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प्र पू॒तास्ति॒ग्मशो॑चिषे॒ वाचो॑ गोतमा॒ग्नये॑। भर॑स्व सुम्न॒युर्गिरः॑ ॥

English Transliteration

pra pūtās tigmaśociṣe vāco gotamāgnaye | bharasva sumnayur giraḥ ||

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Pad Path

प्र। पू॒ताः। ति॒ग्मऽशो॑चिषे। वाचः॑। गोतम। अ॒ग्नये॑। भर॑स्व। सु॒म्न॒ऽयुः। गिरः॑ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:79» Mantra:10 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:28» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:13» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर भी अगले मन्त्र में विद्वान् कैसा हो, इस विषय का उपदेश किया है ॥

Word-Meaning: - हे (गोतम) अत्यन्त स्तुति और (सुम्नयुः) सुख की इच्छा करनेवाले विद्वान् ! तू (तिग्मशोचिषे) तीक्ष्ण बुद्धि प्रकाशवाले (अग्नये) विज्ञानरूप और विज्ञानवाले विद्वान् के लिये (पूताः) पवित्र करनेवाली (गिरः) विद्या की शिक्षा और उपदेश से युक्त वाणियों को धारण करते हैं, उन (वाचः) वाणियों को (प्र भरस्व) सब प्रकार धारण कर ॥ १० ॥
Connotation: - जिस कारण परमेश्वर और परम विद्वान् के विना कोई दूसरा सत्यविद्या के प्रकाश करने को समर्थ नहीं होता, इसलिए ईश्वर और विद्वान् की सदा सेवा करनी चाहिये ॥ १० ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे गोतम ! सुम्नयुस्त्वं विद्वांसः तिग्मशोचिषेऽग्नये याः पूतागिरो धरन्ति ता वाचः प्रभरस्व ॥ १० ॥

Word-Meaning: - (प्र) प्रकृष्टार्थे (पूताः) पवित्रकारिकाः (तिग्मशोचिषे) तीव्रबुद्धिप्रकाशाय (वाचः) विद्यावाणीः (गोतम) अतिशयेन स्तोतः (अग्नये) विज्ञानवते (भरस्व) धर (सुम्नयुः) य आत्मनः सुम्नं सुखमिच्छति तच्छीलः (गिरः) विद्याशिक्षोपदेशयुक्ताः ॥ १० ॥
Connotation: - यस्मान्नहि कश्चिदन्यः परमेश्वरेण परमविदुषा वा विना सत्यविद्याः प्रकाशितुं शक्नोति, तस्मादेतौ सदा संसेवनीयौ स्तः ॥ १० ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - परमेश्वर व अत्यंत विद्वान यांच्याशिवाय दुसरा कोणी सत्यविद्या प्रकट करण्यास समर्थ असू शकत नाही. त्यासाठी ईश्वर व विद्वानाची सेवा सदैव करावी. ॥ १० ॥