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प्र सु विश्वा॑न्र॒क्षसो॒ धक्ष्य॑ग्ने॒ भवा॑ य॒ज्ञाना॑मभिशस्ति॒पावा॑। अथा व॑ह॒ सोम॑पतिं॒ हरि॑भ्यामाति॒थ्यम॑स्मै चकृमा सु॒दाव्ने॑ ॥

English Transliteration

pra su viśvān rakṣaso dhakṣy agne bhavā yajñānām abhiśastipāvā | athā vaha somapatiṁ haribhyām ātithyam asmai cakṛmā sudāvne ||

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Pad Path

प्र। सु। विश्वा॑न्। र॒क्षसः॑। धक्षि॑। अ॒ग्ने॒। भव॑। य॒ज्ञाना॑म्। अ॒भि॒श॒स्ति॒ऽपावा॑। अथ॑। आ। व॒ह॒। सोम॑ऽपतिम्। हरि॑ऽभ्याम्। आ॒ति॒थ्यम्। अ॒स्मै॒। च॒कृ॒म॒। सु॒ऽदाव्ने॑ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:76» Mantra:3 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:24» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:13» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह विद्वान् कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) दुष्टों को शिक्षा करनेवाले सभाध्यक्ष ! जिस प्रकार आप (विश्वान्) सब (रक्षसः) दुष्ट मनुष्यों वा दोषों का (प्र) अच्छे प्रकार (धक्षि) नाश करते हैं, इसी कारण (यज्ञानाम्) जो जानने योग्य कारीगरी है उनके साधकों की (अभिशस्तिपावा) हिंसा से रक्षा करनेवाले (सु) अच्छे प्रकार (भव) हूजिये, जैसे सूर्य्य (हरिभ्याम्) धारण और आकर्षण से सब सुखों को प्राप्त करता है, वैसे (सोमपतिम्) ऐश्वर्यों के स्वामी को (आवह) प्राप्त हूजिये, (अथ) इसके पीछे (अस्मै) इस (सुदाव्ने) विद्या विज्ञान अच्छी शिक्षा राज्यादि धनों के देनेवाले आपके लिये हम लोग (आतिथ्यम्) सत्कार (चकृम) करते हैं ॥ ३ ॥
Connotation: - यहाँ वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे ईश्वर ने जगत् में प्राणियों के वास्ते सब पदार्थ दिये हैं, वैसे जो मनुष्य उत्तम विद्या और शिक्षा देवे उसीका सत्कार करें, अन्य का नहीं ॥ ३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे अग्ने ! यतस्त्वं विश्वान् रक्षसः प्रधक्षि तस्मादेव यज्ञानामभिशस्तिपावा भव। यथा सूर्यो हरिभ्यां सोमपतिं वहति तथैश्वर्यमावहाऽथातोऽस्मै सुदाव्ने तुभ्यमातिथ्यं चकृम ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (प्र) प्रकृष्टे (सु) सुष्ठु (विश्वान्) सर्वान् (रक्षसः) दुष्टान् मनुष्यान् दोषान् वा। अत्र लिङ्गव्यत्ययः। (धक्षि) दहसि। अत्र बहुलं छन्दसीति शपो लुक्। (अग्ने) दुष्टप्रशासक सभाध्यक्ष (भव) (यज्ञानाम्) विज्ञानक्रियाशिल्पसाधकानाम् (अभिशस्तिपावा) योऽभिशस्तेर्हिंसायाः पावा रक्षकः सः (अथ) आनन्तर्ये (आ) अभितः (वह) प्राप्नुहि (सोमपतिम्) ऐश्वर्याणां स्वामिनम् (हरिभ्याम्) धारणाकर्षणाभ्याम् (आतिथ्यम्) अतिथेः कर्म (अस्मै) (चकृम) कुर्याम (सुदाव्ने) विद्याविनयसुशिक्षाराज्यधनानां सुष्ठु दात्रे ॥ ३ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथेश्वरेण जगति प्राणिभ्यः सर्वे पदार्था दत्तास्तथा मनुष्यैर्यो विद्यासुशिक्षे दद्यात्तस्यैव सत्कारः कर्त्तव्यो नेतरस्य ॥ ३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे ईश्वराने जगातील प्राण्यांसाठी सर्व पदार्थ दिलेले आहेत. तसे जो माणूस उत्तम विद्या व शिक्षण देतो त्याचाच सत्कार करावा, इतराचा नाही. ॥ ३ ॥