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इन्द्रो॑ दधी॒चो अ॒स्थभि॑र्वृ॒त्राण्यप्र॑तिष्कुतः। ज॒घान॑ नव॒तीर्नव॑ ॥

English Transliteration

indro dadhīco asthabhir vṛtrāṇy apratiṣkutaḥ | jaghāna navatīr nava ||

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Pad Path

इन्द्रः॑। द॒धी॒चः। अ॒स्थऽभिः॑। वृ॒त्राणि॑। अप्र॑तिऽस्कुतः। ज॒घान॑। न॒व॒तीः। नव॑ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:84» Mantra:13 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:7» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:13» Mantra:13


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उस राजा के कृत्य का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - हे सेनापते ! जैसे (अप्रतिष्कुतः) सब ओर से स्थिर (इन्द्रः) सूर्यलोक (अस्थभिः) अस्थिर किरणों से (नव नवतीः) निन्नानवें प्रकार के दिशाओं के अवयवों को प्राप्त हुए (दधीचः) जो धारण करनेहारे वायु आदि को प्राप्त होते हैं, उन (वृत्राणि) मेघ के सूक्ष्म अवयव रूप जलों को (जघान) हनन करता है, वैसे तू अनेक अधर्मी शत्रुओं का हनन कर ॥ १३ ॥
Connotation: - यहाँ वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। वही सेनापति होने के योग्य होता है, जो सूर्य के समान दुष्ट शत्रुओं का हन्ता और अपनी सेना का रक्षक है ॥ १३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तस्य कृत्यमुपदिश्यते ॥

Anvay:

हे सेनेश ! यथाप्रतिष्कुत इन्द्रोऽस्थभिर्नवनवतीर्दधीचो वृत्राणि कणीभूतानि जलानि जघान हन्ति तथा शत्रून् हिन्धि ॥ १३ ॥

Word-Meaning: - (इन्द्रः) सूर्यलोकः (दधीचः) ये दधीन् वाय्वादीनञ्चन्ति तान् (अस्थभिः) अस्थिरैश्चञ्चलैः किरणचलनैः। अत्र छन्दस्यपि दृश्यते। (अष्टा०७.१) अनेनानङादेशः। (वृत्राणि) वृत्रसंबन्धिभूतानि जलानि (अप्रतिष्कुतः) असंचलितः (जघान) हन्ति (नवतीः) नवतिसंख्याकाः (नव) नव दिशामवयवाः ॥ १३ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैः स एव सेनापतिः कार्यो यः सूर्यवच्छत्रूणां हन्ता स्वसेनारक्षकोऽस्तीति वेद्यम् ॥ १३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. तोच सेनापती होण्यायोग्य असतो. जो सूर्याप्रमाणे दुष्ट शत्रूंचा हन्ता व आपल्या सेनेचा रक्षक असतो. ॥ १३ ॥