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तु॒ञ्जेतु॑ञ्जे॒ य उत्त॑रे॒ स्तोमा॒ इन्द्र॑स्य व॒ज्रिणः॑। न वि॑न्धे अस्य सुष्टु॒तिम्॥

English Transliteration

tuñje-tuñje ya uttare stomā indrasya vajriṇaḥ | na vindhe asya suṣṭutim ||

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Pad Path

तु॒ञ्जेऽतु॑ञ्जे। ये। उत्ऽत॑रे। स्तोमाः॑। इन्द्र॑स्य। व॒ज्रिणः॑। न। वि॒न्धे॒। अ॒स्य॒। सु॒ऽस्तु॒तिम्॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:7» Mantra:7 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:14» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:2» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अगले मन्त्र में इन्द्र शब्द से परमेश्वर का प्रकाश किया है-

Word-Meaning: - (न) नहीं मैं (ये) जो (वज्रिणः) अनन्त पराक्रमवान् (इन्द्रस्य) सब दुःखों के विनाश करनेहारे (अस्य) इस परमेश्वर के (तुज्जेतुज्जे) पदार्थ-पदार्थ के देने में (उत्तरे) सिद्धान्त से निश्चित किये हुए (स्तोमाः) स्तुतियों के समूह हैं, उनसे भी (अस्य) परमेश्वर की (सुष्टुतिम्) शोभायमान स्तुति का पार मैं जीव (न) नहीं (विन्धे) पा सकता हूँ॥७॥
Connotation: - ईश्वर ने इस संसार में प्राणियों के सुख के लिये इन पदार्थों में अपनी शक्ति से जितने दृष्टान्त वा उनमें जिस प्रकार की रचना और अलग-अलग उनके गुण तथा उनसे उपकार लेने के लिये रक्खे हैं, उन सबके जानने को मैं अल्पबुद्धि पुरुष होने से समर्थ कभी नहीं हो सकता और न कोई मनुष्य ईश्वर के गुणों की समाप्ति जानने को समर्थ है, क्योंकि जगदीश्वर अनन्त गुण और अनन्त सामर्थ्यवाला है, परन्तु मनुष्य उन पदार्थों से जितना उपकार लेने को समर्थ हों, उतना सब प्रकार से लेना चाहिये॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

इन्द्रशब्देनेश्वर उपदिश्यते।

Anvay:

नाहं ये तुञ्जेतुञ्जे उत्तरे स्तोमाः सन्ति तैर्वज्रिण इन्द्रस्य परमेश्वरस्य सुष्टुतिं विन्धे विन्दामि॥७॥

Word-Meaning: - (तुज्जेतुज्जे) दातव्ये दातव्ये (ये) (उत्तरे) सिद्धान्तसिद्धाः (स्तोमाः) स्तुतिसमूहाः (इन्द्रस्य) सर्वदुःखविनाशकस्य (वज्रिणः) वज्रोऽनन्तं प्रशस्तं वीर्य्यमस्यास्तीति तस्य। अत्र भूमार्थे प्रशंसार्थे च मतुप्। वीर्य्यं वै वज्रः। (श०ब्रा०७.४.२.२४) (न) निषेधार्थे (विन्धे) विन्दामि। अत्र वर्णव्यत्ययेन दकारस्य धकारः। (अस्य) परमेश्वरस्य (सुष्टुतिम्) शोभनां स्तुतिम्। यास्कमुनिरिमं मन्त्रमेवं व्याख्यातवान्-तुज्जस्तुज्जतेर्दानकर्मणः। दाने दाने य उत्तरे स्तोमा इन्द्रस्य वज्रिणो नास्य तैर्विन्दामि समाप्तिं स्तुतेः। (निरु०६.१८)॥७॥
Connotation: - ईश्वरेणास्मिन् जगति जीवानां सुखायैतेषु पदार्थेषु स्वशक्तेर्यावन्तो दृष्टान्ता यादृशं रचनं यादृशा गुणा उपकारार्थं रक्षिता वर्त्तन्ते तावतः सम्पूर्णान् वेत्तुं नाहं समर्थोऽस्मि। नैव कश्चिदीश्वरगुणानां समाप्तिं वेत्तुमर्हति। कुतः, तस्यैतेषामनन्तत्वात्। परन्तु मनुष्यैरेतेभ्यः पदार्थेभ्यो यावानुपकारो ग्रहीतुं शक्योऽस्ति तावान्प्रयत्नेन ग्राह्य इति॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - ईश्वराने या संसारात प्राण्यांच्या सुखासाठी पदार्थात स्वशक्तीने दृष्टान्त दिलेले आहेत किंवा त्यात निरनिराळ्या प्रकारची रचना केलेली आहे व त्यात वेगवेगळे गुण निर्माण केलेले आहेत. त्यांचा लाभ घेण्यासाठी ठेवलेले आहेत. त्या सर्वांना जाणण्यासाठी मी अल्पबुद्धी माणूस असल्यामुळे समर्थ होऊ शकत नाही व कोणताही माणूस ईश्वराच्या गुणांची अंतिम सीमा जाणण्यास समर्थ नसतो. कारण जगदीश्वर अनन्तगुणयुक्त व अनन्त सामर्थ्ययुक्त आहे; परंतु माणसांनी त्या पदार्थांपासून जितका लाभ घेता येईल तितका घ्यावा ॥ ७ ॥