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उ॒प॒प्र॒यन्तो॑ अध्व॒रं मन्त्रं॑ वोचेमा॒ग्नये॑। आ॒रे अ॒स्मे च॑ शृण्व॒ते ॥

English Transliteration

upaprayanto adhvaram mantraṁ vocemāgnaye | āre asme ca śṛṇvate ||

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Pad Path

उ॒प॒ऽप्र॒यन्तः॑। अ॒ध्व॒रम्। मन्त्र॑म्। वो॒चे॒म॒। अ॒ग्नये॑। आ॒रे। अ॒स्मे इति॑। च॒। शृ॒ण्व॒ते ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:74» Mantra:1 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:21» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:13» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब चौहत्तरवें सूक्त का आरम्भ किया जाता है, इसके प्रथम मन्त्र में ईश्वर के गुणों का उपदेश किया है ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (उपप्रयन्तः) समीप प्राप्त होनेवाले हम लोग इस (अस्मे) हम लोगों के (आरे) दूर (च) और समीप में (शृण्वते) श्रवण करते हुए (अग्नये) परमेश्वर के लिये (अध्वरम्) हिंसारहित (मन्त्रम्) विचार को निरन्तर (वोचेम) उपदेश करें, वैसे तुम भी किया करो ॥ १ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि बाहर-भीतर व्याप्त होके हम लोगों के दूर-समीप व्यवहार के कर्मों को जानते हुए परमात्मा को जानकर, अधर्म से अलग होकर, सत्य धर्म का सेवन करके आनन्दयुक्त रहें ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथेश्वरगुणा उपदिश्यन्ते ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथोपप्रयन्तो वयमस्मे आरे च शृण्वतेऽग्नयेऽध्वरं मन्त्रं सततं वोचेम तथा यूयमपि वदत ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (उपप्रयन्तः) समीपं प्राप्नुवन्तः (अध्वरम्) अहिंसकम् (मन्त्रम्) विचारम् (वोचेम) उच्याम। अत्राशीर्लिङ्यङ् वचउमित्यमागमश्च। (अग्नये) परमेश्वराय (आरे) दूरे। आर इति दूरनामसु पठितम्। (निघं०३.२६) (अस्मे) अस्माकम् (च) चात्समीपे (शृण्वते) श्रवणं कुर्वते ॥ १ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्बहिरन्तर्व्याप्तमस्माकं दूरे समीपे सर्वव्यवहारं विजानन्तं परमात्मानं विज्ञायाऽधर्माद्भीत्वा सत्यं धर्मं सेवित्वाऽऽनन्दितव्यम् ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात ईश्वर, विद्वान व विद्युत अग्नीच्या गुणाचे वर्णन असल्यामुळे पूर्वसूक्तार्थाबरोबर या सूक्ताची संगती जाणावी. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी आत व बाहेर व्याप्त असणाऱ्या व स्वतःच्या दूर आणि जवळच्या व्यवहार कर्मांना जाणणाऱ्या परमात्म्याला जाणून अधर्माचा त्याग करावा व सत्य धर्माचे पालन करून आनंदाने जगावे. ॥ १ ॥