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स हि क्रतुः॒ स मर्यः॒ स सा॒धुर्मि॒त्रो न भू॒दद्भु॑तस्य र॒थीः। तं मेधे॑षु प्रथ॒मं दे॑व॒यन्ती॒र्विश॒ उप॑ ब्रुवते द॒स्ममारीः॑ ॥

English Transliteration

sa hi kratuḥ sa maryaḥ sa sādhur mitro na bhūd adbhutasya rathīḥ | tam medheṣu prathamaṁ devayantīr viśa upa bruvate dasmam ārīḥ ||

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Pad Path

सः। हि। क्रतुः॑। सः। मर्यः॑। सः। सा॒धुः। मि॒त्रः। न। भू॒त्। अद्भु॑तस्य। र॒थीः। तम्। मेधे॑षु। प्र॒थ॒मम्। दे॒व॒ऽयन्तीः। विशः॑। उप॑। ब्रु॒व॒ते॒। द॒स्मम्। आरीः॑ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:77» Mantra:3 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:25» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:13» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह विद्वान् कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - (देवयन्तीः) कामनायुक्त (आरीः) ज्ञानवाली (विशः) प्रजा (मेधेषु) पढ़ने-पढ़ाने और संग्राम आदि यज्ञों में (तम्) उस (दस्मम्) दुःखनाश करनेवाले को सभाध्यक्ष मान कर (प्रथमम्) सबसे उत्तम (उपब्रुवते) कहती है कि जो (मित्रः) सबका मित्र (न) जैसा (भूत्) हो (स हि) वही सब प्रकार (क्रतुः) बुद्धि और सुकर्म से युक्त (सः) वही (मर्य्यः) मनुष्यपन का रखनेवाला और (सः) वही (साधुः) सबका उपकार करने तथा श्रेष्ठ मार्ग में चलनेवाला विद्वान् (अद्भुतस्य) आश्चर्यकर्मों से युक्त सेना का (रथीः) उत्तम रथवाला रथी होवे ॥ ३ ॥
Connotation: - मनुष्यों को चाहिये कि जो सबसे अधिक गुण, कर्म और स्वभाव तथा सबका उपकार करनेवाला सज्जन मनुष्य है, उसीको सभाध्यक्ष का अधिकार देके राजा माने अर्थात् किसी एक मनुष्य को स्वतन्त्र राज्य का अधिकार न देवें, किन्तु शिष्ट पुरुषों की जो सभा है, उसके आधीन राज्य के सब काम रक्खें ॥ ३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स विद्वान् कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

देवयन्तीः कामयमाना आरीर्ज्ञानवत्यो विशः प्रजाः मेधेषु तं दस्मं सभाध्यक्षत्वेन प्रथममुपब्रुवते। यो मित्रो न सर्वस्य हृदिव भूद् भवेत्, स हि खलु सर्वथा ऋतः स मर्यो मनुष्यस्वभावः स साधुरद्भुतस्य सैन्यस्य रथो रथवान् भवेत् ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (सः) अग्निर्ज्ञानवान् विद्वान् (हि) खलु (क्रतुः) प्रज्ञाकर्मयुक्तः प्रज्ञाकर्मज्ञापको वा (सः) (मर्यः) मनुष्यः (सः) (साधुः) परोपकारी सन्मार्गस्थितो विद्वान् (मित्रः) सुहृत् (न) इव (भूत्) भवेत्। अत्राडभावः। (अद्भुतस्य) आश्चर्यकर्मयुक्तस्य सैन्यस्य (रथीः) प्रशस्तरथः। अत्र वा छन्दसि सर्वे विधयो भवन्तीति सोरलुक्। (तम्) (मेधेषु) अध्ययनाध्यापनसंग्रामादियज्ञेषु (प्रथमम्) सर्वोत्कृष्टम् (देवयन्तीः) कामयमानाः। अत्र वा छन्दसीति पूर्वसवर्णादेशः। (विशः) प्रजाः (उप) (ब्रुवते) (दस्मम्) दुःखानामुपक्षेत्तारम् (आरीः) ज्ञानवत्यः। अत्र ऋ धातोः सर्वधातुभ्य इन्नितीन्। कृदिकारादक्तिन इति ङीष् पूर्वसवर्णादेशश्च ॥ ३ ॥
Connotation: - मनुष्यैर्यः सर्वोत्कृष्टगुणकर्मस्वभावः सज्जनः सर्वोपकारी मनुष्योऽस्ति, स एव सभाध्यक्षत्वेन राजा मन्तव्यः। नैव कस्यचिदेकस्याज्ञायां राज्यव्यवहारोऽधिकर्त्तव्यः। किन्तु शिष्टसभाधीनान्येव सर्वाणि कार्याणि रक्षणीयानि ॥ ३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी सर्वात उत्कृष्ट गुण, कर्म, स्वभाव व सर्वांवर उपकार करणाऱ्या सज्जन माणसाला सभाध्यक्षाचा अधिकार द्यावा व राजा मानावे. अर्थात एखाद्या माणसाला स्वतंत्र राज्याचा अधिकार देता कामा नये; परंतु सभ्य पुरुषांच्या सभेच्या अधीन राज्याचे सर्व काम ठेवावे. ॥ ३ ॥