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आ नो॑ भ॒द्राः क्रत॑वो यन्तु वि॒श्वतोऽद॑ब्धासो॒ अप॑रीतास उ॒द्भिदः॑। दे॒वा नो॒ यथा॒ सद॒मिद् वृ॒धे अस॒न्नप्रा॑युवो रक्षि॒तारो॑ दि॒वेऽदि॑वे ॥

English Transliteration

ā no bhadrāḥ kratavo yantu viśvato dabdhāso aparītāsa udbhidaḥ | devā no yathā sadam id vṛdhe asann aprāyuvo rakṣitāro dive-dive ||

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Pad Path

आ। नः॒। भ॒द्राः। क्रत॑वः। य॒न्तु॒। वि॒श्वतः॑। अद॑ब्धासः। अप॑रिऽइतासः। उ॒त्ऽभिदः॑। दे॒वाः। नः॒। यथा॑। सद॑म्। इत्। वृ॒धे। अस॑न्। अप्र॑ऽआयुवः। र॒क्षि॒तारः॑। दि॒वेऽदि॑वे ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:89» Mantra:1 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:15» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:14» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब नवासीवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र से सब विद्वान् लोग कैसे हों और संसारी मनुष्यों के साथ कैसे अपना वर्त्ताव करें, यह उपदेश किया है ॥

Word-Meaning: - (यथा) जैसे जो (विश्वतः) सब ओर से (भद्राः) सुख करने और (क्रतवः) अच्छी क्रिया वा शिल्पयज्ञ में बुद्धि रखनेवाले (अदब्धासः) अहिंसक (अपरीतासः) न त्याग के योग्य (उद्भिदः) अपने उत्कर्ष से दुःखों का विनाश करनेवाले (अप्रायुवः) जिनकी उमर का वृथा नाश होना प्रतीत न हो (देवाः) ऐसे दिव्य गुणवाले विद्वान् लोग जैसे (नः) हम लोगों को (सदम्) विज्ञान व घर को (आ+यन्तु) अच्छे प्रकार पहुँचावें, वैसे (दिवेदिवे) प्रतिदिन (नः) हमारे (वृधे) सुख के बढ़ाने के लिये (रक्षितारः) रक्षा करनेवाले (इत्) ही (असन्) हों ॥ १ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे सब श्रेष्ठ सब ऋतुओं में सुख देने योग्य घर सब सुखों को पहुँचाता है, वैसे ही विद्वान् लोग, विद्या और शिल्पयज्ञ सुख करनेवाले होते हैं, यह जानना चाहिये ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

सर्वे विद्वांसः कीदृशा भवेयुर्जगज्जनैः सह कथं वर्त्तेरंश्चेत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

यथा ये विश्वतो भद्राः क्रतवोऽदब्धासोऽपरीतास उद्भिदोऽप्रायुवो देवाश्च नः सदमायन्तु, तथैते दिवे नोऽस्माकं वृधे रक्षितारोऽसन् सन्तु ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (आ) समन्तात् (नः) अस्मान् (भद्राः) कल्याणकारकाः (क्रतवः) प्रशस्तक्रियावन्तः शिल्पयज्ञधियो वा (यन्तु) प्राप्नुवन्तु (विश्वतः) सर्वाभ्यो दिग्भ्यः (अदब्धासः) अहिंसनीयाः (अपरीतासः) अवर्जनीयाः (उद्भिदः) उत्कृष्टतया दुःखविदारकाः (देवाः) दिव्यगुणाः (नः) अस्माकम् (यथा) येन प्रकारेण (सदम्) विज्ञानं गृहं वा (इत्) एव (वृधे) सुखवर्द्धनाय (असन्) सन्तु। लेट्प्रयोगः। (अप्रायुवः) न विद्यते प्रगतः प्रणष्ट आयुर्बोधो येषान्ते। जसादिषु छन्दसि वा वचनमिति गुणविकल्पात् इयङुवङ्प्रकरणे तन्वादीनां छन्दसि बहुलमुपसङ्ख्यानम् (अष्टा०वा०६.४.७७) इति वार्तिकेनोवङादेशः। (रक्षितारः) (दिवेदिवे) प्रतिदिनम् ॥ १ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा श्रेष्ठं सर्वर्तुकं गृहं सर्वाणि सुखानि प्रापयति, तथैव विद्वांसो विद्याः शिल्पयज्ञाश्च सर्वसुखकारकाः सन्तीति वेदितव्यम् ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात विद्वान, विद्यार्थी व प्रकाशमय पदार्थांचे विश्वेदेव पदामध्ये असल्यामुळे वर्णन केलेले आहे. यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती आहे, असे जाणले पाहिजे. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे चांगले घर सर्व ऋतूंत सर्व सुख देते. तसेच विद्वान लोक, विद्या व शिल्पयज्ञ सुखदायक असतात, हे जाणले पाहिजे. ॥ १ ॥