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प्र॒जाव॑ता॒ वच॑सा॒ वह्नि॑रा॒सा च॑ हु॒वे नि च॑ सत्सी॒ह दे॒वैः। वेषि॑ हो॒त्रमु॒त पो॒त्रं य॑जत्र बो॒धि प्र॑यन्तर्जनित॒र्वसू॑नाम् ॥

English Transliteration

prajāvatā vacasā vahnir āsā ca huve ni ca satsīha devaiḥ | veṣi hotram uta potraṁ yajatra bodhi prayantar janitar vasūnām ||

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Pad Path

प्र॒जाव॑ता। वच॑सा। वह्निः॑। आ॒सा। आ। च॒। हु॒वे। नि। च॒। स॒त्सि॒। इ॒ह। दे॒वैः। वेषि॑। हो॒त्रम्। उ॒त। पो॒त्रम्। य॒ज॒त्र॒। बो॒धि। प्र॒ऽय॒न्तः॒। ज॒नि॒तः॒। वसू॑नाम् ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:76» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:24» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:13» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वान् कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - हे (यजत्र) दाता ! (वह्निः) सुखों को प्राप्त करनेवाले तू (इह) इस संसार में (देवैः) विद्वानों के साथ (सत्सि) सभा में (प्रजावता) प्रजा की सम्मति के अनुकूल (वचसा) वचनों से (बोधि) बोध कराता है, जिससे (होत्रम्) हवन करने योग्य (च) और (पोत्रम्) पवित्र करनेवाले वस्तुओं को (उत) भी (नि) निरन्तर (वेषि) प्राप्त होता है, (जनितः) सुखोत्पन्न करनेवाले (प्रयन्तः) प्रयत्न से तू जैसे (वसूनाम्) पृथिव्यादि पदार्थों को जाननेवाला है, वैसे मैं (आसा) मुख से तेरी (च) अन्य विद्वानों की भी (आहुवे) स्तुति करता हूँ ॥ ४ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्य परमेश्वर और धार्मिक विद्वानों के सहाय और संग से शुद्धि को प्राप्त होकर सब श्रेष्ठ वस्तुओं को प्राप्त हों ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे यजत्र ! यो वह्निस्त्वमिह देवैः सह सत्सि प्रजावता वचसा बोधि यतो होत्रमुत पोत्रं निवेषि। हे यजत्र ! प्रयन्तर्यथा त्वं वसूनां वेत्ताऽसि तथाऽहमासा त्वां हुवे ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (प्रजावता) प्रशस्ता प्रजा विद्यते यस्मिँस्तेन (वचसा) वचनेन (वह्निः) सुखानां प्रापकः (आसा) अस्यन्ते वर्णा येन तेन मुखेन (च) समुच्चये (हुवे) स्तुवे। अत्र बहुलं छन्दसीति संप्रसारणम्। (नि) नितराम् (च) पुनरर्थे (सत्सि) सभायाम् (इह) अस्मिन् संसारे (देवैः) दिव्यगुणैर्विद्वद्भिर्वा (वेषि) व्याप्नोषि (होत्रम्) हवनीयं वस्तु (उत) अपि (पोत्रम्) पवित्रकारम् (यजत्र) दातः (बोधि) जानीहि (प्रयन्तः) प्रकृष्टनियमकर्त्तः (जनितः) उत्पादकः (वसूनाम्) वासाधिकरणानाम् ॥ ४ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैः परमेश्वरस्य धार्मिकाणां विदुषां च सहायेन पवित्रतां सम्पाद्य सर्वाणि श्रेष्ठानि प्राप्तव्यानि ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी परमेश्वर व धार्मिक विद्वानांच्या साह्याने व संगतीने शुद्ध (पवित्र) बनून सर्व श्रेष्ठ वस्तू प्राप्त कराव्यात. ॥ ४ ॥