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यो अ॒र्यो म॑र्त॒भोज॑नं परा॒ददा॑ति दा॒शुषे॑। इन्द्रो॑ अ॒स्मभ्यं॑ शिक्षतु॒ वि भ॑जा॒ भूरि॑ ते॒ वसु॑ भक्षी॒य तव॒ राध॑सः ॥

English Transliteration

yo aryo martabhojanam parādadāti dāśuṣe | indro asmabhyaṁ śikṣatu vi bhajā bhūri te vasu bhakṣīya tava rādhasaḥ ||

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Pad Path

यः। अ॒र्यः। म॒र्त॒ऽभोज॑नम्। प॒रा॒ऽददा॑ति। दा॒शुषे॑। इन्द्रः॑। अ॒स्मभ्य॑म्। शि॒क्ष॒तु॒। वि। भ॒ज॒। भूरि॑। ते॒। वसु॑। भ॒क्षी॒य। तव॑। राध॑सः ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:81» Mantra:6 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:2» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:13» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह परमात्मा कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - हे विद्वन् ! (यः) जो (इन्द्र) परम ऐश्वर्य का देनेहारा (अर्यः) ईश्वर (ते) तुझ (दाशुषे) दाता और (अस्मभ्यम्) हमारे लिये (भूरि) बहुत (वसु) धन को (मर्त्तभोजनम्) वा मनुष्य के भोजनार्थ पदार्थ को (पराददाति) देता है, उस ईश्वरनिर्मित पदार्थों की आप हमको सदा (शिक्षतु) शिक्षा करो और (तव) आपके (राधसः) शिक्षित कार्यरूप धन का मैं (भक्षीय) सेवन करूँ ॥ ६ ॥
Connotation: - जो ईश्वर इस जगत् को रच धारण कर जीवों को न देता तो किसी को कुछ भी भोगसामग्री प्राप्त न हो सकती। जो यह परमात्मा वेद द्वारा मनुष्यों को शिक्षा न करता तो किसी को विद्या का लेश भी प्राप्त न होता, इससे विद्वान् को योग्य है कि सबके सुख के लिए विद्या का विस्तार करना चाहिये ॥ ६ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे विद्वन् ! यं इन्द्रोऽर्य ईश्वरः ते दाशुषेऽस्मभ्यं भूरि वसु मर्त्तभोजनं च पराददाति तदुत्पन्नं भवानस्मभ्यं सदा शिक्षतु। तस्य तव शिक्षितस्य राधसोऽहमपि भक्षीय ॥ ६ ॥

Word-Meaning: - (यः) वक्ष्यमाणः (अर्यः) सर्वस्वामीश्वरः (मर्त्तभोजनम्) मर्तेभ्यो मनुष्येभ्यो भोजनं मर्त्तानां पालनं वा (पराददाति) पूर्वं प्रयच्छति (दाशुषे) दानशीलाय जीवाय (इन्द्रः) परमैश्वर्ययुक्तः (अस्मभ्यम्) (शिक्षतु) विद्यामुपाददातु (वि) विशेषे (भज) सेवस्व (भूरि) बहु (ते) तव (वसु) वस्तुजातम् (भक्षीय) सेवय (तव) (राधसः) वृद्धिकारकस्य कार्यरूपस्य धनस्य। शेषत्वात् कर्मणि षष्ठी ॥ ६ ॥
Connotation: - यदीश्वर इदं जगद्रचयित्वा धृत्वा जीवेभ्यो न दद्यात्तर्हि न कस्यापि किंचिन्मात्रा भोगसामग्री भवितुं शक्या। यद्ययं वेदद्वारा शिक्षां न कुर्यात्तर्हि न कस्यापि विद्यालेशो भवेत्तस्माद्विदुषा सर्वेषां सुखाय विद्या प्रसारणीया ॥ ६ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जर ईश्वराने या जगाची निर्मिती करून धारण करून जीवांना काही दिले नसते तर कोणतीही भोगसामग्री प्राप्त झाली नसती. जर परमेश्वराद्वारे वेदविद्येने माणसांना शिक्षित केले नसते तर कुणालाही लेशमात्र विद्या प्राप्त झाली नसती. त्यासाठी सर्वांना सुख मिळावे म्हणून विद्वानांनी विद्येचा विस्तार केला पाहिजे. ॥ ६ ॥