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इन्द्रा॑य नू॒नम॑र्चतो॒क्थानि॑ च ब्रवीतन। सु॒ता अ॑मत्सु॒रिन्द॑वो॒ ज्येष्ठं॑ नमस्यता॒ सहः॑ ॥

English Transliteration

indrāya nūnam arcatokthāni ca bravītana | sutā amatsur indavo jyeṣṭhaṁ namasyatā sahaḥ ||

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Pad Path

इन्द्रा॑य। नू॒नम्। अ॒र्च॒त॒। उ॒क्थानि॑। च॒। ब्र॒वी॒त॒न॒। सु॒ताः। अ॒म॒त्सुः॒। इन्द॑वः। ज्येष्ठ॑म्। न॒म॒स्य॒त॒। सहः॑ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:84» Mantra:5 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:5» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:13» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर किस प्रकार के सभाध्यक्ष का सत्कार करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! तुम जिसको (सुताः) सिद्ध (इन्दवः) उत्तम रसीले पदार्थ (अमत्सुः) आनन्दित करें, जिसको (ज्येष्ठम्) उत्तम (सहः) बल प्राप्त हो उस (इन्द्राय) सभाध्यक्ष को (नमस्यत) नमस्कार करो और उसको मुख्य कामों में युक्त करके (नूनम्) निश्चय से (अर्चत) सत्कार करो (उक्थानि) अच्छे-अच्छे वचनों से (ब्रवीतन) उपदेश करो, उससे सत्कारों को (च) भी प्राप्त हो ॥ ५ ॥
Connotation: - मनुष्यों को योग्य है कि जो सबका सत्कार करे, शरीर और आत्मा के बल को प्राप्त होके परोपकारी हो, उसको छोड़ के अन्य को सेनापति आदि अधिकारों में कभी स्थापन न करें ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तं कीदृशं सभाध्यक्षं सत्कुर्युरित्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यूयं यं सुता इन्दवोऽमत्सुर्हर्षयेयुर्यं ज्येष्ठं सहः प्राप्नुयात् तस्मा इन्द्राय नमस्यत तं मुख्यकार्येषु नियोज्य नूनमर्चतोक्थानि ब्रवीतन तस्मात् सत्कारं च प्राप्नुत ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (इन्द्राय) अत्यन्तोत्कृष्टाय (नूनम्) निश्चितम् (अर्चत) सत्कुरुत (उक्थानि) वक्तव्यानि वचनानि (च) समुच्चये (ब्रवीतन) उपदिशत (सुताः) निष्पादिताः (अमत्सुः) हर्षयेयुः (इन्दवः) सोमाः (ज्येष्ठम्) प्रशस्तम् (नमस्यत) पूजयत (सहः) बलम् ॥ ५ ॥
Connotation: - मनुष्यैर्यः सर्वान् सत्कुर्याच्छरीरात्मबलं प्राप्य परोपकारी भवेत् तं विहायान्यः सेनाद्यधिकारे कदाचिन्नैव संस्थाप्यः ॥ ५ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जो सर्वांचा सत्कार करतो. शरीर व आत्मबलाने परोपकार करतो त्याला सोडून माणसांनी इतरांना सेनापती इत्यादी पद देऊ नये. ॥ ५ ॥