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स नो॑ नृ॒णां नृत॑मो रि॒शादा॑ अ॒ग्निर्गिरोऽव॑सा वेतु धी॒तिम्। तना॑ च॒ ये म॒घवा॑नः॒ शवि॑ष्ठा॒ वाज॑प्रसूता इ॒षय॑न्त॒ मन्म॑ ॥

English Transliteration

sa no nṛṇāṁ nṛtamo riśādā agnir giro vasā vetu dhītim | tanā ca ye maghavānaḥ śaviṣṭhā vājaprasūtā iṣayanta manma ||

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Pad Path

सः। नः॒। नृ॒णाम्। नृऽत॑मः। रि॒शादाः॑। अ॒ग्निः। गिरः॑। अव॑सा। वे॒तु॒। धी॒तिम्। तना॑। च॒। ये। म॒घऽवा॑नः। शवि॑ष्ठाः। वाज॑ऽप्रसूताः। इ॒षय॑न्त। मन्म॑ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:77» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:25» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:13» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह उक्त विद्वान् कैसा हो, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - जो (नः) हमारे (नृणाम्) मनुष्यों के बीच (नृतमः) अत्यन्त उत्तम मनुष्य (अग्निः) पावक के तुल्य अधिक ज्ञान प्रकाशवाला (अवसा) रक्षण आदि से (गिरः) वाणी और (धीतिम्) धारणा को चाहता है (सः) वह मनुष्य हमारे बीच में सभाध्यक्ष के अधिकार को (वेतु) प्राप्त हो, जो (नृणाम्) मनुष्यों में (रिशादाः) शत्रुओं को नष्ट करनेहारे (वाजप्रसूताः) विज्ञान आदि गुणों से शोभायमान (शविष्ठाः) अत्यन्त बलवान् (मघवानः) प्रशंसित धनवाले (तना) विस्तृत धनों की और (मन्म) विज्ञान (च) विद्या आदि अच्छे-अच्छे गुणों की (इषयन्त) इच्छा करते हैं, इसीसे हमारी सभा में वे लोग सभासद् हों ॥ ४ ॥
Connotation: - मनुष्यों को चाहिये कि अत्युत्तम सभाध्यक्ष मनुष्यों के सहित सभा बना के राज्यव्यवहार की रक्षा से चक्रवर्त्तिराज्य की शिक्षा करे, इसके विना कभी स्थिर राज्य नहीं हो सकता, इसलिये पूर्वोक्त कर्म का अनुष्ठान करके एक को राजा नहीं मानना चाहिये ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

यो नोऽस्माकं नृणां मध्ये नृतमोऽग्निरिवावसा गिरो धीतिं च कामयते स नो नृणां मध्ये सभाध्यक्षत्वं वेतु प्राप्नोतु। ये नोऽस्माकं नृणां मध्ये रिशादा वाजप्रसूताः श्रविष्ठा मघवानस्तना मन्म चात् सद्गुणानिषयन्त ते नोऽस्माकं सभासदः सन्तु ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (सः) (नः) अस्माकम् (नृणाम्) मनुष्याणां मध्ये (नृतमः) अतिशयेनोत्तमो नरः (रिशादाः) यो रिशान् हिंसकान् शत्रूनत्ति नाशयति सः। अत्रादधातोरसुन्। (अग्निः) उत्कृष्टगुणविज्ञानः (गिरः) वाणी (अवसा) रक्षणादिना (वेतु) कामयताम् (धीतिम्) धारणाम् (तना) विस्तृतानि धनानि। तनेति धननामसु पठितम्। (निघं०२.१०) (च) विद्यादिशुभगुणानां समुच्चये (ये) (मघवानः) प्रशस्तधनाः (शविष्ठाः) अतिशये बलवन्तः (वाजप्रसूताः) विज्ञानादिगुणैः प्रकाशिताः (इषयन्त) एषयन्ति प्राप्नुवन्ति। अत्र लङि वा च्छन्दसि सर्वे विधयो भवन्तीति गुणाभावोऽडभावश्च। (मन्म) विज्ञानम्। अत्रान्येभ्योऽपि दृश्यन्त इति मनधातोर्मनिन् ॥ ४ ॥
Connotation: - मनुष्यैः सपरमोत्तमसभाध्यक्षमनुष्यां सभां निर्माय राज्यव्यवहारपालने चक्रवर्त्तिराज्यं प्रशासनीयं नैवं विना कदाचित् स्थिरं राज्यं कस्यचिद्भवितुमर्हति। तस्मादेतत्सदानुष्ठायैको राजा नैव मन्तव्यः ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी अत्युत्तम सभाध्यक्ष व माणसांची सभा बनवावी आणि राज्यव्यवहाराचे रक्षण करून चक्रवर्ती राज्याचे शिक्षण द्यावे. त्याशिवाय राज्य स्थिर होऊ शकत नाही. त्यासाठी पूर्वोक्त कर्माचे अनुष्ठान करून एकाला राजा मानता कामा नये. ॥ ४ ॥