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ता अ॑स्य॒ नम॑सा॒ सहः॑ सप॒र्यन्ति॒ प्रचे॑तसः। व्र॒तान्य॑स्य सश्चिरे पु॒रूणि॑ पू॒र्वचि॑त्तये॒ वस्वी॒रनु॑ स्व॒राज्य॑म् ॥

English Transliteration

tā asya namasā sahaḥ saparyanti pracetasaḥ | vratāny asya saścire purūṇi pūrvacittaye vasvīr anu svarājyam ||

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Pad Path

ताः। अ॒स्य॒। नम॑सा। सहः॑। स॒प॒र्यन्ति॑। प्रऽचे॑तसः। व्र॒तानि॑। अ॒स्य॒। स॒श्चि॒रे॒। पु॒रूणि॑। पू॒र्वऽचि॑त्तये। वस्वीः॑। अनु॑। स्व॒ऽराज्य॑म् ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:84» Mantra:12 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:7» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:13» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे क्या करती हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! तुम लोग जैसे (स्वराज्यम्) अपने राज्य का सत्कार करता हुआ न्यायाधीश सबका पालन करता है, वैसे (अस्य) इस अध्यक्ष के (नमसा) अन्न वा वज्र के साथ वर्त्तमान (प्रचेतसः) उत्तम ज्ञानयुक्त सेना (सहः) बल को (सपर्यन्ति) सेवन करती हैं (याः) जो (अस्य) सेनाध्यक्ष के (पूर्वचित्तये) पूर्वज्ञान के लिये (पुरूणि) बहुत (व्रतानि) सत्यभाषण नियम आदि को (सश्चिरे) प्राप्त होती हैं (ताः) उन (वस्वीः) पृथिवी सम्बन्धियों को देशों के आनन्द भोगने के लिये सेवन करो ॥ १२ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को योग्य है कि सामग्री बल और अच्छे नियमों के विना बहुत राज्य आदि के सुख नहीं प्राप्त होते, इस हेतु से यम-नियमों के अनुकूल जैसा चाहिये, वैसा इसका विचार करके विजय आदि धर्मयुक्त कर्मों को सिद्ध करें ॥ १२ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरेताः किं कुर्वन्तीत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यूयं यथा स्वराज्यमर्चन् न्यायाधीशः सर्वान् पालयति, तथाऽस्य नमसा सह वर्त्तमानाः प्रचेतसः सेनाः सहः सपर्यन्ति, या अस्य पूर्वचित्तये पुरूणि व्रतानि सश्चिरे ता वस्वीरनुमोदितुं सेवध्वम् ॥ १२ ॥

Word-Meaning: - (ताः) (अस्य) प्रतिपादितस्य (नमसा) अन्नेन वज्रेण वा (सहः) बलम् (सपर्यन्ति) सेवन्ते (प्रचेतसः) प्रकृष्टं चेतो विज्ञानं यासां ताः (व्रतानि) नियमानुगतानि धर्म्याणि कर्माणि (अस्य) (सश्चिरे) गच्छन्ति (पुरूणि) बहूनि (पूर्वचित्तये) पूर्वेषां संज्ञानाय संज्ञापनाय वा (वस्वीः) (अनु) (स्वराज्यम्) इति पूर्ववत् ॥ १२ ॥
Connotation: - मनुष्यैर्नहि सामग्र्या बलेन नियमैर्विनाऽनेकानि राज्यादीनि सुखानि सम्पद्यन्ते तस्माद् यमनियमानामानुयोग्यमेतत्सर्वं संचिन्त्य विजयादीनि कर्माणि साधनीयानि ॥ १२ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. सामग्री, बल व चांगले नियम याशिवाय अनेक राज्यांचे सुख प्राप्त होऊ शकत नाही. यामुळे माणसांनी यमनियमाच्या अनुकूल वागून विजयप्राप्ती इत्यादी धर्मयुक्त कार्य करावे. ॥ १२ ॥