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यो नो॑ अग्नेऽभि॒दास॒त्यन्ति॑ दू॒रे प॑दी॒ष्ट सः। अ॒स्माक॒मिद्वृ॒धे भ॑व ॥

English Transliteration

yo no agne bhidāsaty anti dūre padīṣṭa saḥ | asmākam id vṛdhe bhava ||

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Pad Path

यः। नः॒। अ॒ग्ने॒। अ॒भि॒ऽदास॑ति। अन्ति॑। दू॒रे। प॒दी॒ष्ट। सः। अ॒स्माक॑म्। इत्। वृ॒धे। भ॒व॒ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:79» Mantra:11 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:28» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:13» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) विज्ञान देनेवाले (यः) जो विद्वान् ! आप (अन्ति) समीप और (दूरे) दूर (नः) हमारे लिये (अभिदासति) अभीष्ट वस्तुओं को देते और (पदीष्ट) प्राप्त होते हो (सः) सो आप (अस्माकम्) हमारी (इत्) ही (वृधे) वृद्धि करनेवाले (भव) हूजिये ॥ ११ ॥
Connotation: - मनुष्यों को उस ईश्वर की, जो बाहर-भीतर सर्वत्र व्यापक होके ज्ञान देता है तथा जो विद्वान् दूर वा समीप स्थित होके सत्य उपदेश से विद्या देता है, उसकी सेवा क्यों न करनी चाहियेि अर्थात् अवश्य करनी चाहिये ॥ ११ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे अग्ने ! यः भवानन्ति दूरे नोऽस्मभ्यमभिदासति पदीष्ट सं त्वमस्माकं वृध इद्भव ॥ ११ ॥

Word-Meaning: - (यः) विद्वान् (नः) अस्मभ्यम् (अग्ने) विज्ञापक (अभिदासति) अभीष्टं ददाति (अन्ति) समीपे। अत्र सुपां सुलुगिति विभक्तेर्लुक्। छान्दसो वर्णलोपो वेति कलोपश्च। (दूरे) विप्रकृष्टे (पदीष्ट) पद्यते। अत्र लिङः सलोपो०। इति सकारलोपः। अत्रान्येषामपीति दीर्घः। (सः) (अस्माकम्) (इत्) एव (वृधे) वृद्धये (भव) ॥ ११ ॥
Connotation: - मनुष्यैर्योऽन्तर्बहिर्व्याप्तेश्वरो ज्ञानं विज्ञापयति यो विद्वान् दूरे समीपे वा स्थित्वा सत्योपदेशेन विद्याः प्रददाति स कथं न सम्यक् सेवनीयः ॥ ११ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - अंतर्बाह्य व्याप्त असलेला ईश्वर ज्ञान देतो तसेच दूर किंवा जवळ असलेला विद्वान सत्याचा उपदेश करतो तेव्हा माणसांनी त्याचा स्वीकार का करू नये.