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आ प्या॑यस्व मदिन्तम॒ सोम॒ विश्वे॑भिरं॒शुभि॑:। भवा॑ नः सु॒श्रव॑स्तम॒: सखा॑ वृ॒धे ॥

English Transliteration

ā pyāyasva madintama soma viśvebhir aṁśubhiḥ | bhavā naḥ suśravastamaḥ sakhā vṛdhe ||

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Pad Path

आ। प्या॒य॒स्व॒। म॒दि॒न्ऽत॒म॒। सोम॑। विश्वे॑भिः। अं॒शुऽभिः॑। भव॑। नः॒। सु॒श्रवः॑ऽतमः। सखा॑। वृ॒धे ॥ १.९१.१७

Rigveda » Mandal:1» Sukta:91» Mantra:17 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:22» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:14» Mantra:17


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ।

Word-Meaning: - हे (मदिन्तम) अत्यन्त प्रशंसित आनन्दयुक्त (सोम) विद्या और ऐश्वर्य के देनेवाले ! जो (सुश्रवस्तमः) बहुश्रुत वा अच्छे अन्नादि पदार्थों से युक्त (सखा) आप मित्र हैं सो (नः) हम लोगों के (वृधे) उन्नति के लिये (भव) हूजिये और (विश्वेभिः) समस्त (अंशुभिः) सृष्टि के सिद्धान्तभागों =तत्त्वावयवों से (आ) अच्छे प्रकार (प्यायस्व) वृद्धि को प्राप्त हूजिये ॥ १७ ॥
Connotation: - जो उत्तम विद्वान् समस्त उत्तम ओषधिगण से सृष्टिक्रम की विद्याओं में मनुष्यों की उन्नति करता है, उसके अनुकूल सबको चलना चाहिये ॥ १७ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे मदिन्तम सोम सुश्रवस्तमः सखा त्वं नो वृधे भव विश्वेभिरंशुभिराप्यायस्व ॥ १७ ॥

Word-Meaning: - (आ) समन्तात् (प्यायस्व) वर्धस्व (मदिन्तम) मदः प्रशस्तो हर्षो विद्यतेऽस्मिन् सोतिशयितस्तत्संबुद्धौ (सोम) विद्यैश्वर्य्यस्य प्रापक (विश्वेभिः) सर्वैः (अंशुभिः) सृष्टितत्त्वावयवैः (भव) अत्राऽपि द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (नः) अस्माकम् (सुश्रवस्तमः) शोभनानि श्रवांसि श्रवणान्यन्नानि वा यस्मात्स सुश्रवाः। अतिशयेन सुश्रवा इति सुश्रवस्तमः। (सखा) सुहृत् (वृधे) वर्धनाय ॥ १७ ॥
Connotation: - यः परमविद्वान् सर्वोत्तमौषधिगणेन सृष्टिक्रमविद्यासु मनुष्यान् वर्धयति स सर्वैरनुगन्तव्यः ॥ १७ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जो उत्तम विद्वान संपूर्ण उत्तम औषधांनी सृष्टिक्रमाच्या विद्येत माणसांना उन्नत करतो. त्याच्या अनुकूल सर्वांनी वागावे. ॥ १७ ॥