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शूरा॑इ॒वेद्युयु॑धयो॒ न जग्म॑यः श्रव॒स्यवो॒ न पृत॑नासु येतिरे। भय॑न्ते॒ विश्वा॒ भुव॑ना म॒रुद्भ्यो॒ राजा॑नइव त्वे॒षसं॑दृशो॒ नरः॑ ॥

English Transliteration

śūrā ived yuyudhayo na jagmayaḥ śravasyavo na pṛtanāsu yetire | bhayante viśvā bhuvanā marudbhyo rājāna iva tveṣasaṁdṛśo naraḥ ||

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Pad Path

शूराः॑ऽइव। इत्। युयु॑धयः। न। जग्म॑यः। श्र॒व॒स्यवः॑। न। पृत॑नासु। ये॒ति॒रे॒। भय॑न्ते। विश्वा॑। भुव॑ना। म॒रुत्ऽभ्यः॑। राजा॑नःऽइव। त्वे॒षऽस॑न्दृशः। नरः॑ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:85» Mantra:8 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:10» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:14» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे वायु कैसे हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! तुम लोग जो वायु (शूराइव) शूरवीरों के समान (इत्) ही मेघ के साथ (युयुधयो न) युद्ध करनेवाले के समान (जग्मयः) जाने-आनेहारे (पृतनासु) सेनाओं में (श्रवस्यवः) अन्नादि पदार्थों को अपने लिये बढ़ानेहारे के समान (येतिरे) यत्न करते हैं (राजान इव) राजाओं के समान (त्वेषसंदृशः) प्रकाश को दिखानेहारे (नरः) नायक के समान हैं, जिन (मरुद्भ्यः) वायुओं से (विश्वा) सब (भुवना) संसारस्थ प्राणी (भयन्ते) डरते हैं, उन वायुओं का अच्छी युक्ति से उपयोग करो ॥ ८ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे भयरहित पुरुष युद्ध से निवर्त्त नहीं होते, जैसे युद्ध करनेहारे लड़ने के लिये शीघ्र दौड़ते हैं, जैसे क्षुधातुर मनुष्य अन्न की इच्छा और जैसे सेनाओं में युद्ध की इच्छा करते हैं, जैसे दण्ड देनेहारे न्यायाधीशों से अन्यायकारी मनुष्य उद्विग्न होते हैं, वैसे ही कुपथ्यकारी, वायुओं का अच्छे प्रकार उपयोग न करनेहारे मनुष्य वायुओं से भय को प्राप्त होते और अपनी मर्यादा में रहते हैं ॥ ८ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते वायवः कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

ये वायवः शूरा इवेदेव वृत्रेण सह युयुधयो नेव जग्मयः पृतनासु श्रवस्यवो नेव येतिरे। राजान इव त्वेषसंदृशो नरः सन्ति येभ्यो मरुद्भ्यो विश्वा भुवना प्राणिनो भयन्ते बिभ्यति तान् सुयुक्त्योपयुञ्जत ॥ ८ ॥

Word-Meaning: - (शूराइव) यथा शस्त्राऽस्त्रप्रक्षेपयुद्धकुशलाः पुरुषास्तथा (इत्) एव (युयुधयः) साधुयुद्धकारिणः। उत्सर्गश्छन्दसि सदादिभ्यो दर्शनात्। (अष्टा०वा०३.२.१७१) अनेन वार्तिकेनाऽत्र युधधातोः किन् प्रत्ययः। (न) इव (जग्मयः) शीघ्रगमनशीलाः (श्रवस्यवः) आत्मनः श्रवोऽन्नमिच्छन्तः (न) इव (पृतनासु) सेनासु (येतिरे) प्रयतन्ते (भयन्ते) बिभ्यति। अत्र बहुलं छन्दसीति शपः स्थाने श्लुर्न व्यत्ययेनात्मनेपदं च। (विश्वा) विश्वानि सर्वाणि (भुवना) भुवनानि लोकाः (मरुद्भ्यः) वायूनामाधारबलाकर्षणेभ्यः (राजानइव) यथा सभाध्यक्षास्तथा (त्वेषसंदृशः) त्वेषं दीप्तिं पश्यन्ति ते सम्यग्दर्शयितारः (नरः) नेतारः ॥ ८ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा निर्भयाः पुरुषाः युद्धान्न निवर्त्तन्ते, यथा योद्धारो युद्धाय शीघ्रं धावन्ति, यथा बुभुक्षवोऽन्नमिच्छन्ति तथा ये सेनासु युद्धमिच्छन्ति, यथा दण्डाधीशेभ्यः सभाद्यध्यक्षेभ्योऽन्यायकारिणो जना उद्विजन्ते, तथैव वायुभ्योऽपि सर्वे कुपथ्यकारिणोऽन्यथा तत्सेविनः प्राणिन उद्विजन्ते स्वमर्यादायां तिष्ठन्ति ॥ ८ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे निर्भय पुरुष युद्धापासून निवृत्त होत नाहीत. जसे योद्धे लढण्यासाठी तात्काळ धावतात. जसे क्षुधातुर माणसे अन्नाची इच्छा करतात व सेना युद्ध करण्याची इच्छा बाळगते. जसे दंड देणाऱ्या न्यायाधीशाकडून अन्यायी माणसे उद्विग्न होतात. तसेच कुपथ्यकारी चांगल्या प्रकारे वायूचा उपयोग न करणारी माणसे वायूने भयभीत होतात व आपल्या मर्यादेत राहतात. ॥ ८ ॥