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ए॒ते त॑ इन्द्र ज॒न्तवो॒ विश्वं॑ पुष्यन्ति॒ वार्य॑म्। अ॒न्तर्हि ख्यो जना॑नाम॒र्यो वेदो॒ अदा॑शुषां॒ तेषां॑ नो॒ वेद॒ आ भ॑र ॥

English Transliteration

ete ta indra jantavo viśvam puṣyanti vāryam | antar hi khyo janānām aryo vedo adāśuṣāṁ teṣāṁ no veda ā bhara ||

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Pad Path

ए॒ते। ते॒। इ॒न्द्र॒। ज॒न्तवः॑। विश्व॑म्। पु॒ष्य॒न्ति॒। वार्य॑म्। अ॒न्तः। हि। ख्यः। जना॑नाम्। अ॒र्यः। वेदः॑। अदा॑शुषाम्। तेषा॑म्। नः॒। वेदः॑। आ। भ॒र॒ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:81» Mantra:9 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:2» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:13» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब ईश्वर कैसा है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) परमेश्वर ! जिस (ते) तेरी सृष्टि में जो (एते) ये (जन्तवः) जीव (वार्यम्) स्वीकार के योग्य (विश्वम्) जगत् को (पुष्यन्ति) पुष्ट करते हैं (तेषाम्) उन (जनानाम्) मनुष्य आदि प्राणियों के (अन्तः) मध्य में वर्त्तमान (अदाशुषाम्) दानादिकर्मरहित मनुष्यों के (अर्यः) ईश्वर तू (वेदः) जिससे सुख प्राप्त होता है उसको (हि) निश्चय करके (ख्यः) उपदेश करता है, वह आप (नः) हमारे लिये (वेदः) विज्ञानरूप धन का (आभर) दान कीजिये ॥ ९ ॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो ईश्वर बाहर-भीतर सर्वत्र व्याप्त होकर सब भीतर-बाहर के व्यवहारों को जानता, सत्य उपदेश और सब जीवों के हित की इच्छा करता है, उसका आश्रय लेकर परमार्थ और व्यवहार सिद्ध करके सुखों को तुम प्राप्त होओ ॥ इस सूक्त में सेनापति, ईश्वर और सभाध्यक्ष के गुणों का वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की सङ्गति पूर्व सूक्तार्थ के साथ समझनी चाहिये ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथेश्वरः कीदृश इत्याह ॥

Anvay:

हे इन्द्र ! यस्य ते सृष्टौ य एते जन्तवो वार्यं विश्वं पुष्यन्ति, तेषां जनानामन्तर्मध्ये वर्त्तमानामदाशुषां दानशीलतारहितानामर्यस्त्वं वेदो हि ख्यः प्रकथयसि स त्वं नोऽस्मभ्यं वेद आ भर ॥ ९ ॥

Word-Meaning: - (एते) सृष्टौ विद्यमानाः (ते) तव (इन्द्र) परमैश्वर्यप्रद जगदीश्वर (जन्तवः) जीवाः (विश्वम्) जगत् (पुष्यन्ति) आनन्दयन्ति (वार्यम्) स्वीकर्त्तुमर्हम् (अन्तः) मध्ये (हि) खलु (ख्यः) प्रकथयसि (जनानाम्) सज्जनानां मनुष्याणाम् (अर्यः) स्वामीश्वरः (वेदः) विदन्ति सुखानि येन तद्धनम् (अदाशुषाम्) अदातॄणाम् (तेषाम्) (नः) अस्मभ्यमस्माकं वा (वेदः) विज्ञानधनम् (आ) समन्तात् (भर) प्रापय ॥ ९ ॥
Connotation: - हे मनुष्या ! य ईश्वरोऽन्तर्बहिः सर्वत्र व्याप्य सर्वमन्तर्बहिःस्थं व्यवहारं जानाति सदुपदेशान् करोति सर्वजीवानां हितं चिकीर्षति तमाश्रित्य पारमार्थिकव्यावहारिकसुखे प्राप्नुत ॥ ९ ॥ अस्मिन् सूक्ते सेनापतिरीश्वरसभाध्यक्षगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेदितव्यम् ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! जो ईश्वर आत-बाहेर सर्वत्र व्याप्त असून आत-बाहेरच्या सर्व व्यवहारांना जाणतो, सत्य उपदेश करतो व सर्व जीवांच्या हिताची इच्छा करतो त्याचा आश्रय घेऊन परमार्थ व व्यवहार सिद्ध करून सुख प्राप्त करा. ॥ ९ ॥