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स॒जोषा॒ धीराः॑ प॒दैरनु॑ ग्म॒न्नुप॑ त्वा सीद॒न्विश्वे॒ यज॑त्राः ॥

English Transliteration

sajoṣā dhīrāḥ padair anu gmann upa tvā sīdan viśve yajatrāḥ ||

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Pad Path

स॒जोषाः॑। धीराः॑। प॒दैः। अनु॑। ग्म॒न्। उप॑। त्वा॒। सी॒द॒न्। विश्वे॑। यज॑त्राः ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:65» Mantra:2 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:9» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:12» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब पैंसठवें सूक्त का आरम्भ है। इसके पहिले मन्त्र में सर्वत्र व्यापक अग्नि शब्द का वाच्य जो पदार्थ है, उसका उपदेश किया है ॥

Word-Meaning: - हे सर्वविद्यायुक्त सभेश ! (विश्वे) सब (यजत्राः) संगतिप्रिय (सजोषाः) सब तुल्य प्रीति को सेवन करनेवाले (धीराः) बुद्धिमान् लोग (पदैः) प्रत्यक्ष प्राप्त जो गुणों के नियम उन्हीं से (न) जैसे (पश्वा) पशु को ले जानेवाले (तायुम्) चोर को प्राप्त कर आनन्द होता है, वैसे जिस (गुहा) गुफा में (चतन्तम्) व्याप्त (नमः) वज्र के समान आज्ञा का (युजानम्) समाधान करने (नमः) सत्कार को (वहन्तम्) प्राप्त करते हुए (त्वा) आपको (अनुग्मन्) अनुकूलतापूर्वक प्राप्त तथा (उपसीदन्) समीप स्थित होते हैं, उस आपको हम लोग भी इस प्रकार प्राप्त होके आपके समीप स्थिर होते हैं ॥ १ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! तुम लोग जैसे वस्तु को चुराए हुए चोर के पाद आदि अङ्ग वा स्वरूप देखने से उसको पकड़कर चोरे हुए पशु आदि पदार्थों का ग्रहण करते हो, वैसे अन्तःकरण में उपदेश करनेवाले, सबके आधार विज्ञान से जानने योग्य परमेश्वर तथा बिजुलीरूप अग्नि को जान और प्राप्त होके सब आनन्द को स्वीकार करो ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथान्तर्व्याप्तोऽग्निरुपदिश्यते ॥

Anvay:

हे सर्वविद्याभिव्याप्त सभेश्वर ! यजत्राः सजोषा धीरा विद्वांसः पदैः पश्वा तायुं नेव यं गुहा बुद्धौ चतन्तं नमो युजानं नमो वहन्तं त्वा त्वामनुग्मन्। उपसीदन् त्वां प्राप्य त्वय्यवतिष्ठन्ते वयमप्येवं प्राप्यावतिष्ठामहे ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (पश्वा) अपहृतस्य पशोः स्वरूपाङ्गपादचिह्नान्वेषणेन (न) इव (तायुम्) चोरम्। तायुरिति स्तेननामसु पठितम्। (निघं०३.२४) (गुहा) गुहायां सर्वपदार्थानां मध्ये। अत्र सुपां सुलुगिति सप्तम्याडादेशः। (चतन्तम्) गच्छतं व्याप्तम्। चततीति गतिकर्मसु पठितम्। (निघं०२.१४) (नमः) अन्नम्। नम इत्यन्ननामसु पठितम्। (निघं०२.२०) (युजानम्) समादधानम्। अत्र बाहुलकादौणादिक आनच् प्रत्ययः किच्च। (नमः) सत्कारमन्नं वा (वहन्तम्) प्राप्नुवन्तम् (सजोषाः) सर्वत्र समानप्रीतिसेवनाः (धीराः) मेधाविनो विद्वांसः (पदैः) प्रत्यक्षेण प्राप्तैर्गुणनियमैः (अनु) पश्चात् (ग्मन्) प्राप्नुवन्ति। अत्र गमधातोर्लुङि मन्त्रे घस० इति च्लेर्लुक्। गमहनेत्युपधालोपोऽडभावो लडर्थे लुङ् च। (उप) सामीप्ये (त्वा) त्वां सभेश्वरम् (सीदन्) अवतिष्ठन्ते। अत्राप्यडभावो लडर्थे लुङ् च। (विश्वे) सर्वे (यजत्राः) पूजका उपदेशका सङ्गति-कर्त्तारो दातारश्च ॥ १ ॥
Connotation: - हे मनुष्याः ! यथा स्तेनस्य पदाङ्गस्वरूपप्रेक्षणेन चोरं प्राप्य पश्वादिः पदार्थान् गृह्णन्ति, तथैवात्मान्तरुपदेष्टारं सर्वाधारं ज्ञानगम्यं परमेश्वरं प्राप्य सर्वानन्दं स्वीकुरुत ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जसे सूर्यप्रकाशामुळे सर्व पदार्थ दिसतात. तसेच विद्वानांच्या संगतीने वेदविद्या उत्पन्न होऊन धर्माचरणामुळे परमेश्वर व विद्युत इत्यादी पदार्थ आपापल्या गुण कर्म, स्वभावानुसार चांगल्या तऱ्हेने पाहता येतात हे जाणून आपले विचार निश्चित करा. ॥ २ ॥