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त्वं सो॑म॒ प्र चि॑कितो मनी॒षा त्वं रजि॑ष्ठ॒मनु॑ नेषि॒ पन्था॑म्। तव॒ प्रणी॑ती पि॒तरो॑ न इन्दो दे॒वेषु॒ रत्न॑मभजन्त॒ धीरा॑: ॥

English Transliteration

tvaṁ soma pra cikito manīṣā tvaṁ rajiṣṭham anu neṣi panthām | tava praṇītī pitaro na indo deveṣu ratnam abhajanta dhīrāḥ ||

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Pad Path

त्वम्। सो॒म॒। प्र। चि॒कि॒तः॒। म॒नी॒षा। त्वम्। रजि॑ष्ठम्। अनु॑। ने॒षि॒। पन्था॑म्। तव॑। प्रऽनी॑ती। पि॒तरः॑। नः॒। इ॒न्दो॒ इति॑। दे॒वेषु॑। रत्न॑म्। अ॒भ॒ज॒न्त॒। धीराः॑ ॥ १.९१.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:91» Mantra:1 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:19» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:14» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब तेईस मन्त्रवाले इक्कानवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में सोम शब्द के अर्थ का उपदेश किया है ।

Word-Meaning: - हे (इन्दो) सोम के समान (सोम) समस्त ऐश्वर्य्ययुक्त (त्वम्) परमेश्वर वा अतिउत्तम विद्वान् ! जिस (मनीषा) मन को वश में रखनेवाली बुद्धि से (चिकितः) जानते हो वा (तव) आपकी (प्रणीती) उत्तम नीति से (धीराः) ध्यान और धैर्ययुक्त (पितरः) ज्ञानी लोग (देवेषु) विद्वान् वा दिव्य गुण कर्म और स्वभावों में (रत्नम्) अत्युत्तम धन को (प्र) (अभजन्त) सेवते हैं, उससे शान्तिगुणयुक्त आप (नः) हम लोगों को (रजिष्ठम्) अत्यन्त सीधे (पन्थाम्) मार्ग को (अनु) अनुकूलता से (नेषि) पहुँचाते हो, इससे (त्वम्) आप हमारे सत्कार के योग्य हो ॥ १ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। जैसे परमेश्वर अत्यन्त उत्तम विद्वान् अविद्या विनाश करके विद्या और धर्ममार्ग को पहुँचाता है, वैसे ही वैद्यकशास्त्र की रीति से सेवा किया हुआ सोम आदि ओषधियों का समूह सब रोगों का विनाश करके सुखों को पहुँचाता है ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ सोमशब्दार्थ उपदिश्यते ।

Anvay:

हे इन्दो सोम त्वं यया मनीषा चिकितस्तव प्रणीती धीराः पितरो देवेषु रत्नं प्राभजन्त तया नोस्मान् रजिष्ठं पन्थामनुनेषि तस्मात् त्वमस्माभिः सत्कर्त्तव्योऽसि ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (त्वम्) परमेश्वरो विद्वान् वा (सोम) सर्वेश्वर्यवन् (प्र) (चिकितः) जानासि। मध्यमैकवचने लेट्प्रयोगः। (मनीषा) मनस ईषया प्रज्ञानुरूपया। अत्र सुपां सुलुगिति तृतीयास्थाने डादेशः। (त्वम्) (रजिष्ठम्) अतिशयेन ऋतु रजिष्ठम्। ऋजुशब्दादिष्ठनि। विभाषर्जोश्छन्दसि। अ० ६। ४। १६२। इति ऋकारस्य रेफादेशः। (अनु) (नेषि) प्रापयसि। अत्र नौधातोर्लटि बहुलं छन्दसीति शपो लुक्। अत्रान्तर्गतो ण्यर्थः। (पन्थाम्) पन्थानम्। अत्र छान्दसो वर्णलोपो वेति नकारलोपः। (तव) (प्रणीती) प्रकृष्टा चासौ नीतिस्तया। अत्र सुपां सुलुगिति पूर्वसवर्णदीर्घः। (पितरः) ज्ञानिनः (नः) अस्मभ्यम् (इन्दो) सोम्यगुणसम्पन्न (देवेषु) विद्वत्सु दिव्यगुणकर्मस्वभावेषु वा (रत्नम्) रमणीयं धनम् (अभजन्त) भजन्ति (धीराः) ध्यानधैर्ययुक्ताः ॥ १ ॥
Connotation: - अत्र श्लेषालङ्कारः। यथा परमेश्वरः परमविद्वान् वाऽविद्यां विनाश्य विद्याधर्ममार्गे प्रापयति तथैव वैद्यकशास्त्ररीत्या सेवितः सोमाद्योषधिगणः सर्वान् रोगान् विनाश्य सुखानि प्रापयति ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात अध्ययन, अध्यापन करणाऱ्या विद्या शिकणाऱ्या इत्यादी कामांची सिद्धी करणाऱ्या (सोम) शब्दाच्या अर्थाच्या कथनाने या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. जसा परमेश्वर किंवा अत्यंत उत्तम विद्वान अविद्येचा नाश करून विद्या व धर्ममार्गाकडे तसे वैद्यकशास्त्राच्या रीतीने सेवा केलेला सोम इत्यादी औषधींचा समूह सर्व रोगांचा नाश करतो व सुखी करतो. ॥ १ ॥