) सब ओर से प्रकाशित करती हुई वा (पुराणी) सदा से वर्त्तमान (देवी) प्रकाशमान प्रातःकाल की वेला है, वह जागरित होके मनुष्यों को सेवने योग्य है ॥ १० ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जैसे छिपके वा देखते-देखते भेड़िया की स्त्री वृकी वन के जीवों को तोड़ती और जैसे बाजिनी उड़ते हुए पखेरुओं को विनाश करती है, वैसे ही यह प्रातःसमय की वेला सोते हुए हम लोगों की आयुर्दा को धीरे-धीरे अर्थात् दिनों-दिन काटती है ऐसा जान और आलस्य छोड़कर हम लोगों को रात्रि के चौथे प्रहर में जाग के विद्या, धर्म और परोपकार आदि व्यवहारों में नित्य उचित वर्त्ताव रखना चाहिये। जिनकी इस प्रकार की बुद्धि है, वे लोग आलस्य और अधर्म्म के बीच में कैसे प्रवृत्त हों ! ॥ १० ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः सा कीदृशी किं करोतीत्युपदिश्यते ।

Anvay:

या श्वघ्नीव कृत्नुर्विज आमिनानेव मर्त्तस्यायुर्जरयन्ती पुनः पुनर्जायमाना समानं वर्णमभिशुम्भमाना पुराणी देव्युषा अस्ति सा जागरितैर्मनुष्यैः सेवनीया ॥ १० ॥

Word-Meaning: - (पुनः पुनः) प्रतिदिनम् (जायमाना) उत्पद्यमाना (पुराणी) प्रवाहरूपेण सनातनी (समानम्) तुल्यम् (वर्णम्) रूपम् (अभि) अभितः (शुम्भमाना) प्रकाशयन्ती (श्वघ्नीव) यथा वृकी शुनः श्वादीन्मृगान् कृन्तन्ती (कृत्नुः) छेदिका श्येनी इव (विजः) इतस्ततश्चलतः पक्षिणः (आमिनाना) समन्ताद्धिंसन्ती। मीञ् हिंसायामित्यस्य रूपम्। (मर्त्तस्य) मरणधर्मसहितस्य प्राणिजातस्य (देवी) प्रकाशमाना (जरयन्ती) हीनं कुर्वती (आयुः) जीवनम् ॥ १० ॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यथाऽन्तर्धाना प्रसिद्धा वा वृकी मृगान् छिनत्ति यथा वा श्येन्युड्डीयमानान् पक्षिणो हन्ति तथैवेयमुषा अस्माकमायुः शनैः शनैः कृन्ततीति विदित्वाऽस्माभिरालस्यं त्यक्त्वा रजन्याश्चरमे याम उत्थाय विद्याधर्मपरोपकारादिषु व्यवहारेषु यथावन्नित्यं वर्त्तितव्यम्। येषामीदृशी बुद्धिस्त आलस्याऽधर्मयोर्मध्ये कथं प्रवर्त्तेरन् ॥ १० ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत जसे लांडगी लपूनछपून वनातील प्राण्यांचे लचके तोडते व जसे बहिर्ससाण्याची मादी उडणाऱ्या पक्ष्यांचा विनाश करते तसेच ही प्रातःकाळची वेळ निद्रिस्त लोकांचे आयुष्य हळूहळू अर्थात दिवसेंदिवस कमी करते हे जाणून आळस सोडून आम्ही रात्रीच्या चौथ्या प्रहरी जागे होऊन विद्या, धर्म व परोपकार इत्यादी व्यवहार सदैव योग्यरीत्या पार पाडावा. ज्यांची अशा प्रकारची बुद्धी आहे ते लोक आळस व अधर्मात कसे प्रवृत्त होतील? ॥ १० ॥