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तं त्वा॒ नरो॒ दम॒ आ नित्य॑मि॒द्धमग्ने॒ सच॑न्त क्षि॒तिषु॑ ध्रु॒वासु॑। अधि॑ द्यु॒म्नं नि द॑धु॒र्भूर्य॑स्मि॒न्भवा॑ वि॒श्वायु॑र्ध॒रुणो॑ रयी॒णाम् ॥

English Transliteration

taṁ tvā naro dama ā nityam iddham agne sacanta kṣitiṣu dhruvāsu | adhi dyumnaṁ ni dadhur bhūry asmin bhavā viśvāyur dharuṇo rayīṇām ||

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Pad Path

तम्। त्वा॒। नरः॑। दमे॑। आ। नित्य॑म्। इ॒द्धम्। अ॒ग्ने॒। सच॑न्त। क्षि॒तिषु॑। ध्रु॒वासु॑। अधि॑। द्यु॒म्नम्। नि। द॒धुः॒। भूरि॑। अ॒स्मि॒न्। भव॑। वि॒श्वऽआ॑युः। ध॒रुणः॑। र॒यी॒णाम् ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:73» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:19» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:12» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वान् कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) विज्ञान करानेवाले विद्वान् ! (रयीणाम्) विद्या और सब पृथिवी के राज्य से सिद्ध किये हुए धनों के (धरुणः) धारण करनेवाले (विश्वायुः) सम्पूर्ण जीवनयुक्त आप (अस्मिन्) इस मनुष्य वा जगत् में सहायकारी (भव) हूजिये, जो (भूरि) बहुत (द्युम्नम्) विद्याप्रकाशरूपी धन और कीर्ति को धारण करते हो (तम्) उन (नित्यम्) निरन्तर (इद्धम्) प्रदीप्त (त्वा) आपको (ध्रुवासु) दृढ़ (क्षितिषु) भूमियों में जो (नरः) नयन करनेवाले सब मनुष्य (अधि निदधुः) धारण करें और (दमे) शान्तियुक्त घर में (आ सचन्त) सेवन करें, उनका सेवन नित्य किया करो ॥ ४ ॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! तुम लोग जिस जगदीश्वर ने अनेक पदार्थों को रच कर धारण किये हैं और जिस विद्वान् ने जाने हैं, उसकी उपासना वा सत्संग के विना किसी मनुष्य को सुख नहीं होता, ऐसा जानो ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे अग्ने विद्वन् ! रयीणां धरुणो विश्वायुस्त्वमस्मिन् सहायकारी भव भूरि द्युम्नं धेहि तं नित्यमिद्धं त्वा ध्रुवासु क्षितिषु ये नरोऽधिनिदधुर्दमे आसचन्त ताँस्त्वं सततं सेवस्व ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (तम्) एवंभूतम् (त्वा) त्वां धार्मिकं विद्वांसम् (नरः) ये विद्यां नयन्ति ते सर्वे मनुष्याः (दमे) दुःखोपशान्ते गृहे (आ) समन्तात् (नित्यम्) निरन्तरम् (इद्धम्) प्रदीप्तम् (अग्ने) विज्ञापक (सचन्त) सेवन्ताम् (क्षितिषु) पृथिवीषु। क्षितिरिति पृथिवीनाम। (निघं०१.१) (ध्रुवासु) दृढासु (अधि) उपरिभावे (द्युम्नम्) विद्याप्रकाशं यशोधनं वा (नि) नितराम् (दधुः) धरन्तु (भूरि) बहु (अस्मिन्) मनुष्यजन्मनि जगति वा (भव) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (विश्वायुः) अखिलं जीवनं यस्य सः (धरुणः) धर्त्ता (रयीणाम्) विद्यासार्वभौमराज्यनिष्पन्नधनानाम् ॥ ४ ॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यूयं येन जगदीश्वरेणेह संसारेऽनेके पदार्था रचिता विदुषा वा ज्ञायन्ते तद्विज्ञानोपासनासङ्गेन सत्यं सुखं जायत इति विजानीत ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! ज्या जगदीश्वराने अनेक पदार्थांना निर्माण करून धारण केलेले आहे व ज्या विद्वानांनी ते जाणलेले आहे त्याची उपासना व सत्संगाशिवाय कोणत्याही माणसाला सुख मिळत नाही, हे तुम्ही जाणा. ॥ ४ ॥