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ए॒वा ह्य॑स्य सू॒नृता॑ विर॒प्शी गोम॑ती म॒ही। प॒क्वा शाखा॒ न दा॒शुषे॑॥

English Transliteration

evā hy asya sūnṛtā virapśī gomatī mahī | pakvā śākhā na dāśuṣe ||

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Pad Path

ए॒व। हि। अ॒स्य॒। सू॒नृता॑। वि॒ऽर॒प्शी। गोऽम॑ती। म॒ही। प॒क्वा। शाखा॑। न। दा॒शुषे॑॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:8» Mantra:8 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:16» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:3» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

उक्त अर्थों के निमित्त और कार्य्य का प्रकाश अगले मन्त्र में किया है-

Word-Meaning: - (पक्वा शाखा न) जैसे आम और कटहर आदि वृक्ष, पकी डाली और फलयुक्त होने से प्राणियों को सुख देनेहारे होते हैं, (अस्य हि) वैसे ही इस परमेश्वर की (गोमती) जिसको बहुत से विद्वान् सेवन करनेवाले हैं, जो (सूनृता) प्रिय और सत्यवचन प्रकाश करनेवाली (विरप्शी) महाविद्यायुक्त और (मही) सबको सत्कार करने योग्य चारों वेद की वाणी है, सो (दाशुषे) पढ़ने में मन लगानेवालों को सब विद्याओं का प्रकाश करनेवाली है। तथा (अस्य हि) जैसे इस सूर्य्यलोक की (गोमती) उत्तम मनुष्यों के सेवन करने योग्य (सूनृता) प्रीति के उत्पादन करनेवाले पदार्थों का प्रकाश करनेवाली (विरप्शी) बड़ी से बड़ी (मही) बड़े-बड़े गुणयुक्त दीप्ति है, वैसे वेदवाणी (दाशुषे) राज्य की प्राप्ति के लिये राज्यकर्मों में चित्त देनेवालों को सुख देनेवाली होती है॥८॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे विविध प्रकार से फलफूलों से युक्त आम और कटहर आदि वृक्ष नाना प्रकार के फलों के देनेवाले होके सुख देनेहारे होते हैं, वैसे ही ईश्वर से प्रकाश की हुई वेदवाणी बहुत प्रकार की विद्याओं को देनेहारी होकर सब मनुष्यों को परम आनन्द देनेवाली है। जो विद्वान् लोग इसको पढ़ के धर्मात्मा होते हैं, वे ही वेदों का प्रकाश और पृथिवी में राज्य करने को समर्थ होते हैं॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तन्निमित्तकार्य्यमुपदिश्यते।

Anvay:

पक्वा शाखा न इवास्य हि गोमती सूनृता विरप्शी मही दाशुषे सुखं पिन्वते॥८॥

Word-Meaning: - (एव) अवधारणार्थे (हि) हीत्यनेककर्मा। (निरु०१.५) (अस्य) परमेश्वरस्य सूर्य्यलोकस्य वा प्रकाशनात् (सूनृता) प्रियसत्यप्रकाशिका वाक्, अन्नादिपदार्थवती वा। सूनृतेत्यन्ननामसु पठितम्। (निघं०२.७) सुष्ठु ऋतं यथार्थं ज्ञानं यस्यां साऽन्नवती वा। (विरप्शी) महाविद्यायुक्ता। विरप्शी इति महन्नामसु पठितम्। (निघं०३.३ (गोमती) गावो भूयांसः स्तोतारो विद्यन्ते यस्यां सा। गौरिति स्तोतृनामसु पठितम्। (निघं०३.१६) (मही) सर्वपूज्या वाङ्मयी वेदचतुष्टयी पृथिवी वा। महीति वाङ्नामसु पठितम्। (निघं०१.११) पृथिवीनामसु च। (निघं०१.१) (पक्वा) पक्वफलयुक्ता (शाखा) वृक्षावयवाः। शाखाः खशयाः शक्नोतेर्वा। (निरु०१.४) (न) इव (दाशुषे) अध्ययनार्थं तद्राज्यप्राप्त्यर्थं च ध्यानं दत्तवते मनुष्याय॥८॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा विविधपुष्पफलवन्त आम्रपनसादयो वृक्षा विविधफलप्रदाः सन्ति, तथैवेश्वरेण प्रकाशिता विविधविद्यानन्दप्रदा वेदा अनेकसुखभोगप्रदाः पृथिव्यादयश्च प्रसिद्धीकृताः सन्ति। एतेषां प्रकाशो राज्यं च विद्वद्भिरेव कर्त्तुं शक्यते॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे विविध प्रकारच्या फळाफुलांनी युक्त आंबा व फणस इत्यादी वृक्ष नाना प्रकारची फळे देणारे व सुख देणारे असतात. तसेच ईश्वराने प्रकाशित केलेली वेदवाणी अनेक प्रकारच्या विद्या देणारी असून सर्व माणसांना अत्यंत आनंद देणारी असते. जे विद्वान वेदवाणीनुसार धर्मात्मा बनून वेदांचा प्रकाश करतात ते पृथ्वीवर राज्य करण्यास समर्थ असतात. ॥ ८ ॥