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दे॒वो न यः पृ॑थि॒वीं वि॒श्वधा॑या उप॒क्षेति॑ हि॒तमि॑त्रो॒ न राजा॑। पु॒रः॒सदः॑ शर्म॒सदो॒ न वी॒रा अ॑नव॒द्या पति॑जुष्टेव॒ नारी॑ ॥

English Transliteration

devo na yaḥ pṛthivīṁ viśvadhāyā upakṣeti hitamitro na rājā | puraḥsadaḥ śarmasado na vīrā anavadyā patijuṣṭeva nārī ||

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Pad Path

दे॒वः। न। यः। पृ॒थि॒वीम्। वि॒श्वऽधा॑याः। उ॒प॒ऽक्षेति॑। हि॒तऽमि॑त्रः॑। न। राजा॑। पु॒रः॒ऽसदः॑। श॒र्म॒ऽसदः॑। न। वी॒राः। अ॒न॒व॒द्या। पति॑जुष्टाऽइव। नारी॑ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:73» Mantra:3 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:19» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:12» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर भी विद्वान् कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! तुम लोग (यः) जो (देवः) अच्छे सुखों का देनेवाला परमेश्वर वा विद्वान् (पृथिवीम्) भूमि के समान (विश्वधायाः) विश्व को धारण करनेवाले (हितमित्रः) मित्रों को धारण किये हुए (राजा) सभा आदि के अध्यक्ष के (न) समान (उपक्षेति) जानता वा निवास कराता है तथा (पुरःसदः) प्रथम शत्रुओं को मारने वा युद्ध के जानने (शर्मसदः) सुख में स्थिर होने और (वीराः) युद्ध में शत्रुओं के फेंकनेवाले के (न) समान तथा (अनवद्या) विद्यासौन्दर्यादि शुद्धगुणयुक्त (नारी) नर की स्त्री (पतिजुष्टेव) जो कि पति की सेवा करनेवाली के समान सुखों में निवास कराता है, उसको सदा सेवन करो ॥ ३ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। मनुष्य लोग परमेश्वर वा विद्वानों के साथ प्रेम प्रीति से वर्त्तने के विना सब बल वा सुखों को प्राप्त नहीं हो सकते, इससे इन्हींके साथ सदा प्रीति करें ॥ ३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यूयं यो देवः पृथिवीं न विश्वधाया हितमित्रो राजा नोपेक्षति पुरःसदः शर्म्मसदो वीरा न दुःखानि शत्रून् विनाशयति। अनवद्या पतिजुष्टेव सुखे निवासयति तं सदा समाहिता भूत्वा यथावत् परिचरत ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (देवः) दिव्यसुखदाता (न) इव (यः) सर्वोपकारको विद्वान् (पृथिवीम्) भूमिम् (विश्वधायाः) यो विश्वं दधाति। अत्र विश्वोपपदाद्बाहुलकादसुन् युडागमश्च। (उपक्षेति) विजानाति निवासयति वा (हितमित्रः) हिता धृता मित्राः सुहृदो येन सः (नः) इव (राजा) सभाध्यक्षः (पुरःसदः) ये पूर्वं सीदन्ति शत्रून् हिंसन्ति वा (शर्म्मसदः) ये शर्मणि सुखे सीदन्ति ते (न) इव (वीराः) शत्रूणां प्रक्षेप्तारः (अनवद्या) विद्यासौन्दर्यादिशुभगुणयुक्ता (पतिजुष्टेव) पतिर्जुष्टः प्रीतः सेवितो यया तद्वत् (नारी) नरस्येयं विवाहिता भार्य्या ॥ ३ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। न खलु मनुष्याः परमेश्वरेण विद्वद्भिः सह प्रेम्णा सह वर्त्तमानेन विना सर्वं बलं सुखं च प्राप्तुमर्हन्ति तस्मादेताभ्यां साकं प्रीतिं सदा कुर्वन्तु ॥ ३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. माणसांनी परमेश्वर व विद्वानांबरोबर प्रेमाने वागल्याशिवाय सर्व बल व सुख प्राप्त होऊ शकत नाहीत. यामुळे त्यांच्यावर सदैव प्रेम करावे. ॥ ३ ॥