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चि॒त्रैर॒ञ्जिभि॒र्वपु॑षे॒ व्य॑ञ्जते॒ वक्षः॑सु रु॒क्माँ अधि॑ येतिरे शु॒भे। अंसे॑ष्वेषां॒ नि मि॑मृक्षुर्ऋ॒ष्टयः॑ सा॒कं ज॑ज्ञिरे स्व॒धया॑ दि॒वो नरः॑ ॥

English Transliteration

citrair añjibhir vapuṣe vy añjate vakṣassu rukmām̐ adhi yetire śubhe | aṁseṣv eṣāṁ ni mimṛkṣur ṛṣṭayaḥ sākaṁ jajñire svadhayā divo naraḥ ||

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Pad Path

चि॒त्रैः। अ॒ञ्जिऽभिः॑। वपु॑षे। वि। अ॒ञ्ज॒ते॒। वक्षः॑ऽसु। रु॒क्मान्। अधि॑। ये॒ति॒रे॒। शु॒भे। अंसे॑षु। ए॒षा॒म्। नि। मि॒मृ॒क्षुः॒। ऋ॒ष्टयः॑। सा॒कम्। ज॒ज्ञि॒रे॒। स्व॒धया॑। दि॒वः। नरः॑ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:64» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:6» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:11» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे कैसे हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! तुम लोग जो ये (ऋष्टयः) इधर-उधर चलने तथा (नरः) पदार्थों को प्राप्त करनेवाले पवन (चित्रैः) आश्चर्य्यरूप क्रिया, गुण और स्वभाव तथा (अञ्जिभिः) प्रकट करना आदि धर्मों से (शुभे) सुन्दर (वपुषे) शरीर के धारण वा पोषण के लिये (व्यञ्जते) विशेष करके प्राप्त होते हैं, जो (वक्षःसु) हृदयों में (रुक्मान्) बिजुली तथा जाठराग्नि के प्रकाशों को (अधियेतिरे) यत्नपूर्वक सिद्ध करते (स्वधया) पृथिवी, आकाश तथा अन्न के (साकम्) साथ (जायन्ते) उत्पन्न होते और (दिवः) सूर्य आदि के प्रकाशों को उत्पन्न करते हैं, (एषाम्) इन पवनों के योग से (अंसेषु) बल, पराक्रम के मूल कन्धों में (निमिमृक्षुः) सब पदार्थ समूह को प्राप्त हो सकते हैं, उनको यथावत् जानकर अपने कार्य्यों में सम्प्रयुक्त करो ॥ ४ ॥
Connotation: - विद्वानों को उचित है कि ऐसे-ऐसे विलक्षण गुणवाले वायुओं को जानकर शुद्ध-शुद्ध सुखों को भोगें ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते कीदृशा इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे मनुष्याः ! यूयं य एते ऋष्टयो नरो वायवश्चित्रैरञ्जिभिः शुभे वपुषे व्यञ्जते वक्षःसु रुक्मानधियेतिरे स्वधया साकं जज्ञिरे जायन्ते दिवो जनयन्ति चैषामंसेषु निमिमृक्षुः सर्वे पदार्थाः सहन्ते तान् विदित्वा सम्प्रयोजयत ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (चित्रैः) अद्भुतक्रियास्वभावैः (अञ्जिभिः) व्यक्तीकरणादिधर्मैः (वपुषे) शरीरधारणपोषणाग्निरूपप्रकाशाय। वपुरिति रूपनामसु पठितम्। (निघं०३.७) (वि) विशेषार्थे (अञ्जते) गच्छन्ति। अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदम्। (वक्षःसु) हृदयेषु (रुक्मान्) विद्युज्जाठराग्निप्रकाशान् (अधि) उपरिभावे (येतिरे) प्रयतन्ते (शुभे) शोभनाय (अंसेषु) बलपराक्रमाधिकरणेषु भुजमूलेषु (एषाम्) वायुनां योगे (नि) नितराम् (मिमृक्षुः) सहन्ते। अत्र बहुलं छन्दसीत्यभ्यासस्येत्वम्। (ऋष्टयः) गमनागमनशीलाः (साकम्) सह (जज्ञिरे) जायन्ते जनयन्ति वा (स्वधया) पृथिव्यादिनान्नेन वा (दिवः) सूर्य्यादिप्रकाशान् (नरः) नेतारः ॥ ४ ॥
Connotation: - विद्वद्भिरीदृग्दिव्यगुणान् वायून् विदित्वा शुद्धानि सुखानि भोक्तव्यानि ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - विद्वानांनी दिव्यगुणयुक्त वायूंना जाणून शुद्ध सुख भोगावे ॥ ४ ॥