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प्र ये शुम्भ॑न्ते॒ जन॑यो॒ न सप्त॑यो॒ याम॑न्रु॒द्रस्य॑ सू॒नवः॑ सु॒दंस॑सः। रोद॑सी॒ हि म॒रुत॑श्चक्रि॒रे वृ॒धे मद॑न्ति वी॒रा वि॒दथे॑षु॒ घृष्व॑यः ॥

English Transliteration

pra ye śumbhante janayo na saptayo yāman rudrasya sūnavaḥ sudaṁsasaḥ | rodasī hi marutaś cakrire vṛdhe madanti vīrā vidatheṣu ghṛṣvayaḥ ||

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Pad Path

प्र। ये। शुम्भ॑न्ते। जन॑यः। न। सप्त॑यः। याम॑न्। रु॒द्रस्य॑। सू॒नवः॑। सु॒ऽदंस॑सः। रोद॑सी॒ इति॑। हि। म॒रुतः॑। च॒क्रि॒रे। वृ॒धे। मद॑न्ति। वी॒राः। वि॒दथे॑षु। घृष्व॑यः ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:85» Mantra:1 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:9» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:14» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे सेनाध्यक्ष आदि कैसे हों, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - (ये) जो (रुद्रस्य) दुष्टों के रुलानेवाले के (सूनवः) पुत्र (सुदंससः) उत्तम कर्म करनेहारे (घृष्वयः) आनन्दयुक्त (वीराः) वीरपुरुष (हि) निश्चय (यामन्) मार्ग में जैसे अलङ्कारों से सुशोभित (जनयः) सुशील स्त्रियों के (न) तुल्य और (सप्तयः) अश्व के समान शीघ्र जाने-आनेहारे (मरुतः) वायु (रोदसी) प्रकाश और पृथ्वी के धारण के समान (वृधे) बढ़ने के अर्थ राज्य का धारण करते (विदथेषु) संग्रामों में विजय को (चक्रिरे) करते हैं, वे (प्र शुम्भन्ते) अच्छे प्रकार शोभायुक्त और (मदन्ति) आनन्द को प्राप्त होते हैं, उनसे तू प्रजा का पालन कर ॥ १ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जैसे अच्छी शिक्षा और विद्या को प्राप्त हुई पतिव्रता स्त्रियाँ अपने पतियों का अथवा स्त्रीव्रत सदा अपनी स्त्रियों ही से प्रसन्न ऋतुगामी पति लोग अपनी स्त्रियों का सेवन करके सुखी और जैसे सुन्दर बलवान् घोड़े मार्ग में शीघ्र पहुँचा के आनन्दित करते हैं, वैसे धार्मिक राजपुरुष सब प्रजा को आनन्दित किया करें ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते सेनाध्यक्षादयः कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

ये रुद्रस्य सूनवः सुदंससो घृष्वयो वीरा हि यामन्मार्गेऽलङ्कारैः शुम्भमाना अलंकृता जनयो नेव सप्तयोऽश्वा इव गच्छन्तो मरुतो रोदसी इव वृधे विदथेषु विजयं चक्रिरे ते प्रशुम्भन्ते मदन्ति तैः सह त्वं प्रजायाः पालनं कुरु ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (प्र) प्रकृष्टे (ये) वक्ष्यमाणाः (शुम्भन्ते) शोभन्ते (जनयः) जायाः (न) इव (सप्तयः) अश्वा इव। सप्तिरित्यश्वनामसु पठितम्। (निघं०१.१४) (यामन्) यान्ति यस्मिन् मार्गे तस्मिन्। अत्र सुपां सुलुगिति ङेर्लुक्। सर्वधातुभ्यो मनिन्नित्यौणादिको मनिन् प्रत्ययः। (रुद्रस्य) शत्रूणां रोदयितुर्महावीरस्य (सूनवः) पुत्राः (सुदंससः) शोभनानि दंसांसि कर्माणि येषां ते। दंस इति कर्मनामसु पठितम्। (निघं०२.१) (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (हि) खलु (मरुतः) तथा वायवस्तथा (चक्रिरे) कुर्वन्ति (वृधे) वर्धनाय (मदन्ति) हर्षन्ति। विकरणव्यत्ययेन श्यनः स्थाने शप्। (वीराः) शौर्यादिगुणयुक्ताः पुरुषाः (विदथेषु) संग्रामेषु (घृष्वयः) सम्यग् घर्षणशीलाः। कृविघृष्वि०। (उणा०४.५७) घृषु संघर्ष इत्यस्माद्विन् प्रत्ययः ॥ १ ॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यथा सुशिक्षिता पतिव्रता स्त्रियः पतीन् वा स्त्रीव्रताः पतयो जायाः सेवित्वा सुखयन्ति। यथा शोभमाना बलवन्तो हयाः पथि शीघ्रं गमयित्वा हर्षयन्ति तथा धार्मिका वीराः सर्वाः प्रजा मोदयन्ति ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात वायूप्रमाणे सभाध्यक्ष राजा व प्रजेच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्तार्थाची संगती पूर्वसूक्तार्थाबरोबर समजली पाहिजे. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जशा सुशिक्षित पतिव्रता स्त्रिया आपल्या पतीचाच अंगीकार करतात किंवा स्त्रीव्रत पती सदैव आपल्या स्त्रियांचा स्वीकार करतात व सुखी होतात. जसे सुंदर बलवान घोडे रस्त्याने धावून तात्काळ (एखाद्या स्थानी) पोचवितात व आनंदित करतात तसे धार्मिक राजपुरुषांनी सर्व प्रजेला आनंदित करावे. ॥ १ ॥