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सं ते॒ पयां॑सि॒ समु॑ यन्तु॒ वाजा॒: सं वृष्ण्या॑न्यभिमाति॒षाह॑:। आ॒प्याय॑मानो अ॒मृता॑य सोम दि॒वि श्रवां॑स्युत्त॒मानि॑ धिष्व ॥

English Transliteration

saṁ te payāṁsi sam u yantu vājāḥ saṁ vṛṣṇyāny abhimātiṣāhaḥ | āpyāyamāno amṛtāya soma divi śravāṁsy uttamāni dhiṣva ||

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Pad Path

सम्। ते॒। पयां॑सि। सम्। ऊँ॒ इति॑। य॒न्तु॒। वाजाः॑। सम्। वृष्ण्या॑नि। अ॒भि॒मा॒ति॒ऽसहः॑। आ॒ऽप्याय॑मानः। अ॒मृता॑य। सो॒म॒। दि॒वि। श्रवां॑सि। उ॒त्ऽत॒मानि॑। धि॒ष्व॒ ॥ १.९१.१८

Rigveda » Mandal:1» Sukta:91» Mantra:18 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:22» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:14» Mantra:18


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ।

Word-Meaning: - हे (सोम) ऐश्वर्य्य को पहुँचानेवाले विद्वान् ! (ते) आपके जो (वृष्ण्यानि) पराक्रमवाले (पयांसि) जल वा अन्न हम लोगों को (संयन्तु) अच्छे प्रकार प्राप्त हों और (अभिमातिषाहः) जिनसे शत्रुओं को सहें वे (वाजाः) संग्राम (सम्) प्राप्त हों उनसे (दिवि) विद्याप्रकाश में (अमृताय) मोक्ष के लिये (आप्यायमानः) दृढ़ बलवाले आप वा उत्तम रसके लिये दृढ़ बलकारक ओषधिगण (उत्तमानि) अत्यन्त श्रेष्ठ (श्रवांसि) वचनों वा अन्नों को (संधिष्व) धारण कीजिये वा करता है ॥ १८ ॥
Connotation: - मनुष्यों को चाहिये कि विद्या और पुरुषार्थ से विद्वानों के सङ्ग, ओषधियों के सेवन और प्रयोजन से जो-जो प्रशंसित कर्म, प्रशंसित गुण और श्रेष्ठ पदार्थ प्राप्त होते हैं, उनका धारण और उनकी रक्षा तथा धर्म, कामों को सिद्धकर मोक्ष की सिद्धि करें ॥ १८ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स किं कुर्यादित्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे सोम ते तव यानि वृष्ण्यानि पयांस्यस्मान् संयन्तु अभिमातिषाहो वाजाः संयन्तु तैर्दिव्यमृतायाप्यायमानस्त्वमुत्तमानि श्रवांसि संधिष्व ॥ १८ ॥

Word-Meaning: - (सम्) (ते) तव सृष्टौ (पयांसि) जलान्यन्नानि वा (सम्) (उ) वितर्के (यन्तु) प्राप्नुवन्तु (वाजाः) संग्रामाः (सम्) (वृष्ण्यानि) वीर्य्यप्रापकानि (अभिमातिषाहः) अभिमातीन् शत्रून् सहन्ते यैस्ते (आप्यायमानः) पुष्टः पुष्टिकारकः (अमृताय) मोक्षाय (सोम) ऐश्वर्य्यस्य प्रापक (दिवि) विद्याप्रकाशे (श्रवांसि) श्रवणान्यन्नानि वा (उत्तमानि) श्रेष्ठतमानि (धिष्व) धर। अत्र सुधितवसुधितनेमधित०। अ० ७। ४। ४५। अस्मिन् सूत्रेऽयं निपातितः ॥ १८ ॥
Connotation: - अत्र श्लेषालङ्कारः। मनुष्यैर्विद्यापुरुषार्थाभ्यां विद्वत्सङ्गादोषधिसेवनपथ्याभ्यां च यानि प्रशस्तानि कर्माणि प्रशस्ता गुणाः श्रेष्ठानि वस्तूनि च प्राप्नुवन्ति तानि धृत्वा रक्षित्वा धर्मार्थकामान् संसाध्य मुक्तिसिद्धिः कार्य्या ॥ १८ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी विद्या व पुरुषार्थाने विद्वानांची संगती, औषधांचे सेवन व प्रयोजन यांनी जे जे प्रशंसित कर्म गुण व श्रेष्ठ पदार्थ प्राप्त होतात, त्यांचे धारण व रक्षण करावे. धर्म, अर्थ, काम सिद्ध करून मोक्षाची सिद्धी करावी. ॥ १८ ॥