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र॒यिर्न चि॒त्रा सूरो॒ न सं॒दृगायु॒र्न प्रा॒णो नित्यो॒ न सू॒नुः ॥

English Transliteration

rayir na citrā sūro na saṁdṛg āyur na prāṇo nityo na sūnuḥ ||

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Pad Path

र॒यिः। न। चि॒त्रा। सूरः॑। न। स॒म्ऽदृक्। आयुः॑। न। प्रा॒णः। नित्यः॑। न। सू॒नुः ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:66» Mantra:1 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:10» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:12» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब छासठवें सूक्त का आरम्भ किया जाता है। इसके प्रथम मन्त्र में पूर्वोक्त अग्नि के गुणों का उपदेश किया है ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! आप सब लोग (रयिर्न) द्रव्यसमूह के समान (चित्रा) आश्चर्य गुणवाले (सूरः) सूर्य्य के (न) समान (संदृक्) अच्छे प्रकार दिखानेवाला (आयुः) जीवन के (न) समान (प्राणः) सब शरीर में रहनेवाला (नित्यः) कारणरूप से अविनाशिस्वरूप वायु के (न) समान (सूनुः) कार्य्यरूप से वायु के पुत्र के तुल्य वर्त्तमान (पयः) दूध के (न) समान (धेनुः) दूध देनेवाली गौ (तक्वा) चोर के (न) समान (भूर्णिः) धारण करने (विभावा) अनेक पदार्थों का प्रकाश करनेवाला (शुचिः) पवित्र अग्नि (वना) वन वा किरणों को (सिसक्ति) संयुक्त होता वा संयोग करता है, उसको यथावत् जान के कार्यों में उपयुक्त करो ॥ १ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। मनुष्यों को उचित है कि जिस ईश्वर ने प्रजा के हित के लिए बहुत गुणवाले अनेक कार्य्यों के उपयोगी सत्य स्वभाववाले इस अग्नि को रचा है, उसी की सदा उपासना करें ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः सोऽग्निः कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! भवन्तो रयिर्नेव चित्रः सूरो नेव संदृगायुर्नेव प्राणो नित्यो नेव सूनुः पयो नेव धेनुस्तक्वा नेव भूर्णिर्विभावा शुचिरग्निर्वना सिसक्ति तं यथावद् विज्ञाय कार्येषूपयोजयन्तु ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (रयिः) द्रव्यसमूहः (न) इव (चित्रा) विविधाश्चर्यगुणः। अत्र सुपां सुलुगित्याकारादेशः। (सूरः) सूर्यः (न) इव (सन्दृक्) सम्यग्दर्शयिता (आयुः) जीवनम् (न) इव (प्राणः) सर्वशरीरगामी वायुः (नित्यः) कारणरूपेणाविनाशिस्वरूपः (न) इव (सूनुः) कारणरूपेण वायोः पुत्रवद्वर्त्तमानः (तक्वा) स्तेनः। तक्वेति स्तेननामसु पठितम्। (निघं०३.२४) (भूर्णिः) धर्त्ता (वना) अरण्यानि किरणान् वा (सिसक्ति) समवैति (पयः) दुग्धम् (न) इव (धेनुः) दुग्धदात्री गौः (शुचिः) पवित्रः (विभावा) यो विविधान् पदार्थान् भाति प्रकाशयति सः ॥ १ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्येनेश्वरेण प्रजाहिताय विविधगुणोऽनेककार्योपयोगी सत्यस्वभावोऽग्निर्निर्मितः स एव सर्वदोपासनीयः ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात ईश्वर व अग्नीच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. ज्या ईश्वराने प्रजेच्या हितासाठी अनेक गुण असणाऱ्या व अनेक कार्यात उपयुक्त असणाऱ्या अग्नीला निर्माण केलेले आहे म्हणून माणसांनी त्याचीच सदैव उपासना करावी. ॥ १ ॥