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सोमो॑ धे॒नुं सोमो॒ अर्व॑न्तमा॒शुं सोमो॑ वी॒रं क॑र्म॒ण्यं॑ ददाति। सा॒द॒न्यं॑ विद॒थ्यं॑ स॒भेयं॑ पितृ॒श्रव॑णं॒ यो ददा॑शदस्मै ॥

English Transliteration

somo dhenuṁ somo arvantam āśuṁ somo vīraṁ karmaṇyaṁ dadāti | sādanyaṁ vidathyaṁ sabheyam pitṛśravaṇaṁ yo dadāśad asmai ||

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Pad Path

सोमः॑। धे॒नुम्। सोमः॑। अर्व॑न्तम्। आ॒शुम्। सोमः॑। वी॒रम्। क॒र्म॒ण्य॑म्। द॒दा॒ति॒। स॒द॒न्य॑म्। वि॒द॒थ्य॑म्। स॒भेय॑म्। पि॒तृ॒ऽश्रव॑णम्। यः। ददा॑शत्। अ॒स्मै॒ ॥ १.९१.२०

Rigveda » Mandal:1» Sukta:91» Mantra:20 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:22» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:14» Mantra:20


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह क्या करता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (यः) जो सभाध्यक्ष आदि (अस्मै) इस धर्मात्मा पुरुष को (सादन्यम्) घर बनाने के योग्य सामग्री (विदथ्यम्) यज्ञ वा युद्धों में प्रशंसनीय तथा (सभेयम्) सभा में प्रशंसनीय सामग्री और (पितृश्रवणम्) ज्ञानीलोग जिससे सुने जाते हैं ऐसे व्यवहार को (ददाशत्) देता है, वह (सोमः) सोम अर्थात् सभाध्यक्ष आदि सोमलतादि ओषधि के लिये (धेनुम्) वाणी को (आशुम्) शीघ्र गमन करनेवाले (अर्वन्तम्) अश्व को या (सोमः) उत्तम कर्मकर्त्ता सो (कर्मण्यम्) अच्छे-अच्छे कामों से सिद्ध हुए (वीरम्) विद्या और शूरता आदि गुणों से युक्त मनुष्य को (ददाति) देता है ॥ २० ॥
Connotation: - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। जैसे विद्वान् उत्तम शिक्षा को प्राप्त वाणी का उपदेश कर अच्छे पुरुषार्थ को प्राप्त होकर कार्यसिद्धि कराते हैं, वैसे ही सोम ओषधियों का समूह श्रेष्ठ बल और पुष्टि को कराता है ॥ २० ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स किं करोतीत्युपदिश्यते ।

Anvay:

यः सोमोऽस्मै सादन्यं विदथ्यं सभेयं पितृश्रवणं ददाशत् स सोमोऽस्मै धेनुं स सोम आशुमर्वन्तं सोमः कर्मण्यं वीरं च ददाति ॥ २० ॥

Word-Meaning: - (सोमः) उक्तः (धेनुम्) वाणीम् (सोमः) (अर्वन्तम्) अश्वम् (आशुम्) शीघ्रगामिनम् (सोमः) (वीरम्) विद्याशौर्यादिगुणोपेतम् (कर्मण्यम्) कर्मणा सम्पन्नम्। कर्मवेषाद्यत्। अ० ५। १। १००। इति कर्मशब्दाद्यत्। ये चाभावकर्मणोरिति प्रकृतिभावश्च। (ददाति) (सादन्यम्) सदनं गृहमर्हति। छन्दसि च। अ० ५। १। ६७। इति सदनशब्दाद्यत्। अन्येषामपीति दीर्घः। (विदथ्यम्) विदथेषु यज्ञेषु युद्धेषु वा साधुम् (सभेयम्) सभायां साधुम्। ढश्छन्दसि। अ० ४। ४। १०६। इति सभाशब्दाद्यत्। (पितृश्रवणम्) पितरो ज्ञानिनः श्रूयन्ते येन तम् (यः) सभाध्यक्षः सोमराजो वा (ददाशत्) दाशति। लडर्थे लेट्। बहुलं छन्दसीति शपःस्थाने श्लुः। (अस्मै) धर्मात्मने ॥ २० ॥
Connotation: - अत्र श्लेषालङ्कारः। यथा विद्वांसः सुशिक्षितां वाणीमुपदिश्य सुपुरुषार्थं प्राप्यं कार्यसिद्धिः कारयन्ति तथैव सोमराज ओषधिगणः श्रेष्ठानि बलानि पुष्टिं च करोति ॥ २० ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. जसे विद्वान उत्तम शिक्षणाने प्राप्त झालेल्या वाणीचा उपदेश करतात, चांगला पुरुषार्थ करून कार्यसिद्धी करवितात तसेच सोम औषधींचा समूह श्रेष्ठ बल व पुष्टी करवितो. ॥ २० ॥