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यो अ॑ध्व॒रेषु॒ शंत॑म ऋ॒तावा॒ होता॒ तमू॒ नमो॑भि॒रा कृ॑णुध्वम्। अ॒ग्निर्यद्वेर्मर्ता॑य दे॒वान्त्स चा॒ बोधा॑ति॒ मन॑सा यजाति ॥

English Transliteration

yo adhvareṣu śaṁtama ṛtāvā hotā tam ū namobhir ā kṛṇudhvam | agnir yad ver martāya devān sa cā bodhāti manasā yajāti ||

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Pad Path

यः। अ॒ध्व॒रेषु॑। शम्ऽत॑मः। ऋ॒तऽवा॑। होता॑। तम्। ऊँ॒ इति॑। नमः॑ऽभिः। आ। कृ॒णु॒ध्व॒म्। अ॒ग्निः। यत्। वेः। मर्ता॑य। दे॒वान्। सः। च॒। बोधा॑ति। मन॑सा। य॒जा॒ति॒ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:77» Mantra:2 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:25» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:13» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह विद्वान् कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! तुम लोग (यः) जो (अग्निः) विज्ञानस्वरूप परमेश्वर वा विद्वान् (अध्वरेषु) सदैव ग्रहण करने योग्य यज्ञों में (शन्तमः) अत्यन्त आनन्द को देनेहारा तथा (ऋतावा) शुभ गुण, कर्म,और स्वभाव से सत्य है (होता) सब जगत् और विज्ञान का देनेवाला है तथा (यत्) जो (मर्त्ताय) मनुष्य के लिये (देवान्) विज्ञान और श्रेष्ठ गुणों को (बोधाति) अच्छे प्रकार जाने (च) और (यजाति) संगत करें, इसलिये (तम् उ) उसी परमेश्वर वा विद्वान् को (नमोभिः) नमस्कार वा अन्नों से प्रसन्न (आ कृणुध्वम्) करो ॥ २ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। परमेश्वर और धर्मात्मा मनुष्य के विना मनुष्य को विद्या का देनेवाला कोई दूसरा नहीं है तथा उन दोनों को छोड़ के उपासना तथा सत्कार भी किसी का न करना चाहिये ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यूयं योऽग्निरध्वरेषु शन्तम ऋतावा होताऽस्ति यद्यो मर्त्ताय देवान् वेस्स मनसा सर्वान् बोधाति यजाति च तमु नमोभिराकृणुध्वम् प्रसन्नं कुरुध्वम् ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (यः) विद्वान् (अध्वरेषु) अहिंसनीयेषु (शन्तमः) अतिशयेनानन्दप्रदः (ऋतावा) सत्यगुणकर्मस्वभाववान् (होता) सर्वस्य जगतो विज्ञानस्य वा दाता (तम्) (उ) वितर्के (नमोभिः) नमस्कारैरन्नैर्वा (आ) समन्तात् (कृणुध्वम्) कुरुध्वम् (अग्निः) विज्ञानस्वरूपः (यत्) यः (वेः) आवहति (मर्त्ताय) मनुष्याय (देवान्) दिव्यगुणान् विज्ञानादीन् (सः) (च) समुच्चये (बोधाति) जानीयात् (मनसा) विज्ञानेन (यजाति) सङ्गच्छेत ॥ २ ॥
Connotation: - नह्याप्तेन मनुष्येण विना मनुष्याणां विद्याऽऽध्यापको विद्यते, नहि तं विहायान्यः कश्चित् सत्कर्त्तुमर्होऽस्तीति वेद्यम् ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. परमेश्वर व धर्मात्मा विद्वान माणसाखेरीज मनुष्यांना विद्या देणारा दुसरा कुणी नाही. तसेच त्या दोघांना सोडून कुणाचीही उपासना व सत्कार करता कामा नये. ॥ २ ॥