Go To Mantra

आ ति॑ष्ठ वृत्रह॒न्रथं॑ यु॒क्ता ते॒ ब्रह्म॑णा॒ हरी॑। अ॒र्वा॒चीनं॒ सु ते॒ मनो॒ ग्रावा॑ कृणोतु व॒ग्नुना॑ ॥

English Transliteration

ā tiṣṭha vṛtrahan rathaṁ yuktā te brahmaṇā harī | arvācīnaṁ su te mano grāvā kṛṇotu vagnunā ||

Mantra Audio
Pad Path

आ। ति॒ष्ठ॒। वृ॒त्र॒ऽह॒न्। रथ॑म्। यु॒क्ता। ते॒। ब्रह्म॑णा। हरी॒ इति॑। अ॒र्वा॒चीन॑म्। सु। ते॒। मनः॑। ग्रावा॑। कृ॒णो॒तु॒। व॒ग्नुना॑ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:84» Mantra:3 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:5» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:13» Mantra:3


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर सेनापति अपनी सेना के भृत्यों को क्या-क्या आज्ञा देवे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - हे (वृत्रहन्) मेघ को सविता के समान शत्रुओं के मारनेहारे शूरवीर ! (ते) तेरे जिस (ब्रह्मणा) अन्नादिसामग्री से युक्त शिल्पि वा सारथि के चलाये हुए (हरी) पदार्थ को पहुँचाने वाले जलाग्नि वा घोड़े (युक्ता) युक्त हैं, उस (अर्वाचीनम्) भूमि, जल के नीचे-ऊपर आदि को जानेवाले (रथम्) रथ में तू (आतिष्ठ) बैठ (ग्रावा) मेघ के समान (वग्नुना) सुन्दर मधुर वाणी में वक्तृत्व को (सुकृणोतु) अच्छे प्रकार कर, उससे (ते) तेरा (मनः) विज्ञान वीरों को अच्छे प्रकार उत्साहित किया करे ॥ ३ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। सभापतियों को योग्य है कि सेना में दो प्रकार के अधिकारी रक्खें। उनमें एक सेना को लड़ावे और दूसरा अच्छे भाषणों से योद्धाओं को उत्साहित करे। जब युद्ध हो तब सेनापति अच्छी प्रकार परीक्षा और उत्साह से शत्रुओं के साथ ऐसा युद्ध करावे कि जिससे निश्चित विजय हो और जब युद्ध बन्द हो जाये, तब उपदेशक योद्धा और सब सेवकों को धर्मयुक्त कर्म के उपदेश से अच्छे प्रकार उत्साहित करें, ऐसे करनेहारे मनुष्यों का कभी पराजय नहीं हो सकता ॥ ३ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः सेनाध्यक्षः स्वभृत्यान् प्रति किं किमादिशेदित्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे वृत्रहन् शूरवीर ! ते तव यस्मिन् ब्रह्मणा चालितौ हरी युक्ता स्तस्तमर्वाचीनं रथं त्वमातिष्ठ ग्रावेव वग्नुना वक्तृत्वं सुकृणोत्वित्थं ते मनो वीरान् सुष्ठूत्साहयतु ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (आ) अभितः (तिष्ठ) (वृत्रहन्) मेघं सवित इव शत्रुमतिविच्छेत्तः (रथम्) विमानादियानम् (युक्ता) सम्यक् सम्बद्धौ (ते) तव (ब्रह्मणा) अन्नादिसामग्र्या सह वर्त्तमानेन शिल्पिना सारथिना वा (हरी) हरणशीलावग्निजलाख्यौ तुरङ्गौ वा (अर्वाचीनम्) अधस्ताद् भूमिजलयोरुपगन्तारम् (सु) शोभने (ते) तव (मनः) विज्ञानम् (ग्रावा) मेघ इव विद्वान् यो गृणाति सः (कृणोतु) करोतु (वग्नुना) वाण्या। वग्नुरिति वाङ्नामसु पठितम्। (निघं०१.११) ॥ ३ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। सभाध्यक्षैः सेनायां द्वावध्यक्षौ रक्ष्येतां तयोरेकः सेनापतिर्योधयिता द्वितीयो वक्तृत्वेनोत्साहायोपदेशकः। यदा युद्धं प्रवर्त्तेत तदा सेनापतिर्भृत्यान् सुपरीक्ष्योत्साह्य शत्रुभिः सह योधयेद्यतो ध्रुवो विजयस्स्याद् यदा युद्धं निवर्त्तेत तदोपदेशकः सर्वान् योद्धॄन् परिचारकांश्च शौर्यकृतज्ञता धर्म्मकर्मोपदेशेन सूत्साहयुक्तान् कुर्यादेवं कर्तॄणां कदाचित् पराजयो भवितुन्न शक्यते इति वेद्यम् ॥ ३ ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. सभापतींनी सेनेत दोन प्रकारचे अधिकारी ठेवावेत. एकाने सेनेला युद्ध करण्यास लावावे व दुसऱ्याने चांगल्या बोलण्याने योद्ध्यांना उत्साहित करावे. जेव्हा युद्ध होईल तेव्हा सेनापतीने चांगल्या प्रकारे परीक्षा करून उत्साहाने शत्रूबरोबर असे युद्ध करावे की निश्चित विजय होईल. युद्ध थांबल्यावर उपदेशक, योद्धे व सेवक यांना धर्मयुक्त कर्माचा उपदेश करून चांगल्या प्रकारे उत्साहित करावे. असे करणाऱ्याचा कधी पराभव होत नाही. ॥ ३ ॥