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इन्द्र॒मिद्धरी॑ वह॒तोऽप्र॑तिधृष्टशवसम्। ऋषी॑णां च स्तु॒तीरुप॑ य॒ज्ञं च॒ मानु॑षाणाम् ॥

English Transliteration

indram id dharī vahato pratidhṛṣṭaśavasam | ṛṣīṇāṁ ca stutīr upa yajñaṁ ca mānuṣāṇām ||

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Pad Path

इन्द्र॑म्। इत्। हरी॑। व॒ह॒तः॒। अप्र॑तिधृष्टऽशवसम्। ऋषी॑णाम्। च॒। स्तु॒तीः। उप॑। य॒ज्ञम्। च॒। मानु॑षाणाम् ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:84» Mantra:2 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:5» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:13» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसका सत्कार किस प्रकार करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! तुम जिस (अप्रतिधृष्टशवसम्) अहिंसित अत्यन्त बलयुक्त (ऋषीणाम्) वेदों के अर्थ जाननेहारों की (स्तुतीः) प्रशंसा को प्राप्त (च) महागुणसम्पन्न (मानुषाणाम्) मनुष्यों (च) और प्राणियों के विद्यादान संरक्षण नाम (यज्ञम्) यज्ञ को पालन करनेहारे (इन्द्रम्) प्रजा, सेना और सभा आदि ऐश्वर्य को प्राप्त करानेवाले को (हरी) दुःखहरण स्वभाव, श्री, बल, वीर्य, नाम, गुण, रूप, अश्व (उप वहतः) प्राप्त होते हैं, उसको (इत्) ही सदा प्राप्त हूजिये ॥ २ ॥
Connotation: - जो प्रशंसा सत्कार अधिकार को प्राप्त है, उनके विना प्राणियों को सुख नहीं हो सकता तथा सत्क्रिया के विना चक्रवर्त्तिराज्य आदि की प्राप्ति और रक्षण नहीं हो सकते, इस हेतु से सब मनुष्यों को यह अनुष्ठान करना उचित है ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तं कथं सत्कुर्युरित्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यूयं यमप्रतिधृष्टशवसमृषीणां स्तुतीः प्राप्तं महाशुभगुणसम्पन्नं च मानुषाणामन्येषां प्राणिनां च विद्यादानसंरक्षणाख्यं यज्ञं पालयन्तमिन्द्रं हरी उपवहतस्तमित्सदा स्वीकुरुत ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (इन्द्रम्) प्रजासेनापतिम् (इत्) एव (हरी) दुःखहरणशीलौ (वहतः) प्राप्नुतः (अप्रतिधृष्टशवसम्) न प्रतिधृष्यते शवो बलं यस्य तम् (ऋषीणाम्) मन्त्रार्थविदाम् (च) समुच्चये (स्तुतीः) प्रशंसाः (उप) सामीप्ये (यज्ञम्) सर्वैः सङ्गमनीयम् (च) समुच्चये (मानुषाणाम्) मानवानाम् ॥ २ ॥
Connotation: - नहि प्रशंसितपुरुषैः सत्कृतैरधिष्ठातृभिर्विना प्राणिनां सुखं भवितुं शक्यम्। न खलु सत्क्रियया विना चक्रवर्त्तिराज्यादिप्राप्तिरक्षणे च भवितुं शक्येते तस्मात् सर्वैरेतत्सर्वदाऽनुष्ठेयम् ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - ज्यांना प्रशंसा, सत्कार, अधिकार प्राप्त झालेले आहेत त्यांच्याशिवाय प्राण्यांना सुख मिळू शकत नाही व सत्क्रियेशिवाय चक्रवर्ती राज्य इत्यादीची प्राप्ती व रक्षण होऊ शकत नाही. या कारणामुळे सर्व माणसांनी हे अनुष्ठान केले पाहिजे. ॥ २ ॥