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दे॒वो न यः स॑वि॒ता स॒त्यम॑न्मा॒ क्रत्वा॑ नि॒पाति॑ वृ॒जना॑नि॒ विश्वा॑। पु॒रु॒प्र॒श॒स्तो अ॒मति॒र्न स॒त्य आ॒त्मेव॒ शेवो॑ दिधि॒षाय्यो॑ भूत् ॥

English Transliteration

devo na yaḥ savitā satyamanmā kratvā nipāti vṛjanāni viśvā | purupraśasto amatir na satya ātmeva śevo didhiṣāyyo bhūt ||

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Pad Path

दे॒वः। न। यः। स॒वि॒ता। स॒त्यऽम॑न्मा। क्रत्वा॑। नि॒ऽपाति॑। वृ॒जना॑नि। विश्वा॑। पु॒रु॒ऽप्र॒श॒स्तः। अ॒मतिः॑। न। स॒त्यः। आ॒त्माऽइ॑व। शेवः॑। दि॒धि॒षाय्यः॑। भू॒त् ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:73» Mantra:2 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:19» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:12» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह विद्वान् कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! तुम (यः) जो (सविता) सूर्य (देवः) दिव्य गुण के (न) समान (सत्यमन्मा) सत्य को जानने वा जनानेवाला विद्वान् (क्रत्वा) बुद्धि वा कर्म से (विश्वा) सब (वृजनानि) बलों की (निपाति) रक्षा करता है (पुरुप्रशस्तः) बहुतों में अति श्रेष्ठ (अमतिः) उत्तम स्वरूप के (न) समान (सत्यः) अविनाशिस्वरूप (दिधिषाय्यः) धारण वा पोषण करनेवाले (आत्मेव) आत्मा के समान (शेवः) सुखस्वरूप अध्यापक वा उपदेष्टा (भूत्) है, उसका सेवन करके विद्या की उन्नति करो ॥ २ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। मनुष्य विद्वानों के सत्संग से सत्यविद्या, बल, सुख और सौन्दर्य आदि के प्राप्त होने को समर्थ हो सकते हैं, इससे इन दोनों का सेवन निरन्तर करें ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वान् कीदृशः स्यादित्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यूयं यः सविता देवो न सत्यमन्मा क्रत्वा विश्वा वृजनानि पाति पुरुप्रशस्तोऽमतिर्न सत्यो दिधिषाय्य आत्मेव शेवो भूत्तं सेवित्वा विद्योन्नतिं कुरुत ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (देवः) दिव्यगुणः (न) इव (यः) पूर्णविद्यः (सविता) सूर्य्यः (सत्यमन्मा) यः सत्यं मन्यते विजानाति विज्ञापयति सः (क्रत्वा) कर्मणा (निपाति) नित्यं रक्षति (वृजनानि) बलानि। वृजनमिति बलनामसु पठितम्। (निघं०२.९) (विश्वा) सर्वाणि (पुरुप्रशस्तः) बहुषु श्रेष्ठतमः (अमतिः) सुन्दरस्वरूपः (दिधिषाय्यः) धारकः पोषकः। दधातेर्द्वित्वमित्वं षुक् च। (उणा०३.९५) अनेनायं सिद्धः। (भूत्) वर्त्तते ॥ २ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। नैव मनुष्यैः विद्वत्सङ्गेन विना सत्यविद्याबले सुखसौन्दर्य्याणि प्राप्तुं शक्यन्ते तस्मादेते नित्यं सेवनीयाः ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. माणसे विद्वानांच्या संगतीने सत्य विद्या, बल, सुख व सौंदर्य इत्यादी प्राप्त होण्यास समर्थ होऊ शकतात. यामुळे त्यांचे सेवन निरंतर करावे. ॥ २ ॥