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उप॒ प्र जि॑न्वन्नुश॒तीरु॒शन्तं॒ पतिं॒ न नित्यं॒ जन॑यः॒ सनी॑ळाः। स्वसा॑रः॒ श्यावी॒मरु॑षीमजुष्रञ्चि॒त्रमु॒च्छन्ती॑मु॒षसं॒ न गावः॑ ॥

English Transliteration

upa pra jinvann uśatīr uśantam patiṁ na nityaṁ janayaḥ sanīḻāḥ | svasāraḥ śyāvīm aruṣīm ajuṣrañ citram ucchantīm uṣasaṁ na gāvaḥ ||

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Pad Path

उप॑। प्र। जि॒न्व॒न्। उ॒श॒तीः। उ॒शन्त॑म्। पति॑म्। न। नित्य॑म्। जन॑यः। सऽनी॑ळाः। स्वसा॑रः। श्यावी॑म्। अरु॑षीम्। अ॒जु॒ष्र॒न्। चि॒त्रम्। उ॒च्छन्ती॑म्। उ॒षस॑म्। न। गावः॑ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:71» Mantra:1 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:15» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:12» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब इकहत्तरवें सूक्त का आरम्भ किया जाता है, इसके प्रथम मन्त्र में सभाध्यक्ष आदि के गुणों का उपदेश किया है ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! तुम विद्वान् लोग जिस (नित्यम्) व्यभिचाररहित स्वरूप से नित्य अविनाशी (चित्रम्) आश्चर्य गुण, कर्म और स्वभावयुक्त परमेश्वर वा सभाध्यक्ष के (सनीळाः) एक ईश्वर के बीच रहने से समान स्थानवाले (जनयः) प्रजा वा (उशन्तीः) शोभायमान (स्वसारः) युवती भगिनी (उशन्तम्) शोभायमान अपने-अपने (पतिम्) पालन करनेवाले पति के (न) समान तथा (गावः) किरण वा धेनु (श्यावीम्) धुमैले वर्ण से युक्त वा (अरुषीम्) अत्यन्त लाल वर्णवाली (उच्छन्तीम्) विशेष वास कराती हुई (उषसम्) प्रातःकाल की वेला के (न) समान (उपाजुष्रन्) सेवन करके (प्रजिन्वन्) अत्यन्त तृप्त रहो ॥ १ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में श्लेष और उपमालङ्कार हैं। सब मनुष्यों को चाहिये कि जैसे धर्मात्मा विद्वान् स्त्री विवाहित पति का और धर्मात्मा विद्वान् मनुष्य विवाहित स्त्री का सेवन करता है, जैसे प्रातःकाल होते ही किरण वा गौ आदि पशु पृथिवी आदि पदार्थों का सेवन करते हैं, वैसे ही परमेश्वर वा सभाध्यक्ष का निरन्तर सेवन करें ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यूयं यं नित्यं चित्रं परमेश्वरं सभाध्यक्षं वा सनीळा जनयः प्रजा उशन्तीः स्वसार उशन्तं पतिं नेव गावः श्यावीमरुषीमुच्छन्तीमुषसं नेवोपाजुष्रन् तं सततं सेवित्वा प्रजिन्वन् ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (उप) सामीप्ये (प्र) प्रकृष्टार्थे (जिन्वन्) तर्पयन्तु। (उशतीः) कामयमानाः (उशन्तम्) कामयमानम् (पतिम्) पालकं पाणिग्रहीतारम् (न) इव (नित्यम्) अव्यभिचारिस्वरूपेणाविनाशिनम् (जनयः) या जायन्ते ता प्रजाः (सनीळाः) एकेश्वराधिकरणसमानस्थानाः (स्वसारः) युवतयो भगिन्यः (श्यावीम्) अल्पकृष्णवर्णाम् (अरुषीम्) आरक्तवर्णाम् (अजुष्रन्) सेवन्ते। अत्र बहुलं छन्दसीति रुडागमः। (चित्रम्) अद्भुतगुणस्वरूपभावम् (उच्छन्तीम्) निवासयन्तीम् (उषसम्) रात्र्यन्तसमयम् (न) इव (गावः) किरणा धेनवो वा ॥ १ ॥
Connotation: - अत्र श्लेषोपमालङ्कारौ। सर्वैर्मनुष्यैर्यथा धार्मिका विदुषी पतिव्रता स्त्री पतिं धार्मिको विद्वान् स्त्रीव्रतो मनुष्यो धार्मिकां विवाहितां स्त्रियं सेवते। यथा चोषःकालं प्राप्य किरणाः पशवः पृथिव्यादिकान् पदार्थान् सेवन्ते तथैव परमेश्वरः सभाध्यक्षश्च नित्यं सेवनीयः ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात ईश्वर, सभाध्यक्ष, स्त्री-पुरुष व विद्युत आणि विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्तार्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात श्लेष व उपमालंकार आहेत. जशी धार्मिक विदुषी स्त्री विवाहित पतीचा व धर्मात्मा विद्वान मनुष्य विवाहित स्त्रीचा स्वीकार करतो. जसे प्रातःकाली किरण व गाई इत्यादी पशू, पृथ्वी इत्यादी पदार्थांचे सेवन करतात तसेच माणसांनी परमेश्वर व सभाध्यक्षाचे सेवन करावे. ॥ १ ॥