Go To Mantra

वने॑षु जा॒युर्मर्ते॑षु मि॒त्रो वृ॑णी॒ते श्रु॒ष्टिं राजे॑वाजु॒र्यम् ॥

English Transliteration

vaneṣu jāyur marteṣu mitro vṛṇīte śruṣṭiṁ rājevājuryam ||

Mantra Audio
Pad Path

वने॑षु। जा॒युः। मर्ते॑षु। मि॒त्रः। वृ॒णी॒ते॒। श्रु॒ष्टिम्। राजा॑ऽइव। अ॒जु॒र्यम् ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:67» Mantra:1 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:11» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:12» Mantra:1


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सड़सठवें सूक्त का आरम्भ है। इसके प्रथम मन्त्र में विद्वान् कैसा हो, इस विषय को कहा है ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! तुम लोग जो विद्वान् (वनेषु) सम्यक् सेवने योग्य पदार्थ (जायुः) जीतने के हेतु सूर्य्य के समान (अजुर्य्यम्) युद्धविद्या से सङ्गत सेना के तुल्य योग्य (श्रुष्टिम्) शीघ्रता करनेवाले को (राजेव) राजा के समान (क्षेमः) रक्षक (साधुः) सत्पुरुष के समान (भद्रः) कल्याणकारी (क्रतुर्न) उत्तम बुद्धि और कर्मकर्त्ता के तुल्य (स्वाधीः) अच्छे प्रकार धारण करने (होता) देने तथा अनुग्रह करने और (हव्यवाट्) लेने-देने योग्य पदार्थों का प्राप्त करानेवाला (भुवत्) हो तथा धर्मात्मा मनुष्यों को (वृणीते) स्वीकार करे, उसका सदा सेवन करो ॥ १ ॥
Connotation: - इस मन्त्रा में उपमा और (वाचकलुप्तोपमालङ्कार) हैं। मनुष्यों को उचित है कि विद्वानों का संग करके सदैव आनन्द भोग करें ॥ १ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स विद्वान् कीदृशो भवेदित्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यूयं यो विद्वान् वनेषु जायुरिवाजुर्य्यं श्रुष्टिं राजेव क्षेमः साधुर्नेव भद्रः क्रतुर्नेव स्वाधीर्होता हव्यवाड्भुवद्भवेद्धार्मिकान् मनुष्यान् वृणीते तं सदा सेवध्वम् ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (वनेषु) संभजनीयेषु पदार्थेषु (जायुः) प्रजेता (मर्तेषु) मनुष्येषु (मित्रः) सखेव (वृणीते) स्वीकुरुते (श्रुष्टिम्) क्षिप्रकारिणम्। श्रुष्टि इति क्षिप्रनाम। आशु अष्टीति । (निरु०६.१२) (राजेव) यथा सभाद्यध्यक्षः (अजुर्य्यम्) युद्धविद्यासङ्गतम् (क्षेमः) कल्याणकारी (न) इव (साधुः) सत्यमानी सत्यकारी सत्यवादी (क्रतुः) प्रशस्तकर्मप्रज्ञः (न) इव (भद्रः) कल्याणकरः (भुवत्) भवेत्। अत्र लडर्थे लेट्। (स्वाधीः) सुष्ठु समन्ताद्धीयते येन सः (होता) दाताऽनुग्रहीता (हव्यवाट्) यो ग्राह्यदातव्यान् पदार्थान् वहति प्रापयति सः ॥ १ ॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। मनुष्यैर्विद्वत्सङ्गं कृत्वाऽऽनन्दः सदैव कर्त्तव्यः ॥ १ ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात ईश्वर, सभाध्यक्ष व विद्युत अग्नीच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे पूर्वसूक्तार्थाची या सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमा (वाचकलुप्तोपमालंकार) आहेत. माणसांनी विद्वानांची संगत करून सदैव आनंद भोगावा. ॥ १ ॥