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यान्रा॒ये मर्ता॒न्त्सुषू॑दो अग्ने॒ ते स्या॑म म॒घवा॑नो व॒यं च॑। छा॒येव॒ विश्वं॒ भुव॑नं सिसक्ष्यापप्रि॒वान्रोद॑सी अ॒न्तरि॑क्षम् ॥

English Transliteration

yān rāye martān suṣūdo agne te syāma maghavāno vayaṁ ca | chāyeva viśvam bhuvanaṁ sisakṣy āpaprivān rodasī antarikṣam ||

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Pad Path

यान्। रा॒ये। म॒र्ता॑न्। सुसू॑दः। अ॒ग्ने॒। ते। स्या॒म॒। म॒घऽवा॑नः। व॒यम्। च॒। छा॒याऽइ॑व। विश्व॑म्। भुव॑नम्। सि॒स॒क्षि॒। आ॒प॒प्रि॒ऽवान्। रोद॑सी॒ इति॑। अ॒न्तरि॑क्षम् ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:73» Mantra:8 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:20» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:12» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर सृष्टिकर्त्ता ईश्वर कैसा है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) जगदीश्वर ! जो आप (यान्) जिन (सुसूदः) क्षयवृद्धि धर्म्मयुक्त (मर्त्तान्) मनुष्यों को (राये) विद्यादि धन के लिये (सिसक्षि) संयुक्त करते हो (ते) वे (वयम्) हम लोग (मघवानः) प्रशंसा योग्य धनवाले (स्याम) होवें (च) और जो आप (छायेव) शरीरों की छाया के समान (विश्वम्) सब (भुवनम्) जगत् और (रोदसी) आकाश, पृथिवी और (अन्तरिक्षम्) अन्तरिक्ष को (आपप्रिवान्) पूर्ण करनेवाले हो, उन आपकी सब लोग उपासना करें ॥ ८ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि ईश्वर की उपासना और अपने पुरुषार्थ से आप विद्यादि धनवाले होकर सब मनुष्यों को भी करें ॥ ८ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथैतत्सृष्टिकर्त्तेश्वरः कीदृशोऽस्तीत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे अग्ने जगदीश्वर ! यस्त्वं यान् सुसूदो मर्त्तानस्मान् राये सिसक्षि, ते वयं मघवानः स्याम। यो भवान् छायेव विश्वं भुवनं रोदसी अन्तरिक्षं चापप्रिवान् व्याप्तवानसि तं सर्वे वयमुपास्महे ॥ ८ ॥

Word-Meaning: - (यान्) उत्तमविद्यास्वभावान् (राये) धनाय (मर्त्तान्) मनुष्यान् (सुसूदः) क्षयशरीरादियुक्तान् (अग्ने) जगदीश्वर (ते) तव (स्याम) भवेम (मघवानः) प्रशस्तधनयुक्ताः (वयम्) पुरुषार्थिनः (च) समुच्चये (छायेव) यथा शरीरैः सह छाया वर्त्तते तथा (विश्वम्) अखिलम् (भुवनम्) जगत् (सिसक्षि) समवैति (आपप्रिवान्) सर्वतो व्याप्तवान् (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (अन्तरिक्षम्) आकाशम् ॥ ८ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। विद्वद्भिरीश्वरोपासनापुरुषार्थाभ्यां स्वयं विद्यादिधनवन्तो भूत्वा सर्वे मनुष्या विद्यादिधनवन्तः कार्याः ॥ ८ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. माणसांनी ईश्वराची उपासना व आपल्या पुरुषार्थाने स्वतः विद्या इत्यादी धन प्राप्त करून सर्व माणसांनाही तसेच बनवावे. ॥ ८ ॥