Go To Mantra

मत्स्वा॑ सुशिप्र म॒न्दिभिः॒ स्तोमे॑भिर्विश्वचर्षणे। सचै॒षु सव॑ने॒ष्वा॥

English Transliteration

matsvā suśipra mandibhiḥ stomebhir viśvacarṣaṇe | sacaiṣu savaneṣv ā ||

Mantra Audio
Pad Path

मत्स्व॑। सु॒ऽशि॒प्र॒। म॒न्दिऽभिः। स्तोमे॑भिः। वि॒श्व॒ऽच॒र्ष॒णे॒। सचा॑। ए॒षु। सव॑नेषु। आ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:9» Mantra:3 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:17» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:3» Mantra:3


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अगले मन्त्र में इन्द्रशब्द से परमेश्वर का प्रकाश किया है-

Word-Meaning: - हे (विश्वचर्षणे) सब संसार के देखने तथा (सुशिप्र) श्रेष्ठज्ञानयुक्त परमेश्वर ! आप (मन्दिभिः) जो विज्ञान वा आनन्द के करनेवाले (स्तोमेभिः) वेदोक्त स्तुतिरूप गुणप्रकाश करनेहारे स्तोत्र हैं, उनसे स्तुति को प्राप्त होकर (एषु) इन प्रत्यक्ष (सवनेषु) ऐश्वर्य्य देनेवाले पदार्थों में हम लोगों को (सचा) युक्त करके (मत्स्व) अच्छे प्रकार आनन्दित कीजिये॥३॥
Connotation: - जिसने संसार के प्रकाश करनेवाले सूर्य्य को उत्पन्न किया है, उसकी स्तुति करने में जो श्रेष्ठ पुरुष एकाग्रचित्त हैं, अथवा सबको देखनेवाले परमेश्वर को जानकर सब प्रकार से धार्मिक और पुरुषार्थी होकर सब ऐश्वर्य्य को उत्पन्न और उस की रक्षा करने में मिलकर रहते हैं, वे ही सब सुखों को प्राप्त होने के योग्य वा औरों को भी उत्तम-उत्तम सुखों के देनेवाले हो सकते हैं॥३॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथेन्द्रशब्देनेश्वर उपदिश्यते।

Anvay:

हे विश्वचर्षणे सुशिप्रेन्द्र भगवन् ! त्वं मन्दिभिः स्तोमेभिः स्तुतः सन्नेषु सवनेषु सचानस्मानामत्स्व समन्ताद्धर्षय॥३॥

Word-Meaning: - (मत्स्व) अस्माभिः स्तुतः सन् सदा हर्षय। द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। बहुलं छन्दसीति श्यनो लुक् च। (सुशिप्र) शोभनं शिप्रं ज्ञानं प्रापणं वा यस्य तत्सम्बुद्धौ (मन्दिभिः) तज्ज्ञापकैर्हर्षकरैश्च गुणैः। (स्तोमेभिः) वेदस्थैः स्तुतियुक्तैस्त्वद्गुणप्रकाशकैः स्तोत्रैः। बहुलं छन्दसीति भिस ऐस् न। (विश्वचर्षणे) विश्वस्य सर्वस्य जगतश्चर्षणिर्द्रष्टा तत्संबुद्धौ। विश्वचर्षणिरिति पश्यतिकर्मसु पठितम्। निघं०३.११) (सचा) सचन्ति ये ते सचास्तान् सचानस्मान् विदुषः। अत्र शसः स्थाने सुपां सुलुगित्याकारादेशः। सचेति पदनामसु पठितम्। (निघं०४.२) अनेन ज्ञानप्राप्त्यर्थो गृह्यते। (एषु) प्रत्यक्षेषु (सवनेषु) ऐश्वर्य्येषु। सु प्रसवैश्वर्य्ययोरित्यस्य रूपम्। (आ) समन्तात्॥३॥
Connotation: - येन विश्वप्रकाशकः सूर्य्य उत्पादितस्तत्स्तुतौ ये मनुष्याः कृतनिष्ठा धार्मिकाः पुरुषार्थिनो भूत्वा सर्वथा सर्वद्रष्टारं परमेश्वरं ज्ञात्वा सर्वैश्वर्य्यस्योत्पादने तद्रक्षणे च समवेता भूत्वा सुखकारिणो भवन्तीति॥३॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - ज्याने जगात प्रकाश करणारा सूर्य निर्माण केलेला आहे, त्याची स्तुती करण्यात श्रेष्ठ पुरुष एकाग्रचित्त असतात. सर्वदृष्टा असणाऱ्या परमेश्वराला जाणून धार्मिक व पुरुषार्थी जन सर्व ऐश्वर्यप्राप्ती करून सर्व मिळून त्या ऐश्वर्याचे रक्षण करतात, तेच सर्व सुख प्राप्त करून इतरांनाही देऊ शकतात. ॥ ३ ॥