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वि॒दन्ती॒मत्र॒ नरो॑ धियं॒धा हृ॒दा यत्त॒ष्टान्मन्त्राँ॒ अशं॑सन् ॥

English Transliteration

vidantīm atra naro dhiyaṁdhā hṛdā yat taṣṭān mantrām̐ aśaṁsan ||

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Pad Path

वि॒दन्ति॑। ई॒म्। अत्र॑। नरः॑। धि॒य॒म्ऽधाः। हृ॒दा। यत्। त॒ष्टान्। मन्त्रा॑न्। अशं॑सन् ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:67» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:11» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:12» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह विद्वान् कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - (यत्) जो (नरः) प्राप्ति करनेवाला मनुष्य जैसे (धियन्धाः) प्रज्ञा, कर्म को धारण करनेवाले विद्वान् लोग (तष्टान्) विद्याओं को तीक्ष्ण करनेवाले (मन्त्रान्) वेदों के अवयव वा विचाररूपी मन्त्रों को (विदन्ति) जानते (अशंसन्) स्तुति करते हैं। जैसे देनेवाला उदार मनुष्य (हस्ते) हाथ में (विश्वानि) सब (नृम्णा) धनों को (दधानः) धारण किया हुआ अन्य सुपात्र मनुष्यों को देता है। जैसे (गुहा) सब विद्याओं से युक्त बुद्धि में (निषीदन्) स्थित हुआ ईश्वर वा योगी विद्वान् (अत्र) इस (अमे) विज्ञान आदि में (देवान्) विद्वान् व दिव्य गुणों को (धात्) धारण करता है, वैसे होते हैं, वे अत्यन्त आनन्द को प्राप्त होते हैं ॥ २ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! तुम लोगों को चाहिये कि जो अन्तर्यामी आत्मा में सत्य-झूँठ का उपदेश करता और बाह्य अध्ययन करानेवाला विद्वान् वर्त्तमान है, उसको छोड़ कर किसी की उपासना वा संगत कभी मत करो ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

यद्येन नरो यथा धियन्धा विद्वांसस्तष्टान् मन्त्रान् विदन्त्यशंसन् स्तुवन्ति च। यथोदारो दाता हस्ते विश्वानि नृम्णानि दधानोऽन्येभ्यः सुपात्रेभ्यो ददाति यथा गुहा निषीदन्नीश्वरो विद्वान् अत्र अमे देवान् धाद्दधाति तथा वर्त्तन्ते तेऽतुलमानन्दं लभन्ते ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (हस्ते) करे (दधानः) धरन्नुदारो धातेव (नृम्णा) धनानि (विश्वानि) सर्वाणि (अमे) ज्ञानादिनिमित्तेषु गृहेषु (देवान्) विदुषो दिव्यगुणान् वा (धात्) दधाति (गुहा) गुहायां सर्वविद्यासंयुक्तायां बुद्धौ। गुहागूहतेः। (निरु०१३.९) (निषीदन्) स्थितोऽवस्थापयन् (विदन्ति) जानन्ति (ईम्) प्राप्तव्यान् बोधान्। ईमति पदनामसु पठितम्। (निघं०४.२) (अत्र) अस्मिन् (नरः) ये नयन्ति ते मनुष्याः (धियन्धाः) ये प्रज्ञां कर्म्म वा दधाति ते (हृदा) हृदयस्तेन विज्ञानेन (यत्) (तष्टान्) तक्षन्ति तीक्ष्णीकुर्वन्ति यैर्विद्यास्तान् (मन्त्रान्) वेदावयवान् विचारान् वा (अशंसन्) स्तुवन्ति ॥ २ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! युष्माभिर्योऽन्तर्य्याम्यात्मनि सत्यानृते उपदिशति बाह्योऽध्यापको विद्वांश्च वर्त्तते तं विहाय नैव कस्याप्युपासना संसर्गश्च कर्त्तव्य इति ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. कोणत्याही माणसाला परमेश्वराची उपासना, विज्ञान, सत्यविद्या व उत्तम आचरणाशिवाय निर्विघ्नपणे सुख प्राप्त होऊ शकत नाही. ॥ ४ ॥